डॉ. अब्दुल कलाम की जयंती पर विशेष आलेख

श्रीराम पुकार शर्मा, कोलकाता : “सबसे उत्तम कार्य क्या होता है? किसी इंसान के दिल को खुश करना, किसी भूखे को खाना खिलाना, जरुरतमन्द की मदद करना, किसी दुखियारे का दुःख हल्का करना और किसी घायल की सेवा करना…।”

क्या ऐसा नहीं लगता है कि मैं आप पाठकों को किसी आध्यात्मिकता की पराकाष्ठ पर विराजमान किसी संत, ज्ञानी या कल्याणकारी व्यक्तित्व के संदर्भ में कुछ बातचीत करने जा रहा हूँ? पर मैं तो उस दिव्य व्यक्तित्व के बारे में कुछ गुनने जा रहा हूँ, जो अपने एक हाथ में मानव कल्याणकारी पुष्पों को थामें शान्ति और मित्रता का दिव्य सन्देश को प्रसारित करता रहा, तो वहीं अपने दूसरे हाथ में शक्ति के परिचायक उपकरणों को थामें ‘अरिमर्दन’ के कठोर संकल्प के साथ राष्ट्र-निर्माण के पथ पर निरंतर अग्रसर रहा। वर्तमान परिवेश में राष्ट्र की प्रगति हेतु पुष्प सहित तलवार की आवश्यकता बढ़ गयी है। तुलसी बाबा ने भी कहा ही है, ‘भय बिनु होत न प्रीत’।

‘जीवन में सफलता तथा अनुकूल परिणाम प्राप्त करने के लिए तीव्र इच्छा, आस्था, अपेक्षा इन तीन शक्तियों को भलीभाँति समझ लेना और उन पर प्रभुत्व स्थापित करना चाहिए’ जैसी गुरु-वाणी को हृदय में धारण कर अपने गरीब परिजन के निरंतर परिश्रम तथा लगन के संस्कार को लेकर ही रामेश्वरम की सड़कों पर अखबार बेच-बेच कर अपनी पढ़ाई की जरूरतें पूरा करने वाला समुद्र किनारे उड़ते पक्षियों को देखकर भविष्य में ‘विमान विज्ञान’ के लक्ष्य को साधने वाला साधारण-सा बालक ‘मिसाइल मैन’ और ‘भारतीय प्रक्षेपास्त्र में पितामह’ के साथ ही साथ भारत जैसे विशाल संप्रभुताजन्य देश के सर्वसम्मति से सर्वोच्च ‘राष्ट्रपति’ पद को प्राप्त किया।

जी हाँ! आपने बिलकुल सही पहचाना, मैं, हम सबके प्रिय ‘डॉ. अब्दुल कलाम आज़ाद’ अर्थात अवुल पकिर जैनुलाब्दीन अब्दुल कलाम आजाद की ही बातें कर रहा हूँ।

अवुल पकिर जैनुलाब्दीन अब्दुल कलाम आजाद का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु के धार्मिक दृष्टि से अति पावन स्थल रामेश्वरम के ‘धनुषकोडी’ नामक गाँव में एक मध्यमवर्ग मछुवारा जैनुलाबदीन के आँगन में हुआ था, जो न तो ज़्यादा पढ़े-लिखे ही थे, न पैसे वाले ही थे। अन्य मछुआरों को अपने नाव को किराये पर देकर अपने बड़े संयुक्त परिवार का भरण-पोषण किया करते थे।

पाँच वर्ष की अवस्था में अब्दुल कलाम का रामेश्वरम की पंचायत के ‘एलेमेंट्री (प्राथमिक) विद्यालय’ में दीक्षा-संस्कार हुआ था। उनका परिवार छोटी-बड़ी मुश्किलों से हमेशा ही जूझता रहता था। जिस कारण अब्दुल कलाम को भी बचपन से ही अपनी जिम्मेदारियों का एहसास होने लगा था। बचपन में अब्दुल कलाम ने अपनी आरंभिक शिक्षा जारी रखने के लिए समयानुसार सड़क पर अख़बार वितरित करने का कार्य भी किया था।

