विश्व बाल श्रम निषेध दिवस 12 जून 2023 पर विशेष – 17वां वार्षिक वेबीनार आयोजित

आइए बच्चों को बाल श्रम की बेड़ियों से मुक्त कराने में सहयोग करें
देश और परिवार के सपनों को उड़ान देने बाल श्रम को स्वयंभू होकर रोकना हर नागरिक का कर्तव्य – एडवोकेट किशन भावनानी गोंदिया

किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर बच्चों का नाम आते ही संवेदनशीलता, सहिष्णुता, भावों का कोमल होना, दया लाड प्यार इत्यादि अनेक भावनाएं मन में जागृत हो जाती है!! यह और कुछ नहीं मानवी जीवन में बच्चों के प्रति एक खिंचाव, लगाव और प्यार है या हम यूं कहें कि उनके चार कदम आगे सृष्टि में उपस्थित 84 लाख़ योनियों में भी अपने बच्चों के प्रति अपने अपने स्तर पर गहरा लगाव है। साथियों बात अगर हम भारत की करें तो, भारतवर्ष में प्रारंभ से ही बच्चों को ईश्वर का रूप माना जाता है। ईश्वर के बाल रूप यथा बाल गणेश, बाल गोपाल, बाल कृष्णा, बाल हनुमान आदि इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। भारत की धरती ध्रुव, प्रह्लाद, लव-कुश एवं अभिमन्यु जैसे बाल चरित्रों से पटी हुई है।

भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू कहते थे कि बच्चे देश का भविष्य है इसलिए ये जरूरी है कि उन्हें प्यार दिया जाए और उनकी देखभाल की जाए, जिससे वे अपने पैरों पर खड़े हो सकें। वे बच्चों को राष्ट्र का निर्माता कहते थे। जबकि छोटे बच्चों से श्रमिकों के रूप में काम करवाया जाता है, बाल श्रमिकों की समस्या बहुत पुरानी है। इसके पीछे गरीबी के साथ ही माँ बाप का लोभ और पारिवारिक परिस्थिति कारण होती है। इस समस्या से निपटने के लिए सामाजिक और शासन के स्तर पर प्रयास आवश्यक हैं। साथियों आधुनिक युग में अपेक्षाकृत अधिक बच्चे खासकर कोविड महामारी और उसके बाद की स्थिति में श्रम करने को मजबूर हो गए हैं जिसे रेखांकित करना जरूरी है आज के आर्टिकल में विश्व बाल श्रम निषेध दिवस के रूप में बाल श्रम निषेध पर विस्तृत चर्चा करेंगे।

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी : संकलनकर्ता, लेखक, कवि, स्तंभकार, चिंतक, कानून लेखक, कर विशेषज्ञ

साथियों बात अगर हम विधि और न्याय मंत्रालय द्वारा 12 जून 2023 को बाल श्रम निषेध दिवस मनाने की करें तो इसके एक भाग के रूप में 17वें राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया है। बच्चों को बाल श्रम की बेड़ियों से मुक्त कर उनके भविष्‍य को नया रूप देकर उन्‍हें सशक्‍त बनाने पर ध्यान केंद्रित किया है। साथियों बात अगर हम बाल श्रम के व्यापकता की करें तो, दुनियां भर में बच्चे नियमित रूप से भुगतान और अवैतनिक कार्यों में लगे हुए हैं जो उनके लिए हानिकारक नहीं हैं। हालाँकि, उन्हें बाल श्रमिकों के रूप में वर्गीकृत किया जाता है जब वे काम करने के लिए बहुत छोटे होते हैं, या खतरनाक गतिविधियों में शामिल होते हैं जो उनके शारीरिक, मानसिक, सामाजिक या शैक्षिक विकास से समझौता कर सकते हैं। सबसे कम विकसित देशों में, चार में से एक बच्चे (5 से 17 वर्ष की आयु) से थोड़ा अधिक श्रम में लगे हुए हैं जो उनके स्वास्थ्य और विकास के लिए हानिकारक माना जाता है।

