सामयिक कवि सम्मेलन में कविताओं से नई चेतना के उभरे स्वर

चण्डीगढ़ । सामयिक कवि सम्मेलन में कवियों पर पुष्पों की बरसात से सभी के चेहरों पर रौशनी छा गई। यह ऑनलाइन कवि सम्मेलन हरियाणा सामयिक परिवेश कवि मंच के बैनर तले आयोजित किया गया था। सामयिक परिवेश की राष्ट्रीय अध्यक्ष ममता मेहरोत्रा के मंच पर पहुँचते ही कार्यक्रम की शुरुआत हो गई। राष्ट्रीय स्तर के मशहूर कवि अशोक गोयल इस अवसर पर मुख्य अतिथि थे और उपस्थित कवियों में निरंतर उठ रहे जोश के दौरान स्वयं को भाग्यशाली समझ तालियाँ बजाने तक ही सीमित रह गए। इस आयोजन में देश के विभिन्न प्रदेशों के 45 से 50 कवियों और कवियत्री ने भाग लेकर समाज को एक नई दिशा देने का प्रयास किया और उपस्थित श्रोताओं को पुष्प वर्षा करने के लिए विवश कर दिया। सभी कवियों की रचनाए रचनाएँ एक से बढ़कर एक थी। एक जोश दिलाता तो दूसरा हुंकार भरने की प्रेरणा देने से पीछे नहीं हटा।

मंच संचालित कर रही सविता राज को लगातार हिम्मत मिली और उन्होंने मंच संचालन में कोई कसर नहीं छोड़ी। इस पटल के प्रभारी विनोद कश्यप तो सफलता के कदम चूम रहे अपनी इकाई के सम्मेलन से इतने प्रभावित थे कि कवियों और जोश भरने के लिए श्रोताओं के साथ ही मिलकर कभी तालियाँ बजाते तो कभी फूलों की बरसात में ही शामिल हो गये।
सर्वप्रथम कंचन भल्ला ने सुरताल में गणपति वंदना और उसके तुरंत बाद सरस्वती वंदना पाठ किया। उपस्थित सभी विद्वत्तजनों के माँ शारदे को नमन के बाद संस्थाध्यक्ष ममता मेहरोत्रा ने अपने उदबोधन में कार्यक्रम के सफल आयोजन की कामना की।

मुख्य अतिथि टेकू वासवानी ने नव कवियों के हृदय में आमजन को अपनी रचनाओं के माध्यम से सामाजिक परिस्थितियों पर निरंतर नव साहित्य लिखने के लिए प्रेरित किया। वाराणसी से आए कवि मिथिलेश कुमार ने मॉं शैलपुत्री पर सुंदर भजन गाया तो हर ओर से तालियाँ और जय माँ के नारे लगे। आगरा के कवि प्रतीक शर्मा ने एक माँ के अपनी औलाद के उत्थान के लिए कठिन परिस्थितियों में भी जूझने का संदेश देकर सभी को भावविभोर कर दिया। यूपी के अम्बेडकर नगर से आए रामवृक्ष बहादुरी द्वारा देशभक्ति से परिपूर्ण महात्मा गांधी पर कविता के तुरंत बाद बूंदी के किशन लाल कहार ने भी राष्ट्रपिता बापू , मुजफ्फरनगर से सपना अग्रवाल ने भ्रूणहत्या पर बेहद मार्मिक, जेपी अग्रवाल ने “हर तरफ सिर्फ चक्कर है… स्वार्थ की टक्कर है।” भूपसिंह भारती की ‘अहीरवाल के दीवाने’, शशिकला ने “अज्ञान निद्रा से जागो दूर है जाना”, राम कुमार प्रजापति ने “माता शारदा रखो मेरी लाज”, रमेश कुमार निर्देश ने “जब झूम के बरसी काली घटा”, संतोष नेमा ने “जीवन भर जिन्हें हम सीधा मानते रहे”।

राम बाबू ने- “मैं मिलूँगा तुम्हें वहीं प्रिय जहाँ मात पिता की सेवा होती”, फूल चंद ने “अब जिद्द ठान ली हमने”, अनीता झा ने ओजपूर्ण “ए शक्ति दायननी मात भवानी”, सुषमा गर्ग, अतिया नूर, बाबू राम दौसा, शिशिर देसाई, सुमन मेहरोत्रा, विनय शास्त्री, फूल चंद, अमर नाथ सोनी, नीरज राव, विजय बेशर्म, अरविंद भारद्वाज जैसे अनेक कवियों के बाद मुजफ्फरनगर से सुशीला जोशी ने “चुप घड़ी चुप बात हम करती रहे… सांस में सांस को भरते रहे” जैसी कविताएँ सुना कर मंच पर एक नई लहर सी पैदा कर दी। आयोजन का विषय स्वतंत्र होने के कारण यूँ तो लगभग सभी प्रकार की कविताओं का पाठ हुआ लेकिन नवरात्रि दिवस वेला में माँ पर कविताएँ पढ़ने वालों की संख्या लगातार जुड़ती रही। सांझ समय ढलते ही हरियाणा प्रभारी ने कवि सम्मेलन के समापन की ही घोषणा करते हुए शीघ्र ही ऐसा एक और आयोजन करने का कवियों और श्रोताओं को भरोसा दिलाया।

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