नृसिंह जयंती पर विशेष…

वाराणसी । हिंदू मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु के दशावतार की कथा अत्यधिक प्रचलित हैं। इनमें उनका चतुर्थ अवतार नृसिंह का है। नृसिंह जयंती के दिन उन्होंने यह अवतार लिया था। इस दिन भगवान विष्णु अपने नृसिंह अथवा नृसिंह (आधा आदमी और आधा सिंह रूप) के रूप में पृथ्वी पर आए थे। इसलिए, इस दिन को नृसिंह जयंती के रूप में बहुत खुशी के साथ मनाया जाता है। यह जीवन से समस्त प्रकार की नकारात्मक शक्तियों को दूर करने तथा अधर्म पर धर्म की विजय के प्रतीक रूप में भी मनाया जाता है। नृसिंह जयंती को जीवन तथा परिवार में छिपी हुई समस्त प्रकार की नेगेटिविटी को दूर करने के लिए सर्वाधिक उपयुक्त माना जाता है, जिन्हें यदि समय रहते दूर नहीं किया जाए तो आपके स्वास्थ्य, कॅरियर, वित्त, लव लाइफ या यहां तक कि आपके परिवार को भी प्रभावित कर सकती हैं।

यह त्यौहार हिंदू पंचांग के अनुसार वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है।

नृसिंह जयंती की तिथि :  14 मई 2022 दिन- शनिवार
सायंकाल पूजा का समय – 04:22 से 07:00
अवधि – 02 घण्टे 39 मिनट
अगले दिन का पारण समय – 12:45 मध्याह्न 15 मई
मध्याह्न संकल्प का समय – 11:04 से 01:43 दोपहर
चतुर्दशी तिथि प्रारम्भ – 14 मई 2022 को 03:22 दोपहर
चतुर्दशी तिथि समाप्त – 15 मई 2022 को 12:45 मध्याह्न

नृसिंह जयंती का महत्व : नृसिंह जयंती का लक्ष्य अधर्म को नष्ट करना और धर्म के मार्ग पर चलना है। जो इस दिन उपवास रखता है और सच्चे मन से भगवान नृसिंह की आराधना करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। विद्वान ज्योतिषियों के अनुसार यदि किसी व्यक्ति के शत्रु अत्यधिक प्रबल हो रहे हैं और वह उनसे पीड़ित है तो उसे भगवान नृसिंह की प्रसन्नता हेतु अनुष्ठान करना चाहिए। इससे समस्त शत्रु शांत होते हैं और बड़े से बड़ा दुर्भाग्य भी सौभाग्य में बदल जाता है। भगवान नृसिंह के भक्तों को जीवन में कभी कोई परेशान अथवा पीड़ित नहीं कर सकता।

नृसिंह जयंती पर ऐसे करें अनुष्ठान : भगवान विष्णु का यह अवतार अत्यन्त ही उग्र है, परन्तु जिन पर इनकी कृपा हो जाएं, उनके समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं। इस दिन भगवान नृसिंह को प्रसन्न करने के लिए कुछ विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं जो निम्न प्रकार हैं-

* सूर्योदय से पूर्व ही उठ कर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं।
* इसके बाद साफ स्वच्छ धुले हुए वस्त्र पहन शुद्ध आसन पर विराजमान हों।
* भगवान नृसिंह की पूजा आरंभ करें।
* उन्हें चंदन, केसर, नारियल, फल और फूल आदि अर्पित करें।
* तत्पश्चात् ‘नृसिंह गायत्री मंत्र’ का अधिकाधिक जप करें तथा पूरे दिन व्रत करें।
* इस दिन भक्तों को अपनी क्षमता अनुसार तिल अथवा सोने जैसी वस्तुओं का दान करना चाहिए।

नृसिंह जयंती की कथा : भगवान विष्णु के नृसिंह अवतार के संबंध में पुराणों में एक कथा मिलती है। इस कथा के अनुसार प्राचीन भारत में कश्यप नाम के एक ऋषि रहते थे। उनके और उनकी पत्नी दिति के दो पुत्र थे जिनका नाम हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप था। ये दोनों ही पुत्र अत्यन्त अत्याचारी और दूसरों को कष्ट देने वाले थे। उनके अत्याचारों से धरती को मुक्त कराने के लिए भगवान विष्णु ने वराह अवतार (सूअर) धारण कर हिरण्याक्ष का वध किया था। इससे रुष्ट हो हिरण्यकश्यप ने अपने भाई की मृत्यु का बदला लेने का संकल्प लिया। उसे ब्रह्माजी की कड़ी तपस्या कर अजेय होने का वरदान प्राप्त किया।

हिरण्यकश्यप इस शक्ति का दुरूपयोग करने लगा। उसने स्वर्ग पर अधिकार कर लिया और देवताओं, ऋषियों और मुनियों (तपस्वियों) को परेशान करना शुरू कर दिया। इसके बाद उसने पूरी सृष्टि में अपने अत्याचार से त्राहि-त्राहि मचा दी। उस समय उसकी पत्नी ने प्रह्लाद नामक एक बालक को जन्म दिया। राक्षस परिवार में पैदा होने के बावजूद, प्रह्लाद भगवान विष्णु का अनन्य भक्त था। वह अत्यन्त भक्ति और प्रेम के साथ भगवान विष्णु की पूजा किया करता। उसके पिता उसे सदैव मना करते परन्तु वह नहीं माना। इससे क्रोधित होकर हिरण्यकश्यप ने अपने ही पुत्र को मारने का इरादा किया।

उसने कई बार प्रह्लाद को मारने का प्रयास किया परन्तु भगवान विष्णु की कृपा के कारण सभी प्रयास व्यर्थ हो गए। अंत में उसने अपने पुत्र को जिंदा जलाने का निर्णय किया। प्रह्लाद को अपनी बुआ होलिका के साथ आग में बैठा दिया गया। होलिका को आग में नहीं जलने का वरदान मिला हुआ था परन्तु भगवान विष्णु की लीला से उसका वरदान निष्फल हो गया और वह अग्नि में जल कर भस्म हो गई जबकि प्रह्लाद सकुशल आग से जीवित निकल आया।
इस पर बुरी तरह से क्रोधित हो हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को पकड़ लिया और उससे पूछा, “तुम्हारा भगवान कहां है?” उसने प्रह्लाद को अपने भगवान को दिखाने के लिए कहा, ऐसा नहीं करने पर उसकी हत्या की धमकी दी। तब भगवान विष्णु ने प्रह्लाद को बचाने के लिए एक स्तंभ से नृसिंह रूप लेकर प्रकट हुए।

हिरण्यकश्यप को वरदान मिला हुआ था कि उसकी मृत्यु मानव या पशु के हाथों नहीं होगी, वह न दिन में मारा जा सकेगा और न ही रात में। उसकी मृत्यु न शस्त्र से होगी, न अस्त्र से होगी। न वह अंदर मरेगा, न बाहर मरेगा, न ऊपर मरेगा, न नीचे मरेगा। इसलिए, भगवान विष्णु नृसिंह (आधे आदमी और आधे शेर का शरीर) स्वरूप में प्रकट हुए। उन्होंने हिरण्यकश्यप को अपनी गोद में लेटाया और अपने तेज नाखूनों से उसे मार डाला।

ईश्वर आप सभी के जीवन की सभी नकारात्मक शक्तियों को दूर कर आपको शांति, समृद्धि तथा खुशियां प्रदान करें। आपको नृसिंह जयंती की अत्यन्त शुभकामनाएं।

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पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री

ज्योतिर्विद वास्तु दैवज्ञ
पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री
मो. 9993874848

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