“नाहीं कहली”
खुलि के कबहूँ आपन उ बात नाहीं कहली,
जागल जवन प्यार में ज़ज्बात नाहीं कहली !
जानि गइनीं उनुका चुप्पी के राज हम,
चुप रहि के अपना दिल के हालात नाहीं कहली !
रूसल बा उनुकर मनवा टूटल भी बाs त का,
सौ झूठ सुनली तबो दिन के राति नाहीं कहली !
अंखिया से जब बहेला गंगा-जमुन के धार,
दू बूँद आँसुवन के बरसात नाहीं कहली !
उ बान्हि लिहली ख़ुद के अपने ही बान्ह में,
निज नेह के उ बदलल हालात नाहीं कहली !
गावेली बिरहा के उ भावन में गूँथि के,
बाकिर ओ दर्द के भी नगमा उ नाहीं कहली !