साहब! मैं ज़िंदा मुर्दा हूँ।

श्रीराम पुकार शर्मा, कोलकाता : यह कहानी वर्तमान लचर व्यवस्था के द्वारा जबरन मृत घोषित किये गए एक व्यक्ति की है, जो अपने आपको जिन्दा प्रमाणित कर पाने में असफल सिद्ध होता है, क्योंकि वह तो कानूनन मर चूका है। आज की कागजी दुनिया में भला कोई अपने आप को जिन्दा प्रमाणित भी कैसे कर सकता है?
पात्र-परिचय –
खूंखार सिंह : 55 वर्षीय, दुर्बल और लाचार व्यक्ति,
नर्स : 25 वर्षीय, कुछ कठोर स्वभाव वाली महिला,
वार्ड बॉय : 25 वर्षीय का दुबला-पतला नौजवान,
रंग बहादुर : 35 वर्षीय गठीला व्यक्ति,
मंत्री : 50 वर्षीय गर्वीले व्यक्ति,
भूषण : 25 वर्षीय सभ्य परिधान में,
स्टोर कीपर : 35 वर्षीय कठोर स्वभाव व्यक्ति,
सी.एम.ओ : 40 वर्षीय कठोर और नाखुश व्यक्ति,
चपरासी : 25 वर्षीय चापुलुसी व्यक्ति।

किसी अस्पताल के रोगियों का एक कमरा। एक बेड पर खूंखार सिंह नामक रोगी शांत लेटा हुआ है। उसके पास के एक टेबल पर कई दवाइयाँ तथा दवाइयों की कई बोतलें रखी हुई हैं। बेड पर कई कागजी रिपोर्ट युक्त एक बोर्ड भी लटका हुआ है। एक नर्स का प्रवेश –
नर्स : (अपने हाथ के कागज को देखती हुई) यह भी आज मर गया। (बुलाते हुए) वार्ड बॉय …….. वार्ड बॉय …… । (कोई आवाज
नहीं) यहाँ के वार्ड बॉय न जाने कहाँ चले जाते हैं? पता नहीं, काम के समय ही सब के सब कहाँ मर जाते हैं? (पुकारते हुए) वार्ड बॉय ……..।
वार्ड बॉय : (नेपथ्य से) अभी आया सिस्टर! (प्रवेश कर) सिस्टर जी! थोड़ा उधर बैठे चाय पीने लगा था। कहिये, क्या काम करना है?

नर्स : (क्रोध सहित) इसी तरह छुपकर बैठते रहोगे तो एक दिन इस अस्पताल से चलता कर दिए जाओगे। समझे। सुनो। यह बूढा रोगी मर गया है। इसको हटाकर इस पर नई चादर डालो। अभी तुरंत ही एक दूसरा पेशेंट आ रहा है।
वार्ड बॉय : वह तो ठीक है सिस्टर जी। लेकिन कहाँ यह भारी मुर्दा, कहाँ हम तीस किलो का। यह हमसे अकेले न उठेगा और मुर्दा उठाने का काम भी तो मेरा नहीं है, यह काम तो जमादार का है।
नर्स : आलसी कहीं का। ठीक है, बुलाओ जमादार को।
वार्ड बॉय : अभी बुलाता हूँ। (बुलाते हुए) अरे रंग बहादुर…….! रंग बहादुर ……… ! (प्रस्थान)
नर्स : (रोगी खूंखार के शरीर से लगे सभी इलाजी सामानों को हटाती है) इनसे कुछ भी कहा जाय, तो इनसे कुछ न होता है। इनकी कान पर जूँ तक न रेंगती है।
वार्ड बॉय : (प्रवेश करते हुए) सिस्टर जी! रंग बहादुर अस्पताल के बाहर बैठा गप्पे हांक रहा था। वह तो आता ही नहीं था। जबरन उसे बुलाये लाया हूँ।

