श्रीराम पुकार शर्मा, हावड़ा । विगत कई दशकों से अपनी मधुर स्वर लहरियों से सिर्फ भारत ही नहीं, वरन विश्व के अधिकांश संगीत-प्रेमियों की आवाज बनी, भारत की सबसे लोकप्रिय और आदरणीय गायिका ‘भारत रत्न’ से सम्मानित ‘भारत की बेटी’ और माँ सरस्वती वरदपुत्री ‘स्वर कोकिला’ लता मंगेशकर को उनकी 93 वीं जयंती पर सादर हार्दिक नमन करते हैं। भारत की समादृत लोकप्रिय और आदरणीय गायिका लता मंगेशकर का जन्म 28 सितंबर, 1929 को इंदौर में एक माध्यम वर्गीय गोमंतक मराठा परिवार पंडित दीनानाथ मंगेशकर व शेवंती मंगेशकर के आँगन में सबसे बड़ी बेटी के रूप में हुआ था। लता का वास्तविक नाम ‘हेमा मंगेशकर’ था, बाद में उनका नाम कुमारी ‘लता मंगेशकर’ रखा गया था।
उनके पिता दीनानाथ मंगेशकर रंगमंच के कलाकार और शास्त्रीय गायक थे। उनकी इच्छा भी थी कि लता भी संगीत के क्षेत्र में काम करे। इसलिए लता जब पाँच साल की हुई, तभी उन्होंने लता को और बाद में उनकी तीनों बहनों उषा, मीना और आशा तथा भाई हृदयनाथ मंगेशकर को शास्त्रीय संगीत पढ़ने की ओर अग्रसर किया। कालांतर में ये सभी मंगेशकर भाई-बहनों ने संगीत को ही अपनी आजीविका के मार्ग के रूप में चयन किया। वैसे भी उनका प्रथम गुरु उनके पिता दीनानाथ मंगेशकर ही थे।
लता मँगेसकर 1938 में शोलापुर के ‘नूतन थिएटर’ में अपनी पहली सार्वजनिक उपस्थिति दी, जहाँ उन्होंने ‘राग खंबावती’ और दो मराठी गीत गाए थे। इसके लिए उन्हें 25 रूपये का इनाम भी प्राप्त हुआ था। कालांतर में उस्ताद अमानत अली खान, गुलाम हैदर और पंडित तुलसीदास शर्मा भी उनके सक्षम गुरु बने। ऐसे विशेष गुरुओं की सनिध्यता को प्राप्त कर लता जी का संगीत व गायनमय जीवन क्रमशः निखरता ही गया। कालांतर में उन्होंने लगभग तीस से ज्यादा भाषाओं में फ़िल्मी और गैर-फ़िल्मी लगभग पचास हजार से भी अधिक गाने गाये हैं। लेकिन उनकी पहचान भारतीय सिनेमा में एक पार्श्वगायक के रूप में रही है।
लेकिन लता अभी मात्र तेरह वर्ष की ही थीं, कि तभी 1942 में उनके पिता की हृदय रोग के कारण मृत्यु हो गई। फलतः घर में पैसों की किल्लत भयानक रूप में आन खड़ी हुई। चुकी लता को बचपन से ही फिल्मों में अभिनय करना बहुत पसंद नहीं था, लेकिन भाई-बहिनों में सबसे बड़ी होने के कारण परिवार की जिम्मेदारी का बोझ भी उनके कोमल कंधों पर ही था। लेकिन प्रकृति का नियम है कि जब वह कुछ छीनता है तो कुछ दे भी देता है। ऐसे विकट समय में लता के परिवार के लिए देवदूत के स्वरूप में सामने आये उनके पिता के एक मित्र मास्टर विनायक जी और उन्होंने अपने सामर्थ्य साधन के अनुकूल इस पूरे परिवार को संभाला तथा लता मंगेशकर को एक गायिका बनाने के क्षेत्र में बहुत कोशिश की।
अपने पारिवारिक अर्थगत परिस्थितियों से निपटने के लिए पैसे आवश्यक थे। अतः लता न चाहते हुए भी फिल्मों में अभिनय के लिए तैयार हो गईं और कुछेक हिंदी और मराठी फ़िल्मों में अभिनय भी की थी। अभिनेत्री के रूप में उनकी पहली फ़िल्म मराठी में ‘पाहिली मंगलागौर’ (1942) रही। बाद में उन्होंने ‘माझे बाल’, ‘चिमुकला संसार’ (1943), ‘गजभाऊ’ (1944), ‘बड़ी माँ’ (1945), ‘जीवन यात्रा’ (1946), ‘माँद’ (1948), ‘छत्रपति शिवाजी’ (1952) आदि में अभिनय की। इनमें से कई फिल्मों में उन्होंने खुद की अपनी भूमिका के लिए और अपनी बहन आशा के लिए पार्श्व-गायन भी किया था।
