मई दिवस पर विशेष : अशोक वर्मा “हमदर्द” की कविता – बाल मजदूर

।।बाल मजदूर।।

आंख मिचता
आसुओं से धरती को सींचता
लेकर भूख पेट में
चल पड़ता है
पथिक बन कर
मुठ्ठी भर दानों की तलाश में
यह बाल मजदूर है।
शिक्षा से दूर
इसलिये कि
बचपन से हीं
अपनें परिवार के
कर्ज़ को चुकाता है
ज्यादातर अपनें
पियक्कड़ बाप का पाप
मजदूरी सहित
खुद ढोता है, रोता है
कभी-कभी ये
भूखा पेट भी सोता है
यह बाल मजदूर है।
कभी-कभी
कुछ धनवान
जो मंच पर भोले
विज्ञापनों में
दयावान दिखते है
उनके भी हाथों
पीटते है ये बाल मजदूर
जहां सिसकता है
बाल्यावस्था में
पैवंद के अंदर
एक छोटा सा दिल
तार-तार होती है
मानवता
तभी जन्म होता है
नक्सलवाद का
और उठाते है ये
बाल मजदूर
अपनें हाथों में
अस्त्र शस्त्र
और विनाशकाय
लीला करनें को भी
होते है तैयार
ये बाल मजदूर है।
शिक्षा का अभाव
डरा सहमा स्वभाव
घर में अभाव
फिर भी,
कुछ करनें की चाव
ये बाल मजदूर है।
स्थाई न कोई काम
मेहनत पूरा थोड़ा दाम
गाली गलौज
और बदनाम
ये बाल मजदूर है।

अशोक वर्मा “हमदर्द”, लेखक

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