साथियों बात अगर हम बाल श्रम की विभिन्न दृष्टिकोण से परिभाषा की करें तो, सयुक्त राष्ट्र संग के मुताबिक 18 साल से कम उम्र के बच्चो से श्रम कराना कानूनी अपराध है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संघ ने बाल श्रम उम्र 15 साल तय की है। भारत सविधान के अनुसार किसी उद्योग, कारखाने में शारीरिक एवं मानसिक रुप से काम करने की उम्र 5-14 वर्ष की होने पर बालश्रम कहा जाता है। अमेरिका में उम्र 12 साल रखी गयी है। बालश्रम पर लगाम लगाने के लिए कई संवैधानिक प्रावधान बनाये है।
अनुच्छेद 15(3) : बाल श्रम एक ऐसा विषय है, जिस पर संघीय व राज्य सरकारें, दोनों कानून बना सकती हैं।
अनुच्छेद 21: 6-14 साल के बच्चो को निःशुल्क शिक्षा प्रदान की जाएगी।
(धारा 45) अनुच्छेद 23 : बच्चो के खरीद फरोख्त पर रोक लगात है।
अनुच्छेद-24 किसी फैक्ट्री, खान, अन्य संकटमय गतिविधियों यथा-निर्माण कार्य या रेलवे में 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों के नियोजन का प्रतिषेध करता है।

साथियों बात अगर हम श्रम के खिलाफ कानूनों और वर्तमान स्थिति की करें तो, भारत के संविधान, 1950 का अनुच्छेद 24 स्पष्ट करता है कि 14 वर्ष से कम उम्र के किसी भी बच्चे को ऐसे कार्य या कारखाने इत्यादि में न रखा जाये जो खतरनाक हो। कारखाना अधिनियम, बाल अधिनियम, बाल श्रम निरोधक अधिनियम आदि भी बच्चों के अधिकार को सुरक्षा देते हैं किन्तु इसके विपरीत आज की स्थिति बिलकुल भिन्न है। पिछले कुछ वर्षों से भारत सरकार एवं राज्य सरकारों की पहल इस दिशा में सराहनीय है। उनके द्वारा बच्चों के उत्थान के लिए अनेक योजनाओं को प्रारंभ किया गया हैं, जिससे बच्चों के जीवन व शिक्षा पर सकारात्मक प्रभाव दिखे। शिक्षा का अधिकार भी इस दिशा में एक सराहनीय कार्य है। इसके बावजूद बाल-श्रम की समस्या अभी भी एक विकट समस्या के रूप में विराजमान है। इसमें कोई शक नहीं कि बाल-श्रम की समस्या किसी भी देश व समाज के लिए घातक है, बाल-श्रम पर पूर्णतया रोक लगनी चाहिए। बाल-श्रम की समस्या जड़ से समाप्त होना अति आवश्यक है।

साथियों केवल घर का काम नहीं इन बाल श्रमिकों को पटाखे बनाना, कालीन बुनना, वेल्डिंग करना, ताले बनाना, पीतल उद्योग में काम करना, कांच उद्योग, हीरा उद्योग, माचिस, बीड़ी बनाना, खेतों में काम करना (बैल की तरह), कोयले की खानों में, पत्थर खदानों में, सीमेंट उद्योग, दवा उद्योग में तथा होटलों व ढाबों में झूठे बर्तन धोना आदि सभी काम मालिक की मर्ज़ी के अनुसार करने होते हैं। इन समस्त कार्यों के अतिरिक्त कूड़ा बीनना, पोलीथिन की गंदी थैलियाँ चुनना, आदि अनेक कार्य हैं जहाँ ये बच्चे अपने बचपन को नहीं जीते, नरक भुगतते हैं परिवार का पेट पालते हैं। इनके बचपन के लिए न माँ की लोरियां हैं न पिता का दुलार, न खिलौने हैं, न स्कूल न बालदिवस इनकी दुनिया सीमित है तो बस काम काम और काम, धीरे धीरे बीड़ी के अधजले टुकड़े उठाकर धुआं उडाना, यौन शोषण को खेल मानना इनकी नियति बन जाती है।