पार्श्व-गायिकी के क्षेत्र में उस समय स्थापित हो पाना लता जी के लिए सरल कार्य न था। इस क्षेत्र में उस समय के जानी-मानी पार्श्व-गायिकाएँ नूरजहाँ, अमीरबाई कर्नाटकी, शमशाद बेगम और राजकुमारी आदि की फिल्मी दुनिया में तूती बोलती थी। उस्ताद गुलाम हैदर, जिन्होंने पहले नूरजहाँ की खोज की थी, ने लता जी की प्रतिभा को पहचाना और फिल्म निर्माता शशिधर मुखर्जी के पास ‘शहीद’ नामक फिल्म में लता को एक मौका देने की सिफारिश की। लेकिन शशिधर मुखर्जी ने यह कहकर लता जी को मना कर दिया कि उनकी आवाज जरुरत से ज्यादा सुरीली है। फिर मास्टर विनायक जी की कोशिश से उन्हें 1942 में मराठी फिल्म ‘किटी हसाल’ के लिए अपना पहला गाना ‘नाचू या गड़े, खेलो सारी मणि हौस भारी’ गाया, लेकिन दुर्भाग्यवश बाद में इसे फिल्म से हटा दिया गया।
तत्पश्चात मराठी फिल्म ‘पहिली मंगला-गौरिन’ के लिए लता जी ने ‘नताली चैत्रची नवलई’ (1942) गाना गाया। फिर उन्होंने ‘गजाभाऊ’ फिल्म के लिए 1943 में ‘माता एक सपूत की दुनिया बदल दे तू’ पहला हिंदी गाना गया था। उनकी प्रतिभा से वसंत जोगलेकर काफी प्रभावित हुये थे और सन 1947 में उन्होंने अपनी फिल्म ‘आपकी सेवा में’ का एक गाना गाने के लिए लता जी को मौका दिया, जो काफी चर्चित हुआ और उनकी गायिकी प्रतिभा को पहचान दिलाया।
फिर फिल्म ‘मजबूर’ का ‘दिल मेरा तोड़ा, मुझे कहीं का ना छोड़ा तेरे प्यार ने’ जैसे गानों ने लता जी को प्रसिद्ध कर दिया। इसके बाद तो उनके पास गाने के ऑफर आने लगे। 1949 में लता जी को एक और ऐसा ही मौका फ़िल्म “महल” के ‘आयेगा आनेवाला’ गाना से मिला। वह गाना अत्यंत ही सफल रहा और लता जी तथा उस फिल्म की अभिनेत्री मधुबाला दोनों के लिए बहुत शुभ साबित हुआ। इसके बाद पार्श्वगायिकी के क्षेत्र में लता जी पूर्णतः स्थापित हो गईं और फिर गायन के क्षेत्र में उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
ऐसे ही समय लता जी ने उर्दू शिक्षक शफी से शुद्ध उर्दू उच्चारण करना सीखीं। पहले तो वह अपने पूर्ववर्ती गायकों और गायिकाओं की शैली को ही अपनाती रही, पर बाद में उन्होंने स्वयं अपनी एक अलग शैली ही बना ली। उन्होंने गायन के क्षेत्र में सुरीलापन, लचकदारी स्वर के साथ ही शास्त्रीय संगीत की रागदानी, राजस्थानी, पहाड़ी, पंजाबी, बंगाली आदि लोकगीतों की शैली को भी अपनायी।
लता जी ने समय-समय पर अपनी गायिकी के अतिरिक्त फिल्म निर्माण के क्षेत्र में भी अपने आप को परखा, जिसमें वह सफल भी रही थीं। वडाई (मराठी 1953), झांझर (हिंदी 1953), कंचन (हिंदी 1955) और लेकिन (हिंदी 1990) उन्होंने ये चार फिल्मों का निर्माण स्वयं किया, जिसमें संगीत और अभिनय का अद्भुत मणिकांचन संयोग दिखाई देता है। ये मात्र चार फ़िल्में ही लता जी एक सफल फिल्म-निर्माता के रूप में भी स्थापित करती है।
लता जी ने अपने एकाकी जीवन के संदर्भ में एक साक्षात्कार में कहा था कि ‘मेरी छोटी आयु में ही हमारे पिता का निधन हो गया था। ऐसे में घर के सदस्यों की जिम्मेदारी मुझ पर थी। ऐसे में कई बार शादी का ख्याल आता भी था, पर उस पर अमल नहीं कर सकती थी। बेहद कम उम्र में ही मैं काम करने लगी थी। सोचा कि पहले सभी छोटे भाई-बहनों को व्यवस्थित कर दूँ। फिर बहनों की शादी हो गई। उनके बच्चे हो गए, तो उन्हें संभालने की जिम्मेदारी मुझ पर आ गई। इस तरह से वक्त दर वक्त निकलता चला गया और शादी का विचार हमेशा-हमेशा के लिए मिट गई। अब तो एकाकी जीवन में ही संतुष्टि का अनुभव करती हूँ।’
