मिर्जापुर। Uttar Pradesh News : बच्चों को सच्ची शिक्षा तभी मिलती है जब वह आध्यात्मिक ज्ञान गुरु की सेवा के साथ-साथ चलती है और इस गुरुकुल तथा मेरे जैसे अधूरे शिक्षक से बड़ा प्रमाण क्या होगा जहां आज भी गुरुकुल परंपरा कायम है। सभी बच्चे आते हैं और आते ही अपने काम में लग जाते हैं। झाड़ू लगाकर एक बच्ची बटोर देगी तो दूसरी फिनाइल डाल कर पोछा लगा कर बैठने के स्थान को एकदम साफ कर देगी तब सभी बच्चे शिक्षा ग्रहण करने बैठते हैं।
अन्यथा शिक्षा केवल सूचना एकत्र करने तक सिमट कर रह जाएगी और आज की दुनिया में कोई भी व्यक्ति वांछित जानकारी इकट्ठा कर सकता है, सब कुछ इंटरनेट पर उपलब्ध है। लेकिन ऐसी शिक्षा बच्चों को बदल नहीं पाती यह सिर्फ और सिर्फ शरीर का पोषण करती है, हमारे अस्तित्व का नहीं।
आध्यात्मिक आचरण, जिम्मेदारी बचपन से ही गुरु की सेवा से ही हासिल होती है। इनके बिना हासिल की गई शिक्षा केवल बड़ी, छोटी, मध्यम आकार की मशीन बनाने का काम करती है, जिनके माता-पिता अक्सर अक्सर अनाथ आश्रम में मिलते हैं।
प्राचीन भारतीय गुरुकुल भी शिक्षण संस्थान ही थे जहां शिष्य 12 वर्षों तक या इससे अधिक समय तक गुरु की सेवा करते हुए, शारीरिक श्रम करते हुए शिक्षा ग्रहण करते थे। सभी शिष्य और सब कुछ जस का तस हमारे यहां गुरुकुल में भी वही विराजमान है जिनको ठीक से बोलना नहीं आता तब से आते हैं बच्चे और लड़कियां देखते ही देखते पता नहीं कब हाईस्कूल, इंटर करने के बाद अपनी राह बनाने निकल पड़ते हैं। यह एक अघोषित सी परंपरा है जो पिछले 23 सालों से चल रही है।
अन्य सभी गांवों की तरह यह भी एक गांव ही है, सभी बच्चे अपने मां-बाप को प्यारे होते हैं। वह उन्हें दुलारती है, प्यार से अपने बच्चे को चूमती है एक मां और फिर अक्सर मैं देखता हूं छोटे बच्चों में उनकी आंखों में काजल लगाने के बाद माथे पर एक टीका लगाती है काला, ताकि किसी की नजर ना लगे और वह बहुत अरमान के साथ अपने बच्चे को मेरे पास शिक्षा लेने भेजती है और मैं भी चाहता हूं कि उन हर मां बाप का जो बहुत ही गरीब परिस्थितियों में जीवन यापन करते हैं, वह सपना जरूर पूरा हो मेरा बेटा साहब बनेगा, जरूर बनेगा इसी सपने को पूरा करने के लिए बच्चों के साथ लगा रहता हूं आप सभी मित्रों की मदद से।