संसद का विशेष सत्र 18 से 22 सितंबर 2023 सूचना जारी – एक देश एक चुनाव, महिला आरक्षण बिल लाने की संभावना!

एक देश एक चुनाव कराना समय की मांग – विपक्ष व राज्यों के सुझावों को रेखांकित करना जरूरी

एक देश एक चुनाव से संसाधनों का दुरुपयोग रुकेगा – 2015 की रिपोर्ट में भी सिफारिश – जनता जनार्दन, प्रशासन को लगातार चुनाव आचार संहिता से मुक्ति मिलेगी – एडवोकेट किशन भावनानी गोंदिया

किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर भारत दुनियां का सबसे बड़ा लोकतंत्र और सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है। भारत में चुनावों का दौर लगातार प्रतिवर्ष छाया रहता है। जिसमें सरकारी संसाधनों का उपयोग होता है। जिसमें शासकीय प्रशासकीय तंत्र इस तरह व्यस्त हो जाता है, जिसके कारण जनता जनार्दन को उस अवधि में भारी समस्याओं विपत्तियों का सामना करना पड़ता है। जिसके समाधान के लिए एक देश एक चुनाव की चर्चा को बल मिला था और इस दिशा में एक नई बहस शुरू हो गई थी कि पूरे देश में राज्यों में लोकसभा विधानसभा का चुनाव एक ही बार में कराया जाए। इस पर कई महीनो से डिबेट होते रहे हैं। देश हमेशा इलेक्शन मोड में रहता है। लोकसभा, विधानसभा, पंचायत, लोकल बॉडीज, नगर परिषद, नगर पालिका, महानगर पालिका चुनाव इस तरह हमेशा चुनाव से घिरा रहता है। जिस कारण अब एक देश एक चुनाव समय की मांग है।

अभी हाल ही में 20 जुलाई से 11 अगस्त 2023 तक मानसून सत्र हंगामें की भेंट चढ़ा था। परंतु आज दिनांक 31 अगस्त 2023 को देर शाम एक खबर ने भारत की जनता को अचंभित कर दिया, जिसमें 18 से 22 सितंबर 2023 तक एक विशेष संसद सत्र की घोषणा की गई है। उधर मुंबई में विपक्षी गठबंधन आई.एन.डी.आई.ए की सभा शुरू है। अभी पांच राज्यों के चुनाव 2023 के अंत में होने हैं, वही कर्नाटक और एक राज्य में अभी हाल ही में चुनाव हुए हैं। परंतु दबी जुबान से चर्चा चल रही है कि इस विशेष सत्र में एक देश एक चुनाव व महिलाओं के आरक्षण संबंधी बिल या फिर यूनिफॉर्म सिविल कोड लाकर नए देश की नई कहानी लिखने की तैयारी चल रही है। इसको बल मिल सकता है इससे इनकार नहीं किया जा सकता। पिछली बार माननीय पीएम ने संसद में संबोधन में एक देश एक चुनाव पर चर्चा कर इसकी वकालत की थी। यह बिल अगर पास हो गया तो चुनावी सुधारो में बहुत बड़ा परिवर्तन होगा।

जहां विपक्षी गठबंधन इंडिया इसे अपनी सफलता मानकर वर्तमान सरकार की घबराहट करार दे रही है, तो वहीं सरकार विशेष सत्र के बारे में चुप है। मेरा मानना है कि इस विशेष सत्र में एक देश एक चुनाव बिल लाने की खबर से इनकार नहीं किया जा सकता। क्योंकि जिस तरह विपक्ष एक हो रहा है, राजनीतिक घटनाक्रम अति तेजी से बदल रहे हैं, राज्यों के चुनाव सर पर हैं, इस बीच एक देश एक चुनाव की चर्चा से देश हैरान है। किंतु चूंकि आज 1 सितंबर 2023 को दिनभर इस विषय पर डिबेट और चर्चाएं हो रही है इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आलेख के माध्यम से चर्चा करेंगे। एक देश एक चुनाव महिला आरक्षण बिल समय की मांग है। परंतु विपक्ष व राज्यों के सुझावों को रेखांकित करना जरूरी है।