उस समय उनके घर में बिजली नहीं थी, जिस कारण दीपक की रौशनी में ही बालक को अपनी पढ़ाई करनी पड़ती थी। अपने लगन और परिश्रम के बल पर अब्दुल कलाम ने अपने बचपन का ‘फाइटर पायलट’ बनाने के स्वप्न को लेकर 1954-57 में ‘मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलजी’ (MIT) से अंतरिक्ष विज्ञान में स्नातक की उपाधि को ग्रहण की। पर कुछ विशेष परिस्थितिवश बचपन के उस स्वप्न से हट कर ‘हावरक्राफ्ट परियोजना’ पर काम करने के लिए ‘भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान’ (DRDO) से जुड़ गए और इंडियन आर्मी के लिए स्माल हेलीकाप्टर का डिजाईन किया।

फिर 1962 में वे ‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन’ (ISRO) में आये, जहाँ उन्होंने कई उपग्रह प्रक्षेपण परियोजनाओं में अपनी सफलतापूर्वक भूमिका निभाई। परियोजना निदेशक के रूप में उन्होंने भारत के पहले स्वदेशी उपग्रह प्रक्षेपण यान ‘एसएलवी 3’ के निर्माण, फिर ‘रोहिणी उपग्रह’ को अंतरिक्ष में प्रक्षेपित कर उसे पृथ्वी की निकट कक्षा में स्थापित कर भारत को भी ‘अंतर्राष्ट्रीय अन्तरिक्ष क्लब’ का आदरणीय सदस्य बनाया। इन्होने स्वदेशी लक्ष्य भेदी नियंत्रित प्रक्षेपास्त्र (गाइडेड मिसाइल्स) को डिजाइन किया और ‘अग्नि’, एवं ‘पृथ्वी’ जैसे प्रक्षेपास्त्रों को स्वदेशी तकनीक से बनाया था।

इस प्रकार अब्दुल कलाम देश के एक प्रमुख वैज्ञानिक और विज्ञान-व्यवस्थापक के रूप में चार दशकों तक DRDO, ।SRO व भारत के नागरिक अंतरिक्ष कार्यक्रम और सैन्य मिसाइल के विकास जैसे महत्वपूर्ण कार्यों में शामिल रहे। इन्हें ‘बैलेस्टिक मिसाइल’ और ‘प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकी’ के विकास के कार्यों के लिए भारत में ‘मिसाइल मैन’ के रूप में प्रसिद्धि मिलने लगी। इनके ही सफल प्रयास से 1974 में भारत द्वारा पहले मूल परमाणु परीक्षण के एक लम्बे अरसे के बाद दूसरी बार 1998 में पोखरान-द्वितीय परमाणु परीक्षण (बुद्ध मुस्कुराये) में एक निर्णायक, संगठनात्मक, तकनीकी और राजनैतिक प्रयास सफल हो पाया और भारत को परमाणु शक्ति से संपन्न राष्ट्रों की सूची में शामिल करवाया।

भारत को सुपर पॉवर बनाना उनका विद्यार्थी जीवन से ही सपना था, जो साकार होने के पथ पर अग्रसर हुआ। उनका मानना था कि ‘सॉफ़्टवेयर’ का क्षेत्र सभी वर्जनाओं से मुक्त होना चाहिए, ताकि अधिकाधिक लोग इसकी उपयोगिता से लाभांवित हो सकें, तभी हमारा देश सूचना व तकनीक के क्षेत्र में तीव्र गति से विकास कर सकेगा।

अब्दुल कलाम का व्यक्तिगत ज़िन्दगी बेहद अनुशासनबद्ध था। वह शुद्ध शाकाहारी थे। कर्नाटक भक्ति संगीत उनके मन को सकुन देता था। हिंदू संस्कृति में उनका प्रगाढ़ विश्वास था। क़ुरान और भगवद् गीता दोनों ही उन्हें आत्म शक्ति प्रदान किया करते थे। वरिष्ठतम पद पर भी उनका जीवन सज्जनता का प्रतीक था। हमेशा उनकी सादगी और विनम्रता प्रशंसनीय ही रही है। सभी के साथ उनका सदय मित्रता का व्यवहार था, चाहे वो दफतर का नौकर ही क्यूँ न हो।