लता मंगेशकर फिल्मों में गाने के साथ ही साथ अपने श्रोताओं से मुखातिब होने लिए देश-विदेशों में स्टेज शो भी करती रही थीं। सन् 1962 के चीन-भारतीय युद्ध की पृष्ठभूमि के खिलाफ नई दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉo राधाकृषणन और प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू की उपस्थिति में लता ने 27 जनवरी, 1963 को कवि पंडित प्रदीप कुमार द्वारा रचित और सी. रामचन्द्रन द्वारा संगीत से सजाये ‘ऐ मेरे वतन के लोगो जरा आँख में भर लो पानी’ नामक एक गैर-फ़िल्मी देशभक्ति गीत गाई।
इस गीत को सुनकर मंच पर विराजमान तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू आँसू बहाने लगे थे और स्टेडियम में उपस्थित समस्त श्रोताओं की आँखें नम हो गई थीं। यह लता मंगेशकर के स्वर का कारुणिक जादू ही था। अपनी गायिकी के सात दशक के लंबे सफर में उन्होंने ने कई भारतीय भाषाओं में 30,000 से अधिक गाने गाए हैं।
6 फरवरी 2022 के दिन को शायद ही कोई संगीत और गीत-प्रेमी सहृदय भुला पाए, उसी दिन लाखों-करोड़ों की चहेती और आदर्श स्वर की देवी लता मँगेसकर मुम्बई के एक अस्पताल में अपनी आखरी साँस ली थीं। वह खबर संगीत-प्रेमियों तथा राष्ट्र के लिए ह्रदय विदारक से कोई कम न थी।
लता मंगेशकर अपने गीत-संगीत को कभी अपना पेशा नहीं, वरन् संगीत की देवी की आराधना ही मानती रही थीं। वे हमेशा ही दिखावेपन से दूर ही रहती थीं। चाहे स्टूडियो में गाने के रिकॉर्डिंग हो या फिर किसी स्टेज पर गायिकी, वह हमेशा नंगे पाँव गाना गाती थीं। वह कभी भी साज-श्रृंगार (मेकअप) नहीं करती थीं, उन्हें मेकअप करना पसंद भी नहीं था। वह किसी तरह का धूम्रपान और शराब का सेवन नहीं करती थीं। इस प्रकार वह गीत-संगीत की एक परम आराधिका रही थीं।
फिल्मों में लता जी के विशेष योगदान को देखते हुए उन्हें अनगिनत राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मनों से सम्मानित किया गया था। लता मंगेशकर का नाम ही एक तरह से पुरस्कार-सम्मान बन गया है। वह एकमात्र ऐसी जीवित व्यक्ति थीं, जिनके नाम से पुरस्कार दिए जाते रहे थे। लता जी को ‘फिल्म फेयर पुरस्कार’ (छः बार), ‘राष्ट्रीय पुरस्कार’ (तीन बार), ‘महाराष्ट्र सरकार पुरस्कार’ (दो बार), ‘पद्म भूषण’ (1969) ‘गिनीज़ बुक रिकॉर्ड’ (1974), ‘दादा साहब फाल्के पुरस्कार’ (1989), ‘फिल्म फेयर का लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार’ (1993), ‘स्क्रीन का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार’ (1996), ‘राजीव गान्धी पुरस्कार’ (1997)।
‘एन.टी.आर. पुरस्कार’ (1999), ‘पद्म विभूषण’ (1999), ‘ज़ी सिने का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार’ (1999), ‘आई. आई. ए. एफ. का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार’ (2000), ‘स्टारडस्ट का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार’ (2001), भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान “भारत रत्न” (2001), ‘नूरजहाँ पुरस्कार’ (2001), ‘महाराष्ट्र भूषण’ (2001) आदि तथा उन्हें 6 विश्वविद्यालयों द्वारा डॉक्टरेट की डिग्री से सम्मानित किया गया था। भारतीय गीत-संगीत में लता मंगेशकर के योगदान के लिए राष्ट्र ने उन्हें 2019 में उनके 90 वें जन्मदिन पर “राष्ट्र की बेटी” की उपाधि से सम्मानित किया था।
श्रीराम पुकार शर्मा
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पश्चिम बंगाल
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