रंग : (लापरवाही से प्रवेश) कहिये दीदी जी! का बात है? थोड़े सुस्ताय भी नाही देत हय। ई मुदा तुरत बुलाय दउड़त हय।
नर्स : सुनो रंग बहादुर! यह रोगी मर गया है। इसको ले जाकर मुर्दाघर में रख दो। (वार्ड बॉय को) और तुम जल्दी से इस पर नई चादर डाल दो। एक नया पेशेंट अभी आता ही होगा। (प्रस्थान)
रंग : (खूंखार को उठाना ही चाहता है कि खूंखार हिलता-डुलता है। उसकी हरकत देख कर रंग बहादुर और वार्ड बॉय दोनों ही सकते में आ जाते हैं) अरे भईया! ई त जिन्दा है हो, मुर्दा नाही है।
वार्ड बॉय : अरे हाँ। यह तो मरा नहीं है। मैं अभी सिस्टर को बुलाता हूँ। (प्रस्थान)
खूंखार : (काँपते हुए) अरे भाई ! तुम क्या कर रहे हो? जरा पानी तो पिलाना।
रंग : (आश्चर्य से) बाबूजी! आप अभी मरा नाहीं है? पानी हम देत हैं। (डरते हुए कम्पित हाथों से पानी देता है। वार्ड बॉय का बेचैनी से प्रवेश। साथ में वही नर्स का भी प्रवेश)

वार्ड : सिस्टर! यह पेशेंट अभी मरा नहीं है।
नर्स : (खूंखार को देख कर कुछ आश्चर्य से) आप मरे नहीं हैं? आप जिन्दा हैं?
खूंखार : हाँ! मैं तो पहले से काफी बेहतर महसूस कर रहा हूँ। सीने में थोड़ी-थोड़ी जलन अवश्य महसूस हो रही है। और कोई विशेष तकलीफ नहीं है। कोई दवाई हो तो दे देना।
नर्स : लेकिन आपको अब कोई दवा नहीं दी जा सकती है और आपको तो यह बेड अब तुरंत ही छोड़ना पड़ेगा। एक दूसरा पेशेंट आ रहा है।
खूंखार : यह कैसे हो सकता है? मैं अभी पूरी तरह से स्वस्थ नहीं हुआ हूँ।
नर्स : लेकिन, मैं अब कुछ नहीं कर सकती। मरे हुए रोगियों के लिए न अब कोई दवा ही दी जा सकती और न कोई बेड ही। आपका डेथ सर्टिफिकेट इशू भी हो चूका है। अब अस्पताल से आप को कुछ भी नहीं मिल सकता है। कृपया आप यह बेड छोड़ दीजिए।

खूंखार : (सक्रोध) यह कैसे हो सकता है? मैं अभी जिन्दा हूँ। मुझे अभी इलाज की आवश्यकता है, जबकि तुम लोग मुझे मरा साबित करने पर तुले हो। तुम सब को नहीं पता मैं एक प्रतिष्ठित पत्रकार हूँ और मैं यहाँ से लेकर दिल्ली के संसद तक को हिलाकर रख दूँगा। क्या समझ रखा है तुमलोगों ने?
नर्स : आपको जो भी कहना और करना हो, वह जाकर सी.एम.ओ. को कहिये और करिए। (कागज देती हुई) यह लीजिये, आप का डेथ सर्टिफिकेट और हाँ साथ में जाते समय रास्ते में आप स्टोर कीपर से सफ़ेद कफ़न का एक कपड़ा भी लेते जाइयेगा अपने लिए। वह मुर्दों को मुफ्त में मिलता है, लेकिन इस डेथ सर्टिफिकेट के बिना वह भी आपको नहीं मिलेगा। जाइये। (प्रस्थान)

खूंखार : यह क्या अँधेर नगरी व्यवस्था है? मैं जिन्दा रहते हुए भी मरा हुआ हूँ?
रंग : बाबूजी! आप अपने जाइब इया हम उठाये के लिए चलें। (हाथ बढ़ता है)
खूंखार : (सक्रोध) ख़बरदार। तुम मुझे हाथ नहीं लगावोगे। मैं खुद ही जाऊँगा। (बेड से उतर कर) मैं किसको छोडूँगा नहीं। (अपने सामान को बटोरते हुए) हर एक को जेल में न भेजवा दिया, तो मेरा नाम भी वीरभद्र प्रताप ‘खूंखार’ नहीं। जाता हूँ।

