भगवतीचरण वर्मा जी की जयंती पर विशेष…

श्रीराम पुकार शर्मा

हम दीवानों की क्या हस्ती, आज यहाँ कल वहाँ चले।मस्ती का आलम साथ चला, हम धूल उड़ाते जहाँ चले।

‘दीवानों की मस्ती में धूल उड़ाते चलने वाले’ मानव समाज में व्याप्त रिश्तों की गहरी समझ रख युगीन विसंगतियों पर प्रहार करते हुए नवयुग के सृजन की दिशा में आगे बढ़ने के लिए पाठक वर्ग को प्रेरित करने वाले हिन्दी साहित्य के मूर्धन्य हस्ताक्षर भगवतीचरण वर्मा को उनकी 118 वीं जयंती पर हम उन्हें सादर हार्दिक नमन करते हैं I

भगवतीचरण वर्मा का जन्म 30 अगस्त 1903 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के सफीपुर में हुआ था। उनका व्यक्तित्व शायराना अल्हड़पन, रंगीनी और मस्ती का सुधरा-सँवारा हुआ रूप है, जो किसी साहित्यिक ‘वाद’ विशेष की परिधि में बहुत दिनों तक बंधे न रह सका है I उन्होंने अपने साहित्यिक जीवन में एक-एक करके प्राय: प्रत्येक ‘वाद’ को टटोला है, परखा है, देखा है, समझने-अपनाने की चेष्टा की है, परन्तु उनकी सहज स्वातन्त्र्यप्रियता, रूमानी बैचेनी, अल्हड़पन और मस्ती, हर बार उन्हें ‘वादों’ की दीवारें तोड़कर बाहर निकल आने के लिए प्रेरणा देती रहीI उनका यही अल्हड़पन और रूमानी मस्ती इनके कृतित्व में, चाहे किसी भी विधा के अंतर्गत क्यों न हो, प्राण फूँक देती है।

गिरने की गति में मिलकर
गतिमय होकर गतिहीन हुआ।
एकाकीपन से आया था
अब सूनेपन में लीन हुआ।

भगवतीचरण वर्मा कभी उपदेशक या विचारक बनने की कोशिश न की और न उनके मन में ऐसी कोई आकाक्षा ही रहीI वे जीवन भर सहजता के प्रति आस्थावान बने रहे और उसकी वे रक्षा करते रहेI इसीलिए एक के बाद एक साहित्यिक ‘वाद’ को उन्होंने काफी ठोक-बजाकर देखा और ज्यों ही उन्हें विश्वास हुआ कि उसके साथ उनका सहज सम्बन्ध नहीं हो सकता, तो उसे छोड़कर गाते-झूमते, हँसते-हँसाते आगे बढ़े गएI अपने प्रति, अपने ‘अहं’ के प्रति उनका सहज अनुराग ही उन्हें सर्वदा अक्षुण्ण बनाये रखा। किसी दूसरे की मान्यताओं को उन्होंने उधार नहीं लिया। जो थे, उससे भिन्न देखने की चेष्टा भी उन्होंने कभी नहीं की।

जीवन रेंग रहा है लेकर
सौ-सौ संशय, सौ-सौ त्रास,
और डूबती हुई अमा में
आज शाम है बहुत उदास।

भगवतीचरण वर्मा ने लेखन तथा पत्रकारिता के क्षेत्र में बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य किया है। इसके बीच-बीच में वे फ़िल्म तथा आकाशवाणी से भी सम्बद्ध रहे। बाद में वे स्वतंत्र लेखन की वृत्ति अपनाकर लखनऊ में बस गये। अपनी विविध साहित्यिक विधाओं उपन्यास, कहानियाँ, कविताएँ और निबन्धों जैसे सृजनात्मक कार्यों के बदौलत वे साहित्य में अमर हो गए।

भगवतीचरण वर्मा की प्रमुख कृतियाँ
* उपन्यास – पतन, चित्रलेखा, तीन वर्ष, टेढे़-मेढे रास्ते, अपने खिलौने, भूले-बिसरे चित्र, वह फिर नहीं आई, समर्थ्य और सीमा, थके पाँव, सबहिं नचावत राम गोसाईं, प्रश्न और मरीचिका, चाणक्यI
* कविता-संग्रह – भैसागाड़ी, त्रिपथगा, मधुकण, प्रेम-संगीत, और मानव,
* कहानी-संग्रह मोर्चाबंदी,
नाटक – वसीहत, रुपया तुम्हें खा गया,
* संस्मरण – अतीत के गर्भ से

‘चित्रलेखा’, तीन वर्ष, भूले-बिसरे चित्र, सबहिं नचावत राम गोसाईं आदि उत्कृष्ट उपन्यासों ने भगवतीचरण वर्मा को मुख्यतः उपन्यासकार के रूप में साहित्यिक मंच पर इस कदर स्थापित कर दिए कि उनकी अन्य साहित्यिक विधाएँ पराई-सी हो गई हैंI सन् 1961 में साहित्यिक साधना के लिए भगवतीचरण वर्मा को ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ और सन् 1969 में ‘वाचस्पति’ उपाधि से विभूषित किया गया। सन् 1978 में इनको राज्यसभा के लिए चुना गया। राज्य सभा की सदस्यता के दौरान ही 5 अक्टूबर, 1981 को दिल्ली में इन्होने अपनी आखिरी साँस ली।

भाषा पर गहरी पकड़ रखने वाले भगवतीचरण वर्मा की रचनाएँ आज भी पूर्णतः प्रासंगिक हैंI परन्तु आधुनिक साहित्यिक विशेष चमक में भगवतीचरण वर्मा और उनकी साहित्यिक विधाओं की प्रासंगिकता कहीं खोई हुई सी प्रतीत होती है।

मूल स्त्रोत – गूगल
श्रीराम पुकार शर्मा

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