श्रीराम पुकार शर्मा, कोलकाता : विदेशी शक्तियों से देश की आजादी तो प्राप्त हो गई, परन्तु हमारा देशी समाज अभी भी परतंत्रता की बेड़ियों में जकड़ी और पीड़ित थी। ऐसे में साहित्यिक क्षेत्र में भी स्वतंत्र मन जैसे सामाजिक परिवर्तन के लिए साहित्यिक बुद्धिजीवी वर्ग में आवश्यक परिचर्चा भी बड़ी तेजी से चल पड़ी। यह भार भी तो साहित्यकारों को ही वहन करना था। साहित्यिक लोग नयी कहानी अभियान के चलते अपनी-अपनी राय देने लगे थे और उसके अनुरूप कार्य करने लगे थेI ऐसे ही नयी कहानी अभियान को लैंगिक असमानता और वर्गीय असमानता और आर्थिक असमानता पर करार चोट करके अपनी लेखनी को प्रबल बनाने वाली एक सशक्त लेखिका थीं, ‘मन्नू भंडारी’।
मन्नू भंडारी का जन्म मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले के भानपुरा नगर में 3 अप्रेल, 1931 को जाने-माने लेखक सुख सम्पतराय के एक साहित्यिक वातावरण से सुसज्जित आँगन में हुआ था I पिता ने अपनी नवजात कन्या शिशु को बड़े ही अभिमान सहित परिजन के मनोनुकूल नाम ‘महेंद्र कुमारी रखा। महेंद्र कुमारी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा भानपुरा नगर और अजमेर से पूरी की। कलकत्ता यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट हुई और फिर हिंदी भाषा और साहित्य में एम.ए. की डिग्री हासिल करने के लिए वे हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी गयीं।
उन्होंने हिंदी प्रोफेसर के रूप में अपने करियर की शुरुवात की थी। 1952-1961 तक उन्होंने कोलकाता के ‘बालीगंज शिक्षण सदन’ में, 1961-1965 तक कोलकाता के ‘रानी बिरला कॉलेज’ में, 1964-1991 तक दिल्ली के ‘मिरांडा हाउस कॉलेज’, दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ाती थीं I फिर 1992-1994 तक वे विक्रम यूनिवर्सिटी, उज्जैन की ‘प्रेमचंद सृजनपीठ’ की अध्यक्षा भी रहीं।
महेंद्र कुमारी कालांतर में लेखन कार्य के लिए ‘महेंद्र’ का ही प्यारा सा लघु रूप ‘मन्नू’ को अपना लीं, जो उनके नाम का ही पर्याय बन गया। फिर उन्होंने ने कहानी और उपन्यास दोनों विधाओं में अपनी कलम चलाईं। उन्होंने नारी स्वतंत्रता और नारी सशक्तिकरण के प्रति अपनी लेखनी को प्रबल बनाते हुए नौकरशाही में व्याप्त भ्रष्टाचार के बीच फंसा आम आदमी की पीड़ा और दर्द की गहराई को भी उद्घाटित करने लगीं। मन्नू भंडारी को श्रेष्ठ और लोकप्रिय लेखिका होने का गौरव हासिल है।
मन्नू भंडारी जी सबसे ज्यादा अपने दो उपन्यासों के लिए – ‘आपका बंटी’ और ‘महाभोज’ के लिए प्रसिद्ध हुई हैं। पर कई दशकों तक लगातार लेखन क्षेत्र में में सक्रिय रहने के कारण मन्नू भंडारी जी ने इसके अलग दूसरे विषयों पर भी अपनी कलम चलाई हैं। अपनी महत्वपूर्ण कृतियों के साथ ‘मन्नू भंडारी’ हिंदी साहित्य गगन में एक देदीप्यमान नक्षत्र की तरह हमेशा चमकती रहेंगी।
मन्नू भंडारी की साहित्यिक सम्पदा इस प्रकार से हैं –
कहानी संग्रह – एक प्लेट सैलाब, मैं हार गई, तीन निगाहों की एक तस्वीर, यही सच है, त्रिशंकु, श्रेष्ठ कहानियाँ, आँखों देखा झूठ, नायक खलनायक विदूषक। उपन्यास – आपका बंटी, महाभोज, स्वामी, एक इंच मुस्कान और कलवा, एक कहानी यह भी।