वार्ड बॉय : ठीक है। पहले तो आप यहाँ से प्रस्थान कीजिए। (खूंखार सिंह धीरे-धीरे प्रस्थान करता है। वार्ड बॉय बेड को ठीक कर उस पर चादर बिछाता है)
रंग : ई हम पहिला बार देखत हयं कि कोनों मुर्दा खुदे चल के मुर्दाघर जात हवे। जबकि कोनो जिन्दा आदमी इहाँ ट्रेसर पर चढ़ कर आवत हैय। (मंद प्रकाश। सभी का प्रस्थान)
दृश्य परिवर्तन

(स्टोर हाउस। एक टेबल पर स्टोर कीपर सफ़ेद कपडे पहने हुए एक बड़ी रजिस्टर पर कुछ लिख रहा है। पास के आलमीरा में कफ़न सदृश कुछ सफ़ेद कपडे रखे हुए हैं। खूंखार का प्रवेश)
खूंखार : सुनो भाई! यह लो कागज और मुझे मुर्दे को ढकने वाला सफ़ेद कपड़ा दे दो।
कीपर : ठीक है आप बैठिए। (खूंखार कुर्सी पर बैठ जाता है) दीजिए रिलीजिंग आर्डर कागज। मैं अभी आपको कफन का कपड़ा देता हूँ। (खूंखार कागज देता है। कीपर रजिस्टर पर उसे देखकर लिखता है) आप मरे हुए पेशेंट के कौन है?
खूंखार : मैं खुद ही मरा हुआ एक लाश हूँ। लाओ, कहाँ सिगनेचेर करना है, बताओ। मैं सिगनेचेर किये देता हूँ।
कीपर : (चौंक कर डरते हुए) क्या कहा आपने? आप मरे हुए हैं? यह कैसे हो सकता है?
खूंखार : तुम्हारे अस्पताल में सब कुछ हो सकता है। लाओ मैं सिगनेचेर कर देता हूँ। तुम जल्दी से मुर्दे वाला कफन का कपड़ा मुझे दे दो।

कीपर : माफ़ करेंगे महाशय। मुर्दे वाला कपड़ा मुर्दों को मैं नहीं दे सकता। यह तो मुर्दे के किसी अभिभावक के नाम पर ही इशू हो सकता है और आप सिगनेचेर भी नहीं कर सकते हैं क्योंकि आप मरे हुए हैं। मरे हुए मुर्दे के सिगनेचेर का कोई वैल्यू नहीं होता है।
खूंखार : लेकिन मुर्दे वाले कपड़े पाने का यह कागज तो मेरे पास है कि नहीं?
कीपर : आप बात क्यों नहीं समझत हैं? चुकी आप मरे हुए हैं अतः आप कफ़न लेने के हक़दार नहीं हैं। अब आप जाइए।
खूंखार : अजीब हालत है इस अस्पताल की। (क्रोध से) रखो तुम अपने मुर्दे का कफ़न और कपड़ा। मैं किसी को छोडूँगा नहीं। क्या
अंधेर मचा रखा है, इस अस्पताल वालों ने। मैं अभी तुम सभी की शिकायत बड़े अधिकारी से करता हूँ। बताओ सी.एम.ओ. का आफ़िस किधर है?
कीपर : यहाँ से आगे बढ़कर दाहिने बाजू में है, जाइये। (खूंखार का प्रस्थान) अब तो मुर्दे खुद ही कफ़न माँगने चले आ रहे हैं।
(मंच पर प्रकाश मंद होता है)

दृश्य परिवर्तन
(सी.एम.ओ. का आफ़िस। एक टेबल लगा है, जिस पर कई फाइलें सजी हुई है। पीछे कुर्सी पर बड़े अफ्सर सी.एम.ओ. साहब बैठे कुछ कागजी काम कर रहे हैं। बगल में एक खाली कुर्सी पड़ी है)
खूंखार : (आक्रोश सहित प्रवेश कर) क्या सी.एम.ओ. साहब आप ही हैं?
अफ्सर : हाँ, कहिये क्या बात है ? लेकिन आप को बिना अनुमति के इस तरह नहीं आना चाहिए। दफ्तर के भी कुछ कायदे-कानून होते हैं।
खूंखार : वह मैं भी जानता हूँ। शायद आपको पता नहीं है कि मैं कौन हूँ। मैं एक प्रतिष्ठित पत्रकार वीरभद्र प्रताप ‘खूंखार’ हूँ।

