लोकनायक जयप्रकाश की जयंती पर विशेष आलेख

“है जयप्रकाश वह नाम जिसे इतिहास आदर देता है।
बढ़कर जिसके पद चिह्नों को स्वयं अंकित कर देता है।
कहते हैं जो यह प्रकाश, नहीं मरण से जो डरता है।
ज्वाला को बुझते देख कुंड में कूद स्वयं जो पड़ता है।।”

श्रीराम पुकार शर्मा

श्रीराम पुकार शर्मा : एक महान स्वतंत्रता सेनानी, जिन्होंने अपनी प्रखर व ओजपूर्ण वाणियों तथा प्रत्यक्ष चोटों से स्वतंत्रतापूर्व अंग्रेजी दीवारों को जर्जर करते हुए ढाहने में अपनी अहम भूमिका का निर्वाहन किया था, तो स्वातंत्र्योत्तर भारत को भी भ्रष्टाचार से मुक्त करने के लिए राजनीतिक-समर में वृद्ध ‘कुँवर’ सदृश उतरकर शासक वर्ग को उनकी स्थिति का आभास करवा दिया। वह महान ऐतिहासिक युगपुरुष ‘जेपी’ नाम से प्रसिद्ध लोकनायक ‘जयप्रकाश नारायण’ थे। लोकनायक जयप्रकाश नारायण की 119 वीं जयन्ती पर सादर हार्दिक नमन।

लोकनायक जय प्रकाश नारायण जी का जन्म 11 अक्टूबर, 1902 को बिहार में वर्तमान छपरा के सिताबदियारा में गाँधीवादी विचारधारा और कार्यों के पोषक देवकी बाबू तथा फूलरानी देवी के अंगान में हुआ था। इस बालक की विचित्रता तो देखिए चार वर्ष तक दाँत नहीं आया था। अतः स्वाभाविक बोल पाने में असमर्थ ही रहा, जिससे इनकी माताजी इन्हें ‘बऊल जी’ कहती थीं। फिर जब इसने बोलना आरम्भ किया, तो इसकी वाणी में ओज झलकने लगा और फिर बड़े-बड़े की बोलती बंद कर दी।

1920 में इनका विवाह मृदुलत स्वभाव की स्वामिनी ‘प्रभावती’ नामक सुंदर और घर-गृहस्थी में निपुण कन्या के साथ हुआ। चुकी प्रभावती के पिता ब्रजकिशोर जी अपने अंचल के एक ख्याति प्राप्त व्यक्ति थे। उनपर गाँधी जी का अपार स्नेह भी रहा था। महात्मा गाँधी के चम्पारण प्रवास के समय ब्रजकिशोर जी का गाँधी जी से नियमित साक्षात्कार हुआ करता था, के बार उनकी पुत्री प्रभावती भी उनके साथ ही गाँधी जी से मिलने चम्पारण गयी थी।

पटना से शुरुआती पढ़ाई करने के बाद जयप्रकाश नारायण उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका चले गए। फिर वह स्वदेश लौट कर मातृभूमि की आजादी हेतु स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय हो गए। भारत में ब्रिटिश हुक़ूमत के ख़िलाफ़ सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्हें1932 में एक वर्ष की क़ैद हुई। जेल से रिहा होने के बाद ही स्वतंत्रता आंदोलन को और अधिक तीव्र करने के लिए जयप्रकाश नारायण ने ‘कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी’ के गठन में अपनी अग्रणी भूमिका निभाई।

द्वितीय विश्व युद्ध में इंग्लैंड के पक्ष में भारत की भागीदारी का प्रबल विरोध करने के कारण 1939 में जयप्रकाश नारायण को पुनः गिरफ़्तार कर हज़ारी बाग़ जेल में डाल दिया गया था। लेकिन दीपावली त्योहार के जश्न के बीच जयप्रकाश नारायण अपने छ: सहयोगियों के साथ धोती के सहारे जेल परिसर को लांघ गये। कुछ दिन बाद 1943 में जयप्रकाश और राममनोहर लोहिया दोनों को ही गिरफ़्तार कर लिया गया। किन्तु वे लोग फिर से फ़रार हो गये। अंग्रेजी पुलिस के साथ आंख-मिचौली का यह खेल आगे कुछ वर्ष तक चलता ही रहा।

ऐसे में ही जयप्रकाश नारायण जी को रावलपिंडी में गिरफ्तार कर लाहौर की काल कोठरी में रखा गया। कुछ दिन बाद ही उन्हें वहाँ से आगरा सेन्ट्रल जेल भेज दिया गया।

‘जेपी’ अर्थात जय प्रकाश नारायण अत्यन्त ही परिश्रमी व्यक्ति थे। भारत माता को आज़ाद कराने हेतु इन्होंने अंग्रेजों के जुल्मों को अपने सीने पर झेला, पर कभी अंग्रेज़ों के सामने नतमस्तक नहीं हुए। संघर्षों के दौरान कई बार उनकी पत्नी प्रभावती भी गिरफ्तार हुईं, पर इससे भी ‘जेपी’ का उत्साह कम न हुआ, बल्कि और भी बढ़ ही गया।

जयप्रकाश नारायण ने विश्व स्तर पर अपनी आवाज़ बुलन्द करते हुए कहा था कि विश्व के संकट को मद्देनज़र रखते हुए भारत को आज़ादी प्राप्त होना अति आवश्यक है। जब तक हम आज़ाद न होंगे, हमारा स्वतंत्र अस्तित्व क़ायम न होगा, तब तक हम विकास के पथ पर अग्रसर न हो सकेंगे।