देश ने अब्दुल कलाम के कार्यों को सम्मान देते हुए उन्हें सर्वसम्मति से 2002 में अपना राष्ट्रपति चुना। वे भारत के पहले ऐसे राष्ट्रपति थे, जो अविवाहित होने के साथ-साथ वैज्ञानिक पृष्ठभूमि से राजनीति में आए थे, पर गैर राजनैतिक व्यक्तित्व होते हुए भी उनकी राष्ट्रवादी सोच और राष्ट्रपति बनने के बाद भारत की कल्याण संबंधी नीतियों के कारण उन्हें कुछ हद तक राजनीतिक दृष्टि से भी सम्पन्न माना जाता है। उन्होंने अपने पाँच वर्ष की सेवा काल को बहुत विवेकशीलता के साथ पूर्ण किया। राष्ट्रपति पद की सेवा के बाद, वह पूर्व की भांति शिक्षण व लेखन कार्य सहित सार्वजनिक सेवा हेतु अपने नागरिक जीवन में लौट आए।

27 जुलाई 2015 की सुबह ही पूर्व राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलम ने ट्वीट करके बताया था कि वह शिलोंग के ‘भारतीय प्रबन्धन संस्थान’ में अपना व्याख्यान देने जा रहे हैं। शाम को वे ‘भारतीय प्रबंधन संस्थान’ शिलोंग में ‘रहने योग्य ग्रह’ पर एक व्याख्यान दे ही रहे थे कि अचानक उन्हें दिल का दौरा पड़ा और वहीं वक्ता मंच पर ही बेहोश हो कर गिर पड़े। उन्हें तत्काल ‘बेथानी अस्पताल’ के ‘ICU’ में ले जाया गया। पर दो घंटे के बाद उनकी मृत्यु की पुष्टि हो गई। दुर्भाग्यवश यही उनके जीवन का आखरी व्याख्यान रहा।

डॉ. अब्दुल कलाम आजाद ने भारतीय युवाओं के मार्गदर्शन के उद्देश्य से ही कई पुस्तकों की रचना की। यथा – ‘इग्नाइटेड माइंडस: अनलीशिंग द पावर विदीन इंडिया’, ‘इंडिया- माय-ड्रीम’, ‘एनविजनिंग अन एमपावर्ड नेशन: टेक्नालजी फार सोसायटल ट्रांसफारमेशन’, ‘विंग्स ऑफ फायर: एन आटोबायोग्राफी ऑफ एपीजे अब्दुल कलाम’, ‘साइंटिस्ट टू प्रेसिडेंट’, ‘माय जर्नी’ आदि हैं। उन्होंने तमिल भाषा में अनेक कविताऐं भी लिखी हैं।

डॉ. अब्दुल कलाम आजाद को समयानुसार लगभग चालीस विश्वविद्यालयों द्वारा मानद ‘डॉक्टरेट’ की उपाधियाँ प्रदान की गयी थीं। भारत सरकार द्वारा उन्हें 1981 में ‘पद्म भूषण’, 1990 में ‘पद्म विभूषण’ तथा 1997 में ‘भारत रत्न’ सम्मान प्रदान किया गया था। वर्ष 2005 में स्विट्ज़रलैंड की सरकार ने अब्दुल कलाम आजाद के स्विट्ज़रलैंड आगमन के उपलक्ष्य में 26 मई को ‘विज्ञान दिवस’ घोषित किया। ‘नेशनल स्पेस सोशायटी’ ने वर्ष 2013 में उन्हें अंतरिक्ष विज्ञान सम्बंधित परियोजनाओं के कुशल संचालन और प्रबंधन के लिए ‘वॉन ब्राउन अवार्ड’ से पुरस्कृत किया। संयुक्त राष्ट्र द्वारा उनके 79 वें जन्मदिन को ‘विश्व विद्यार्थी दिवस’ के रूप में मनाया गया था।

‘….मैं यह बहुत गर्वोक्ति पूर्वक तो नहीं कह सकता कि मेरा जीवन किसी के लिए आदर्श बन सकता है, लेकिन जिस तरह मेरी नियति ने आकार ग्रहण किया है, उससे किसी ऐसे गरीब बच्चे को सांत्वना अवश्य मिलेगी, जो किसी छोटी सी जगह पर सुविधाहीन सामाजिक दशाओं में रह रहा हो। शायद यह ऐसे बच्चों को उनके पिछड़ेपन और निराशा की भावनाओं से विमुक्त होने में अवश्य सहायता करे।’ – डॉ. अब्दुल कलाम आजाद
ऐसे भारतीय दिव्यात्मा को उनकी 90 वीं जयंती पर हम सादर नमन करते हैं।

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