सीएमओ : अच्छा आप खूंखार जी हैं। बैठिए। कहिये क्या बात है?
खूंखार : देखिये मैं अपने पैरों पर चल कर यहाँ तक आया हूँ। मैं आपसे बातें भी कर रहा हूँ। (लिखते हुए) यह देखिये मैं लिख भी सकता हूँ। (ग्लास उठा कर) यह देखिये मैं ग्लास का पानी भी पी सकता हूँ।
सीएमओ : वह तो मैं देख रहा हूँ। पर आप कहना क्या चाहते हैं? वह तो बताइये।
खूंखार : अब आप ही बताइये, क्या मैं जिन्दा नहीं हूँ? क्या मैं मरा हुआ हूँ?
सीएमओ : यह मैं कैसे कह सकता हूँ?

खूंखार : तो फिर यह डेथ सर्टिफिकेट मेरे नाम का क्यों है? यह देखिये।
सीएमओ : (कागज लेकर पढ़कर) हाँ, अब आप कागज के अनुसार जिन्दा नहीं, बल्कि मरे हुए हैं। यह डेथ सर्टिफिकेट मैंने ही इशू किया है। वह भी कई डाक्टरों के सिपारिश पर। अब आप बिल्कुल मरे हुए हैं।
खूंखार : यह तो सरासर अन्याय है। मैं जिन्दा हूँ और आपलोगों ने एक भला-चंगा आदमी को मरा साबित कर दिया है। स्टोर कीपर ने मुझे मरा हुआ बता कर मुर्दे के कफ़न कपड़े तक न दिया। मैं आप लोगों को ऐसे में ही नहीं छोड़ दूँगा। आपको नहीं मालूम मैं क्या चीज हूँ। बड़े-बड़े मंत्रियों तक पहुँच रखता हूँ। आप सभी को नौकरी से वर्खास्त न करवा दिया तो मेरा नाम भी वीरभद्र प्रताप ‘खूंखार’ नहीं। क्या समझ रखा है?
सीएमओ : ठीक है। जाइए कोर्ट। और पहले तो अपने आप को जिन्दा प्रमाणित कीजिए, तब मुझे बर्खास्त करवाईयेगा, जाइए।
खूंखार : (सक्रोध) जाता हूँ। जाता हूँ। लेकिन बहुत जल्दी ही लौटूँगा। (प्रस्थान)
सीएमओ : जिन्दा लोग तो कुछ बिगाड़ ही नहीं पाते हैं, भला मुर्दा क्या बिगाड़ लेगा? (प्रस्थान। मंद प्रकाश)

(दृश्य परिवर्तन)
एक टेबल लगा हुआ है। उसपर कई फाइलें रखी हुई है। टेबल पर बायीं ओर तिरंगा झंडा खड़ा रखा हुआ है। ‘चिकित्सा मंत्रालय’ लिखा हुआ बोर्ड भी टेबल पर रखा हुआ है। गाँधी जी और राजेंद्र प्रसाद जी के चित्र टंगे हैं। पीछे कुर्सी पर बड़े ही शान से एक मंत्री जी बैठे हुए हैं। सामने की कुर्सी पर एक व्यक्ति ‘भूषण’ बैठे बातें कर रहा है)
मंत्री : कोई बात नहीं, आप अपने क्षेत्र में जाकर मेरे द्वारा एक अस्पताल बनाने की बात का खूब जोर-शोर से प्रचार कर दीजिए।
भूषण : ठीक है श्रीमान, पर हमारा भी कुछ ख्याल रखा जाता तो अच्छा रहता।
मंत्री : आप चिंता क्यों करते हैं, भूषण जी। अस्पताल सम्बंधित सभी खर्चों में 30 प्रतिशत आपका। खुश, अब जाइए।
भूषण : धन्यवाद श्रीमान मंत्री जी। आपका आदेश सर आँखों पर। आपने जैसा कहा है, वैसा ही करूंगा। अच्छा नमस्कार।
मंत्री : नमस्कार। (भूषण का प्रस्थान। चपरासी का प्रवेश)