साथियों बात अगर हम हर साल बाल श्रम निषेध दिवस मनाने की करें तो, दुनियां भर में हर साल 12 जून को विश्व बाल श्रम निषेध दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसको मनाए जाने का उद्देश्य 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से श्रम ना कराकर उन्हें शिक्षा दिलाने और आगे बढ़ने के लिए जागरूक करना है। भारत में बालश्रम की समस्या दशकों से प्रचलित है। भारत सरकार ने बाल श्रम की समस्या को समाप्त करने कदम उठाए हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 23 खतरनाक उद्योगों में बच्चों के रोजगार पर प्रतिबंध लगाता है। भारत की केंद्र सरकार ने 1986 में बालश्रम निषेध और नियमन अधिनियम पारित कर दिया। इस अधिनियम के अनुसार बालश्रम तकनीकी सलाहकार समिति नियुक्त की गई। इस समिति की सिफारिश के अनुसार, खतरनाक उद्योगों में बच्चों की नियुक्ति निषिद्ध है। 1987 में, राष्ट्रीय बाल श्रम नीति बनाई गई थी।

साथियों बात अगर हम बाल श्रम निषेध दिवस के इतिहास की करें तो, विश्व बाल श्रम निषेध दिवस इतिहास विश्व बाल श्रम निषेध दिवस की शुरुआत 2002 में अंतरराष्ट्रीय श्रम संघ ने की इसका मुख्यालय जेनेवा में है, यह संयुक्त राष्ट्र संघ की एक शाखा है। यह सिद्धांत बनाती है और उसे सख्ती से पालन किया जा रहा है उसका ब्योरा रखती है। ये कई अंतराष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुकी है आमसहमति से 2002 से कानून पारित किया गया। जिसमे 14 से कम उम्र के बच्चों से श्रम कराने को अपराध माना गया। इसी साल पहली बार बाल श्रम निषेध दिवस 12 जून को मनाया गया।

साथियों बात अगर हम बाल श्रम रोकने सरकारी योजनाओं की करें तो, बाल फिल्म सोसाइटी,1955 समेकित बाल संरक्षण योजना 2009, बाल न्याय कार्यक्रम फूटपाथ पर रहने वालो के लिए कार्यक्रम, खाद्य सुरक्षा अधिनियम। राष्ट्र बाल श्रम योजना-बाल मजदूरी से मुक्त कराए गए बच्चो के लिए सरक़ार ने बाल श्रम योजना शुरू की है इन्हे विशेष स्कूलों में दाखिला दिलवाया जायेगा साथियों भारतीय गैर सरकारी संगठन जो बाल श्रम के खिलाफ काम कर रहे हैं। बचपन बचाओ आंदोलन, चिल्ड्रेन क्राय फॉर यू, कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रन फाउंडेश, राइड इंडिया, तलाश एसोसिएशन, चाइल्ड लाइन इंडिया फाऊंडेशन, मेक ए डिफरेंस।

साथियों बात अगर हम वर्ष 2023 की थीम की करें तो, सभी के लिए सामाजिक न्याय। बाल श्रम समाप्त करो है। विश्व बाल श्रम निषेध दिवस को हम सभी के लिए एक अवसर के रूप में देखते हैं, जो बाल श्रम को समाप्त करने के लिए समर्पित हैं, यह दिखाने के लिए कि यदि शक्ति और दृढ़ संकल्प को जोड़ दिया जाए तो क्या किया जा सकता है, और प्रयासों को गति देने के लिए बड़ी अत्यावश्यकता की स्थिति सामाजिक न्याय को आगे बढ़ाने के लिए वैश्विक स्तर पर नए प्रयास, विशेष रूप से सामाजिक न्याय के लिए प्रस्तावित वैश्विक गठबंधन के माध्यम से, जो बाल श्रम को समाप्त करने पर जोर देगा।

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि विश्व बालश्रम निषेध दिवस 12 जून 2023 पर विशेष – 17 वां वार्षिक वेबीनार आयोजित।आओ बच्चों को बालश्रम की बेड़ियों से मुक्त कराने में सहयोग करें। देश और परिवार के सपनों को उड़ान देने बालश्रम को स्वयंभू होकर रोकना हर नागरिक का कर्तव्य है।

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