श्रीराम पुकार शर्मा, कोलकाता : आज “विश्व मृदा (मिट्टी) दिवस” के पावन अवसर पर आप सभी को हार्दिक बधाई और इस मृदा (मिट्टी) से नियमित स्वस्थ्य पौष्टिकता को प्राप्त करते रहने की शुभ कामनाएँ।
‘मैं कौन हूँ ? और क्या है मेरा परिचय भला ?
मैं ही तो सहती हूँ अकाल, बाढ़, सुखा और पाला।
मैं ही तो तुम्हारी नादानियाँ और दोहन सहती हूँ,
मैं वीर प्रसूति मातृ सदृश तुच्छ मिट्टी ही तो हूँ।’ – स्वयं
हम मानव सहित समस्त जीवधारियों के जीवन में यह साधारण सी दिखने वाली मृदा (मिट्टी) का विशेष महत्व है। हमारी उदर पूर्ती से लेकर हमारी सम्पूर्ण जीवन-लीला ही इस मृदा से संचालित होते हैं। यह तो जगत-जननी है, पर हम मानव अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए इसका नियमित दोहन करते जा रहे हैं और बेचारी माता तथा गोमाता की भाँति बिना कुछ भी बोले यह सब कुछ चुपचाप सहती है। नतीजन आज विश्व के कई हिस्सों में उपजाऊ मृदा बंजर हो रही है। जिसका कारण बढ़ती आबादी के अनुकूल कृषि उत्पादनों की मांग में निरंतर वृद्धि को पूर्ती करने के लिए किसानों द्वारा ज्यादा रसायनिक खादों और कीटनाशक दवाईयों का इस्तेमाल करना है।
ऐसा करने से मृदा के जैविक गुणों में निरंतर कमी आने की वजह से मृदा की उपजाऊ क्षमता में लगातार गिरावट आ रही है और मृदा निरंतर रासायनिक प्रदूषण का भी शिकार हो रही है। जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप वायुमंडल में ‘ग्रीनहाउस गैसों’ का उत्सर्जन और ‘ग्लोबल वार्मिंग’ मृदा क्षरण के कुछ प्रमुख कारण हो सकता है। संपूर्ण मृदा का 33 प्रतिशत पहले से ही बंजर या निम्नीकृत (Degraded) हो चुका है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हमारे भोजन का 95 प्रतिशत भाग मृदा से ही प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्राप्त होते हैं। वर्तमान में करीब 815 मिलियन लोगों का भोजन असुरक्षित हो चूका है और लगभग 2 अरब लोग पोषक रूप से विपन्न हो चुके हैं, लेकिन हम आप चाहे तो मृदा में सुधार कर इस सांसारिक विपदा को अवश्य ही कम कर सकते हैं।
इस “विश्व मृदा दिवस” का परम उद्देश्य ही मृदा (मिट्टी) के स्वास्थ्य के प्रति तथा जीवन में मृदा (मिट्टी) के योगदान के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ाना है। इसके लिए क्षेत्रीयता के आधार पर और कुछ देशीय आधार पर अवश्य ही कुछ न कुछ प्रयास किये जाते रहे हैं। वर्ष 2002 में ‘इंटरनेशनल यूनियन ऑफ़ सोइल साइंसेज’ (IUSS) द्वारा मृदा के महत्त्व के बारे में बताने के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय दिवस की सिफारिश की गई थी। थाईलैंड के राजा दिवंगत एच.एम. राजा भूमिबोल अदुल्यादेज के नेतृत्व में और वैश्विक मृदा साझेदारी के ढांचे के अंतर्गत, ‘संयुक्त राष्ट्र महासंघ’ के ‘खाद्य एवं कृषि संगठन’ (Food and Agriculture Organization, FAO) ने एक वैश्विक जागरूकता बढ़ाने वाले मंच के रूप में WSD की औपचारिक स्थापना का समर्थन किया था।