उपन्यास – आपका बंटी, महाभोज, स्वामी, एक इंच मुस्कान और कलवा, एक कहानी यह भी।
पटकथाएँ – रजनी, निर्मला, स्वामी, दर्पण। नाटक – बिना दीवारों का घर।
मन्नू भंडारी द्वारा रचित कहानी ‘यही सच है’ पर बासु चैटर्जी ने 1974 में ‘रजनीगंधा’ फिल्म भी बनाई थी, जो काफी प्रसिद्द्ध हुई। इसी तरह 1979 में प्रकाशित उनका उपन्यास ‘महाभोज’ मील का पत्थर साबित हुआ। यह उपन्यास भ्रष्ट अफ़सरशाही, राजनीति और बिखरते हुए समाज के बीच संघर्ष करते हुए मध्यम वर्गीय आदमी की कहानी है। सुप्रसिद्ध साहित्यकार राजेंद्र यादव की पत्नी थीं।
नयी कहानी अभियान और हिंदी साहित्यिक अभियान के समय में लेखक निर्मल वर्मा, राजेंद्र यादव, भीष्म साहनी, कमलेश्वर इत्यादि ने उन्हें अभियान की सबसे प्रसिद्ध लेखिका बताया था। मन्नू भंडारी के निधन से साहित्य जगत् में शोक की लहर है। हिंदी के लेखकों-लेखिकाओं तथा देश के अनगिनत मान्य प्राप्त लोगों द्वारा शोक प्रकट करने की प्रक्रिया जारी है I
मन्नू जी एक बहुत बड़ी लेखक होने के साथ-साथ बहुत अच्छी मनुष्य थीं, जो आज-कल सबसे ज्यादा दुर्लभ होता जा रहा है। मन्नू जी के अंदर मानवता, उदारता, स्नेह ये सब कूट-कूट के भरे हुए थे। उन्होंने बहुत बहादुरी से अपना जीवन जिया है। लगातार उन्होंने नौकरी भी की, टीवी के लिए लिखा, फिल्मों के लिए लिखा और इतनी किताबें लिखीं। उन्होंने अपनी शर्तों पर जीवन जिया यही सबसे बड़ी बात है।
हिंदी की शिखर कथाकार मन्नू भण्डारी का निधन हिंदी और समग्र भारतीय साहित्य के लिए अपूरणीय क्षति है। 90 वर्षीय जीवन में मन्नू जी ने उपन्यास और कहानी के क्षेत्र में बहुमूल्य योगदान दिया और कथावस्तु के साथ शिल्प में भी महत्वपूर्ण अवदान सम्भव किया।
“मन्नू जी के निधन ने एक निर्वात सा उत्पन्न कर दिया। माना कि वे लंबे समय से लेखन में सक्रिय नहीं थीं लेकिन उनका होना एक वटवृक्ष जैसा था जिसकी छाया हिंदी कथाजगत को घेरे थी। आज लग रहा है वह वट गिर गया। हिंदी कहानी का एक महत्वपूर्ण स्त्री स्वर शांत ज़रुर हो गया, मगर उसकी शाखाएं हम सब में से फूटेंगी।“…उनकी लेखनी पीढ़ियों को छूकर गुजरती थी। मन्नू जी आप बेहद याद आएंगी।” – मनीषा कुलश्रेष्ठ, सुप्रसिद्ध कथाकार
मन्नू भंडारी को समयानुसार अनगिनत साहित्यिक सम्मान प्राप्त हुए है – ‘महाभोज’ 1980-1981 के लिए उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान (उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान), भारतीय भाषा परिषद (भारतीय भाषा परिषद), कोलकाता, 1982, काला-कुंज सन्मान (पुरस्कार), नई दिल्ली, 1982, भारतीय संस्कृत संसद कथा समरोह (भारतीय संस्कृत कथा कथा), कोलकाता, 1983, बिहार राज्य भाषा परिषद (बिहार राज्य भाषा परिषद), 1991, राजस्थान संगीत नाटक अकादमी, 2001- 02, महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी (महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी), 2004, हिंदी अकादमी, दिलीली शालका सन्मैन, 2006- 07, मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन (मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन), भवभूति अलंकरण, 2006- 07, के.के. बिड़ला फाउंडेशन ने 18 वें व्यास सम्मान आदि हैं।