उधर ब्रिटेन में ‘कन्जरवेटिव पार्टी’ की हार हुई और ‘लिबरल पार्टी’ सत्ता में आयी। सत्ता सम्भालने के बाद ‘लिबरल पार्टी’ ने घोषणा की कि वह भारत को शीघ्र ही आज़ाद करने वाली है। जयप्रकाश नारायण का कार्य तपस्या पूर्ण हुआ। सामूहिक अथक प्रयास के फलस्वरूप 15 अगस्त, सन् 1947 को हमारा देश आज़ाद हो गया।

जयप्रकाश नारायण का राजनीति से सम्बद्ध ही भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु था। अतः स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जयप्रकाश नारायण ने ‘प्रजा सोशलिस्ट पार्टी’ से इस्तीफ़ा दे दिया और चुनावी राजनीति से बिल्कुल अलग होकर भूमि सुधार के लिए विनोबा भावे के ‘भूदान आंदोलन’ और ‘सर्वोदय आंदोलन’ से जुड़ गए।

जयप्रकाश नारायण ने तत्कालीन भारतीय राजनीति को ही नहीं, बल्कि आम जनजीवन को एक नई दिशा दी। लेकिन यह बात भी सत्य है कि सार्वजनिक जीवन में जिन मूल्यों की स्थापना वे करना चाहते थे, वे मूल्य बहुत हद तक देश की राजनीतिक पार्टियों को स्वीकार्य नहीं थे, क्योंकि ये मूल्य स्वार्थ एवं पदलोलुपता की स्थितियों को समाप्त करने के पक्षपाती थे, राष्ट्रीयता की भावना एवं नैतिकता की स्थापना करने के पक्ष में थे। राजनीति को वे सत्ता सुख कदापि नहीं, वरन लोक सेवा का माध्यम बनाना चाहते थे।

सात के दशक में तत्कालीन इंदिरा गाँधी सरकार निरंतर भ्रष्टाचार और महंगाई को बढ़ाती हुई अपने ही देशवासियों पर बंदूक ताने खड़ी हो गई। उनकी सरकार को यह भ्रम हो गया कि राजनीतिक समर वीर विहीन हो चुका है। अतः जनता की इच्छा को कुचलकर निज स्वार्थ की पूर्ति को ही नेतागण, सरकारी नौकरशाह, कर्मचारी आदि महत्व देने लगे। 1975 में निचली अदालत में इंदिरा गांधी पर चुनावों में भी पर्याप्त भ्रष्टाचार का आरोप साबित हो गया।

ऐसे समय में इतिहास अपने आप को एक बार फिर से दुहराते हुए वीर कुँवर सिंह की भाँति 72 वर्षीय वृद्ध राजनीतिक समर योद्धा जयप्रकाश नारायण को आगे बढाया और उन्होंने पाँच जून को घोषणा की —
“भ्रष्टाचार मिटाना, बेरोजगारी दूर करना, शिक्षा में क्रांति लाना, आदि ऐसी चीजें हैं, जो आज की व्यवस्था से पूरी नहीं हो सकतीं; क्योंकि वे इस व्यवस्था की ही उपज हैं। वे तभी पूरी हो सकती हैं जब सम्पूर्ण व्यवस्था बदल दी जाए और सम्पूर्ण व्यवस्था के परिवर्तन के लिए क्रान्ति, ’सम्पूर्ण क्रान्ति’ आवश्यक है।”

हकीकत में सम्पूर्ण क्रान्ति के आह्वान उन्होंने श्रीमती इंदिरा गांधी की सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए किया था। सम्पूर्ण क्रांति की तपिश इतनी भयानक थी कि केन्द्र में कांग्रेस की सत्ता पिघल गई और इंदिरा गाँधी को सत्ता से हाथ धोना पड़ गया था। बिहार से उठी यह ‘सम्पूर्ण क्रांति’ की चिंगारी देश के कोने-कोने में दवानल बनकर भड़क उठी थी। इंदिरा गाँधी के इस्तीफ़े की मांग की। इससे क्रोधित होकर इंदिरा गाँधी ने राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कर दी और जयप्रकाश नारायण सहित अन्य अनगिनत विपक्षी नेताओं को गिरफ़्तार कर देश के विभिन्न जेलों में डाल दिया गया।

फिर तो दिल्ली के रामलीला मैदान में एक लाख से अधिक लोगों ने जब जय प्रकाश नारायण की गिरफ्तारी के खिलाफ हुंकार भरी, तब आकाश में सिर्फ एक ही सम्मिलित आवाज सुनाई देती थी –
“सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।”

जनवरी 1977 को आपातकाल हटा लिया गया और वर्ष 1977 में ऐसा चुनाव हुआ, जिसमें नेता पीछे, पर जनता आगे हो गई थी। इस चुनाव में लोकनायक जयप्रकाश जी के ‘सम्पूर्ण क्रांति’ के आह्वान पर भारत में प्रथम बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी।

जयप्रकाश नारायण जी आठ अक्टूबर, 1979 को पटना में चिर निद्रा में सो गए।

लोकनायक जयप्रकाश नारायण जी मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित हुए और भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्त्वपूर्ण योगदान के लिये 1998 में लोकनायक जय प्रकाश नारायण को मरणोपरान्त भारत सरकार ने देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया।

लोकनायक जयप्रकाश नारायण के कई अनुयायियों मुख्यमंत्री जैसे महत्वपूर्ण पद तक पहुँच गए हैं, परंतु सत्ता को प्राप्त करते ही सत्ता सुख ने उन्हें अपने राजनीतिक गुरु लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आदर्शों से च्युत कर दिया है।

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