साथियों बात अगर हम संसद के विशेष सत्र की करें तो केंद्रीय संसदीय मंत्री ने ट्वीट करते हुए लिखा कि संसद का विशेष सत्र (17वीं लोकसभा का 13वां सत्र और राज्यसभा का 261वां सत्र) आगामी 18 से 22 सितंबर के दौरान होगा, जिसमें 5 बैठकें होंगी। अमृत काल के समय में होने वाले इस सत्र में संसद में सार्थक चर्चा और बहस होने को लेकर आशान्वित हूं। संसद का पिछला मानसून सत्र, 20 जुलाई से 11 अगस्त के बीच आयोजित किया गया था। इस दौरान मणिपुर के मुद्दे पर भाजपा के नेतृत्व वाले सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) और विपक्षी आई.एन.डी.आई.ए (भारतीय राष्ट्रीय विकास समावेशी गठबंधन) ब्लॉक के बीच तीखी नोकझोंक देखी गई थी। वहीं सियासी जगत में सरकार के इस कदम से कई अटकलें लगाई जाने लगी हैं। कुछ विपक्षी नेताओं का मानना है कि सरकार इस तरह के फैसले लेकर समय से पहले लोकसभा चुनाव करा सकती है। वहीं कुछ और नेताओं का मानना है कि केंद्र सरकार इंडिया गठबंधन की लगातार बैठक से डर गई है जिसके चलते जल्द से जल्द चुनाव कराना चाहती है।

साथियों बात अगर हम संसद के विशेष सत्र में संभावित एक देश एक चुनाव विधेयक की करें तो, मीडिया के मुताबिक एक राष्ट्र, एक चुनाव विधेयक, जिसमें लोकसभा चुनाव और राज्य विधानसभा चुनाव एक साथ कराने का प्रस्ताव है, 18 से 22 सितंबर तक होने वाले संसद के विशेष सत्र के दौरान पेश किया जा सकता है।वर्तमान में, ये चुनाव आम तौर पर अलग-अलग समय पर होते हैं। जिसके परिणाम स्वरूप हर साल कई चुनाव चक्र होते हैं। एक राष्ट्र, एक चुनाव प्रस्ताव का लक्ष्य सभी चुनाव एक चक्र के भीतर, संभवतः एक ही दिन में कराना है। हालाँकि, इस प्रस्ताव को विशेष रूप से एक दो राज्यों में सरकार वाली पार्टी के विरोध का सामना करना पड़ा है। इससे पहले, जनवरी में, उसनें आरोप लगाया था कि सत्तारूढ़ पार्टी अपने ऑपरेशन लोटस के तहत निर्वाचित प्रतिनिधियों की बिक्री और खरीद को वैध बनाने के लिए इस अवधारणा का उपयोग कर रही थी। पार्टी ने उस पर संसदीय प्रणाली से राष्ट्रपति प्रणाली में बदलने का भी आरोप लगाया था। उन्होंने तर्क दिया कि यदि लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होते हैं तो संसाधन संपन्न पार्टियाँ वित्तीय और बाहुबल का उपयोग करके राज्य के मुद्दों पर हावी हो सकती है और संभावित रूप से मतदाताओं के निर्णयों को प्रभावित कर सकती हैं।

दूसरी ओर, सत्ताधारी पार्टी एक साथ चुनाव को, विकास को सुविधाजनक बनाने के तरीके के रूप में देखती है। कई सत्ताधारी पार्टी द्वारा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने बार-बार चुनावों के कारण होने वाले व्यवधान और आदर्श आचार संहिता के कार्यान्वयन के बारे में चिंता व्यक्त की है, जिससे विकास कार्य बाधित होते हैं। वे एक साथ चुनाव कराने की संभावना तलाशने के लिए विपक्ष के नेतृत्व वाली राज्य सरकारों के साथ चर्चा की वकालत करते हैं। जबकि एक राष्ट्र, एक चुनाव विधेयक का उद्देश्य चुनाव प्रक्रिया को सरल बनाना है, इसे राज्य के मुद्दों और शासन पर इसके संभावित प्रभाव के बारे में विरोध और चिंताओं का सामना करना पड़ता है। इस अवधारणा पर राजनीतिक क्षेत्र में बहस जारी रहने की उम्मीद है।

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एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी : संकलनकर्ता, लेखक, कवि, स्तंभकार, चिंतक, कानून लेखक, कर विशेषज्ञ

साथियों बात अगर हम एक देश एक चुनाव पर चर्चा की करें तो, नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार पिछले तीस वर्षों में प्रत्येक वर्ष में किसी न किसी राज्य में चुनाव होता रहा है। इसके साथ ही प्रत्येक राज्य में नगर निकाय एवं पंचायतों के भी चुनाव होते रहते हैं। इसके चलते देश में रह-रहकर चुनाव आचार संहिता के लागू होने की नौबत आती है। इसके कारण न केवल प्रशासनिक एवं नीतिगत फैसले प्रभावित होते हैं, बल्कि देश की ऊर्जा एवं अन्य संसाधनों का अनुपयुक्त प्रयोग भी होता है। अच्छा हो कि यह समझा जाए कि बार-बार होने वाले चुनाव तमाम समस्याओं के जनक एवं अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा बोझ हैं। नीति आयोग ने यह सुझाव दिया था कि कुछ राज्यों की विधान सभाओं के कार्यकाल में विस्तार एवं कुछ राज्यों की विधानसभाओं के कार्यकाल में कटौती करके एक देश एक चुनाव की तरफ बढ़ने की पहल की जा सकती है।