चपरासी : श्रीमान जी, एक बूढा मुर्दा बहुत देर से आपसे मिलने के लिए मुझे परेशान कर रहा है। क्या उसको भेज दूँ?
मंत्री : क्या कहा? कोई मुर्दा? तो उसका यहाँ क्या काम है? उसे तो श्मशान घाट भेज दो।
चपरासी : श्रीमान जी, वह मुर्दा कोई मुर्दा नहीं है, वह कोनो जिन्दा मुर्दा है।
मंत्री : तुम क्या कहना कहते हो? मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है।
चपरासी : बात ऐसा है कि वह है तो जिन्दा, परन्तु वह मरा हुआ कोई जिन्दा मुर्दा है। कहिये तो आपकी सेवा में भेज दूँ ?
मंत्री : ओफ ! तुम्हारी बात का कोई ओर छोर होता ही नहीं है। कभी कहता है कि जिन्दा है और कभी कहता है कि मुर्दा है। तुम उसे मेरे पास भेज दो। जाओ।

चपरासी : अभी भेज देता हूँ। खुद ही जाँच लीजिये कि वह मुर्दा जिन्दा है कि वह जिन्दा मुर्दा है? (प्रस्थान। मंत्री जी एक फ़ाइल देखते हुए। खूंखार का प्रवेश)
खूंखार : मंत्री जी, क्या मैं आ सकता हूँ?
मंत्री : (कुछ आश्चर्य से देख कर) हाँ, आइये बैठिए। कहिये मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ?
खूंखार : श्रीमान जी, मैं एक प्रतिष्ठित पत्रकार वीरभद्र प्रताप ‘खूंखार’ हूँ। (मंत्री हडबडा जाता है) वैसे मैं ‘खूंखार’ नाम से जाना जाता हूँ, पर मैं कोई खूंखार आदमी नहीं हूँ।
मंत्री : (चौंक कर तथा हडबडा कर) क्या कहा? आप वीरभद्र प्रताप ‘खूंखार’ जी हैं?
खूंखार : हाँ। मंत्री जी, मैं ही वीरभद्र प्रताप ‘खूंखार’ हूँ। मेरा नाम सुनते ही सभी लोग आपकी तरह ही घबरा जाते हैं। वैसे मैं कोई खूंखार आदमी नहीं हूँ। लेकिन आप मेरा नाम सुनकर क्यों चौंक पड़े?

मंत्री : (हकलाते हुए) नहीं……….. नहीं। ऐसी कुछ बात नहीं है। आप अपनी बात बताइए।
खूंखार : बात यह है कि मैं एक साधारण बीमारी के ईलाज के लिए शहर के मुख्य अस्पताल में भर्ती हुआ था। और मैं लगभग ठीक भी हो गया हूँ।
मंत्री : चलिए, यह तो अच्छी बात है। कम से कम आप तो मानते हैं कि सरकारी अस्पतालों में अच्छी ईलाज होती है।
खूंखार : लेकिन अस्पताल वालों ने तो मुझे मरा हुआ साबित कर मुझे यह डेथ सर्टिफिकेट भी थमा दिया है। जबकि मैं जिन्दा हूँ। मैं कई दिनों से अपने को जिन्दा प्रमाणित करने के लिए विभिन्न सरकारी दफ्तरों का चक्कर लगा रहा हूँ।
मंत्री : लेकिन खूंखार जी, मैं आपको इस मामले में अब कोई मदद नहीं कर सकता हूँ।
खूंखार : लेकिन क्यों? स्वास्थ्य मंत्री तो आप ही हैं। फिर क्यों नहीं?

मंत्री : क्योंकि गत कल ही देश भर के विभिन्न अख़बार वालों के एसोसिएशन द्वारा आयोजित एक शोक सभा में कई विशिष्ठ लोगों द्वारा आपको श्रद्धांजलि अर्पण किया जा चूका है। आपके सम्मान में प्रेस क्लब की ओर से एक शोक सभा कुछ देर पहले ही संपन्न हुई, जिसमें मैं भी उपस्थित था। सभी ने शोक व्यक्त करते हुए आपको पत्रकारिता के क्षेत्र में एक प्रमुख राष्ट्रीय स्तम्भ बताया है और आपके नाम पर एक राष्ट्रीय समाचार पत्र “खूंखार आवाज” के प्रकाशन पर सर्वसम्मति भी बन चुकी है।
खूंखार : लेकिन मैं तो अभी जिन्दा हूँ। फिर मेरी शोक सभा का क्या ओचित्य?
मंत्री : ‘खूंखार’ जी इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। क्योंकि आपकी मृत्यु प्रमाणित हो चुकी है। अब आप मरे हुए ही हैं। जब मरने पर आपको इतना सरकारी सम्मान प्राप्त हो रहा है, तो फिर आप जिन्दा रहने की जिद क्यों कर रहे हैं?
खूंखार : तो इसका मतलब यह है कि आपके अधिकारीगण और आपकी व्यवस्था गलतियाँ करते रहें और उसकी सजा आम जनता भुगतती रहें? यह तो सर्वथा अन्याय है। इसका विरोध होना ही चाहिए।