20 दिसंबर, 2013 को ‘खाद्य एवं कृषि संगठन’ की विश्व स्तरीय सभा ने 68 वें संयुक्त राष्ट्र महासभा में इसको आधिकारिक रूप से प्रतिवर्ष 5 दिसंबर को “विश्व मृदा दिवस” मनाने के लिए सामूहिक अनुरोध की, जिसे संयुक्त राष्ट्र महासंघ ने सम्मान देते हुए सहर्ष स्वीकार किया। वर्ष 2015 से प्रतिवर्ष 5 दिसम्बर को ‘अंतरराष्ट्रीय मृदा वर्ष’ यानि (World Soil Day) के रूप में मनाने की आधिकारी घोषणा कर दी।
मृदा का निर्माण खनिज, कार्बनिक पदार्थ और वायु के विभिन्न अनुपातों से होता है, जो किसी भी सजीव के लिए महत्वपूर्ण होती है। इसी से ही पौधे का क्रमिक विकास होता है, जिस पर कई कीड़ों और जीवों का जीवन निर्भर करता है। मृदा ही समस्त जीवधारियों के लिए भोजन, आश्रय, चिकित्सा और आवरण जनित आवश्यक ‘जीवित कारकों’ का मूल स्रोत है। इसलिए, मृदा का संरक्षण कर हम स्वयं अपना ही संरक्षण करते हैं।
“विश्व मृदा दिवस” को मनाने का उदेश्य सिर्फ किसानों ही नहीं, बल्कि आम लोगों को भी मृदा की महत्ता के बारे में बताना और उसे स्वस्थ्मय प्रदान करने क्र लिए जागरूक करना है, ताकि लोग मृदा के नियमित परीक्षण करवाते रहें और आवश्यकतानुसार उसमें जैविक खाद मिलाते रहें। मृदा के प्राकृतिक और अप्राकृतिक कटाव को रोकना या कम करना भी जरूरी है और इस दिशा में हम सभी को मिलकर काम करना भी आवश्यक है, ताकि बढ़ती आबादी हेतु खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
इसके लिए सन् 2008 मृदा स्वस्थ्य संरक्षण के प्रबल समर्थक और पूर्ण रूपेण समर्पित कार्यकर्ता थाईलैंड साम्राज्य के राजा भूमिबोल अदुल्यादेज के द्वारा मृदा प्रबंधन, खाद्य सुरक्षा और गरीबी उन्मूलन के महत्त्व के प्रति जागरूकता फैलाने के लिये उनके नाम पर ही एक “विश्व मृदा पुरस्कार” की शुरुआत की गई। यह पुरस्कार उन व्यक्तियों या संस्थानों को दिया जाता है, जो प्रभावशाली तरीके से सफलतापूर्वक “विश्व मृदा दिवस समारोह” का आयोजन कर मृदा संरक्षण के विषय में लोगों में जागरूकता को फैलाते हैं।
“विश्व मृदा दिवस” के अवसर पर प्रतिवर्ष ही मृदा, धरती, पेड़-पौधे और वातावरण से सम्बन्धित कुछ विशेष नारा (स्लोगन) देकर इनके संरक्षण के उपाय और लोगों में जागरूकता फ़ैलाने की कोशिश की जाती है, यथा, – “ग्रह की देख-भाल भूमि से शुरू होती है”, “मिट्टी को जीवित रखना, मिट्टी की जैव विविधता की रक्षा करना”, “स्वार्थी मत बनो, धरती की रक्षा के बारे में सोचो”, “हमें मृदा के अनुकूल कार्य करना है, प्रतिकूल नहीं” आदि। “विश्व मृदा दिवस” के अवसर आप-हम सभी मृदा की स्वस्थता सहित अपनी पृथ्वी की स्वस्थता हेतु कार्य करने के लिए संकल्प ग्रहण करें औए अपनी भावी संतान को स्वथ्य वातावरण प्रदान करने के लिए एक विशेष कदम बढायें।