इससे न सिर्फ चुनावी खर्च पर लगाम लगेगी, बल्कि सार्वजनिक धन की भी बचत होगी। प्रशासनिक मशीनरी पर भार कम होने से वह नीतियों के क्रियान्वयन के लिए ज्यादा समय दे सकेगी। केंद्र सरकार का भी ध्यान नीतिगत फैसले लेने और उनके क्रियान्वयन पर अधिक रहेगा। चुनावों की अवधि को घटाने से कार्यदिवसों की बचत होगी। काले धन पर रोक लगेगी तथा राजनीति में बढ़ते अपराधीकरण और भ्रष्टाचार में कमी आएगी। इससे जातीय और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण पर भी अंकुश लगेगा। जब चुनाव आयोग यह कह चुका है कि हम लोकसभा एवं विधान सभाओं के चुनाव एक साथ कराने में सक्षम हैं तो फिर इस दिशा में गंभीर प्रयास क्यों नहीं किए जा रहे हैं?

साथियों दिसंबर 2015 में लॉ कमीशन ने वन नेशन-वन इलेक्शन पर एक रिपोर्ट पेश की थी। इसमें बताया था कि अगर देश में एक साथ ही लोकसभा और विधानसभा के चुनाव कराए जाते हैं, तो इससे करोड़ों रुपए बचाए जा सकते हैं। इसके साथ ही बार-बार चुनाव आचार संहिता न लगने की वजह से डेवलपमेंट वर्क पर भी असर नहीं पड़ेगा। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए सिफारिश की गई थी कि देश में एक साथ चुनाव कराए जाने चाहिए। माननीय पीएम भी अनेक मंचों से एक देश एक चुनाव की बात कह चुके हैं। नीति आयोग, विधि आयोग एवं अन्य समीक्षा समितियों ने भी लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने की पहल का समर्थन किया है।

देखा जाए तो यह विचार भारत के लिए कोई नया भी नहीं है। एक देश-एक चुनाव का मतलब हुआ कि पूरे देश में एक साथ ही लोकसभा और विधानसभा के चुनाव हों। आजादी के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ ही होते थे, लेकिन 1968 और 1969 में कई विधानसभाएं समय से पहले ही भंग कर दी गईं। उसके बाद 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गई। इस वजह से एक देश-एक चुनाव की परंपरा टूट गई। इसमें दोराय नहीं कि एक देश एक चुनाव होने से चुनावों पर होने वाले व्यय में भी कमी आएगी। अगर लोकसभा चुनाव के साथ-साथ किसी राज्य में विधानसभा चुनाव भी होते हैं, तो उसका आधा-आधा खर्च केंद्र और राज्य सरकार उठाती है। जुलाई 2018 में लॉ कमीशन ने एक साथ चुनाव को लेकर राजनीतिक पार्टियों की एक मीटिंग बुलाई थी। सिर्फ 4 पार्टियों ने ही इसका समर्थन किया,जबकि 9 विरोध में थीं। भाजपा और कांग्रेस ने इस पर कोई राय नहीं दी थी। विरोध करने वाली पार्टियों की कई चिंताएं भी थीं। उनका कहना था कि अगर साथ चुनाव कराने के कारण समय से पहले विधानसभा भंग कर दी गई और चुनाव में रूलिंग पार्टी या गठबंधन हार गई तो? पार्टियों का ये भी कहना था कि लोकसभा और विधानसभा के चुनाव साथ होने से वोटर स्थानीय मुद्दों की बजाय राष्ट्रीय मुद्दों पर वोट डालेगा।

अतः हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि संसद का विशेष सत्र 18 से 22 सितंबर 2023 सूचना जारी – एक देश एक चुनाव, महिला आरक्षण बिल लाने की संभावना। एक देश एक चुनाव कराना समय की मांग – विपक्ष व राज्यों के सुझावों को रेखांकित करना ज़रूरी है। एक देश एक चुनाव से संसाधनों का दुरुपयोग रुकेगा – 2015 की रिपोर्ट में भी सिफारिश – जनता जनार्दन प्रशासन को लगातार चुनाव आचार संहिता से मुक्ति मिलेगी।

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