मंत्री : उन पर भी जांच कमेटी बैठाई जाएगी। दोषियों की सजा होगी। लेकिन अब आपको जिन्दा मानने पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हमारे देश की अस्मिता पर बड़ा ही प्रतिकूल असर पड़ेगा। अतः अब आपको मरा हुआ ही मानना पड़ेगा।
खूंखार : लेकिन देश की अस्मिता के लिए मैं अपने आप को क्यों मारूँ?
मंत्री : देश की अस्मिता के लिए। क्या आप देश के प्रबुद्ध नागरिक नहीं हैं? आप जैसे प्रबुद्ध नागरिक ही जब स्वार्थ से वशीभूत हो जायेंगे तो अन्य साधारणजन का क्या कहना? यह क्या कम है कि एक राष्ट्रीय अखबार के रूप में आप सदैव अपने देश में और इस दुनिया में अमर रहेंगे।
खूंखार : लेकिन श्रीमान जी, मेरे रिश्तेदारों को जब से मेरी मृत्यु की यह झूठी खबर मिली है, तब से वे मेरी सम्पति के लिए एक- दूसरे से लड़ने-झगड़ने लगे हैं। कुछ ने तो अपना अधिकार जताने के लिए कोर्ट में मामला भी दाखिल कर दिया है। ऐसे में अब मैं क्या क्या करूँ? कहाँ रहूँ? और मैं जिस कंपनी में काम करता था, उन लोगों ने भी मुझे मृत मान कर मेरा पेंशन भी अब बंद करवा दिया है। कम से कम आप मेरे बंद पेंशन को ही चालु करवा दीजिए, ताकि बाकी का जीवन मैं गुजर-वसर कर सकूं।

मंत्री : पेंशन? लेकिन पेंशन भी अब आपको नहीं मिल सकता है। किसी मरे हुए व्यक्ति के नाम पर पेंशन कैसे दिया जा सकता है? अब पेंशन की कोई संभावना भी नहीं है।
खूंखार : तब अब आप ही बताइये, कि मैं अब क्या करूँ और कहाँ जाऊँ ?
मंत्री : आप साधू या सन्यासी क्यों नहीं बन जाते हैं? और किसी तीर्थस्थान पर जा कर रम जाइये। आपके लिए यही ठीक रहेगा। वहाँ न तो आपको जिन्दा होने का कोई प्रमाण की आवश्यकता होगी और न कोई धन-दौलत या सांसारिकता का ही। आपके लिए यही ठीक रहेगा। अब आप जाइये और मुझे कुछ आवश्यक सरकारी काम करने दीजिए।
खूंखार : ठीक है, मैं जाता हूँ। लेकिन अगर मैं यहीं पर आपको मार डालूँ तो किसी मुर्दे पर तो कोई केस बनेगा ही नहीं। (उठता है)

मंत्री : (मुस्कुराते हुए) बिलकुल सही कहा आपने। लेकिन किसी मुर्दे को मारने पर भी मुझ पर कोई केस न बनेगा, समझे।
खूंखार : (लाचारी में बैठते हुए) अब मैं कर ही क्या सकता हूँ? (उठ कर प्रस्थान का उपक्रम करते हुए) अब तो मैं एक मरा हुआ जिन्दा आदमी हूँ। नहीं ……. नहीं …….. एक जिन्दा मुर्दा हूँ। (पागलों की तरह वह जोरो से हँसता है पर मंत्री जी अपने काम
में संलग्न हैं) हा ……. हा …….। मैं एक जिन्दा मुर्दा हूँ। हा ……. हा …….। यारों मैं एक जिन्दा मुर्दा हूँ। (प्रकाश मंद होता है)
(पूर्ण)

श्रीराम पुकार शर्मा

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