पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री, वाराणसी : पौष मास का शुक्ल पक्ष धार्मिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है। यह वो समय है जब सूर्य अपने नक्षत्र उत्तराषाढ़ा में प्रवेश करता है और साथ ही उत्तरायण हो जाता है। इसलिए हिंदू धर्म में स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए पौष महीने के शुक्लपक्ष के तीज-त्योहारों की परंपरा बनाई है। पौष की पूर्णिमा के दिन शाकंभरी जयंती मनाई जाती है। जैन धर्म के मानने वाले पुष्यभिषेक यात्रा प्रारंभ करते हैं। बनारस में दशाश्वमेध तथा प्रयाग में त्रिवेणी संगम पर स्नान को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। पौष मास की पूर्णिमा साल 2022 को 17 जनवरी, सोमवार को है। इस दिन पूजा, जप, तप और दान करने का विधान है। धार्मिक मान्यता है कि पूर्णिमा के दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की आराधना करने से व्यक्ति को सौ यज्ञों के समतुल्य पुण्य की प्राप्ति होती है। साथ ही पूर्णिमा के दिन दान करने से अमोघ फल का वरदान मिलता है। अत: पौष पूर्णिमा का विशेष महत्व है।
पौष पूर्णिमा तिथि :
पौष पूर्णिमा तिथि आरंभ : 17 जनवरी 2022, सोमवार रात्रि 3:18 मिनट से
पौष पूर्णिमा तिथि समाप्त: 18 जनवरी, 2022, मंगलवार प्रातः 5:17 मिनट तक
उदया तिथि मान्य होने के कारण पौष पूर्णिमा 17 जनवरी को है।
पौष पूर्णिमा व्रत मुहूर्त : पूर्णिमा व्रत शुभ मुहूर्त आरंभ :- दोपहर 12: 20 मिनट से
पूर्णिमा व्रत शुभ मुहूर्त समाप्त: दोपहर 12;52 मिनट पर
(अभिजित मुहूर्त होने के कारण शुभ कार्यों के लिए उत्तम है।)
पौष पूर्णिमा पर कैसे करें स्नान और दान : 17 जनवरी 2022 को ब्रह्ममुहूर्त में पौष पूर्णिमा का स्नान करें।
स्नान के बाद किसी गरीब या ब्राह्मण को अन्न, गरम कपड़े, शक्कर, घी आदि का दान करें।
यदि आपकी कुंडली में चंद्रमा कमजोर है तो वे दही, शंख, सफेद वस्त्र आदि का दान करें।
पूर्णिमा व्रत पूजा विधि : पूर्णिमा व्रत कारण के लिए भक्त को दिन भर उपवास रखें।
संध्याकाल में किसी सत्य नारायण की कथा श्रवण करें।
पूजा के दौरान सर्वप्रथम गणेश जी, इंद्र देव और नवग्रह सहित कुल देवी देवता का पूजन करें।
इसके उपरांत सत्यनारायण भगवान का पूजन करें।
भोग स्वरूप भगवान को चरणामृत, पान, तिल, मोली, रोली, कुमकुम, फल, फूल, पंचगव्य, सुपारी, दूर्वा आदि अर्पित करें। इससे सत्यनारायण देव प्रसन्न होते हैं। इसके बाद आरती और हवन कर पूजा सम्पन्न करें।
शाकम्भरी माता की कथा : हिंदू धर्म के पवित्र ग्रंथ, देवी भागवतम के अनुसार, शाकम्भरी देवी की कहानी बताती है कि एक बार दुर्गम नाम का एक दानव था, जिसने अत्यधिक कष्टों और तपस्या से सभी चारों वेदों का अधिग्रहण कर लिया। उसने यह भी वरदान प्राप्त किया कि देवताओं को की जाने वाली सभी पूजाएँ और प्रार्थनाएँ उसके पास पहुँचेगी और इस तरह दुर्गम अविनाशी बन गया। ऐसी शक्तियों को प्राप्त करने के बाद, उसने सभी को परेशान करना शुरू कर दिया जिसके परिणामस्वरूप धर्म का नुकसान हुआ और इसके कारण सैकड़ों वर्षों तक बारिश नहीं हुई, जिससे गंभीर अकाल की स्थिति पैदा हो गई।
सभी साधु, ऋषि व मुनि हिमालय की गुफाओं में चले गए और उन्होनें देवी माँ से मदद पाने के लिए निरंतर यज्ञ और तप किया। उनके कष्टों और संकटों को सुनकर, देवी ने शाकम्भरी को अनाज, फल, जड़ी-बूटियाँ, दालें, सब्जियाँ, और साग-भाजी के रूप में अवतरित किया। शाक शब्द का अर्थ सब्जियों से है और इस प्रकार देवी, शाकम्भरी देवी के नाम से प्रसिद्ध हुई। लोगों की दुर्दशा को देखकर देवी शाकम्भरी की आंखों से 9 दिन और रात तक लगातार आँसू बहते रहे। अतः उनके आँसू एक नदी में बदल गए और अकाल की स्थिति का अंत हो गया।
देवी ने मनुष्यों और ऋषियों को राक्षस दुर्गम की क्रूरता से बचाने के लिए उसके खिलाफ भी युद्ध किया। देवी शाकम्भरी ने अपने अंदर 10 शक्तियों को प्रकट किया और अपनी सभी शक्तियों के साथ दुर्गम को मार डाला। और सभी चारों वेद ऋषियों को वापस कर दिए, चूंकि देवी ने राक्षस दुर्गम को मारा था, अतः उन्हें दुर्गा नाम भी दिया गया। उस समय से भक्त शाकम्भरी पूर्णिमा का व्रत रखते हैं और देवी का आशीर्वाद पाने के लिए और अपने घरों में खुशहाली की कामना करते हैं।
शाकम्भरी पूर्णिमा का महत्व : शाकंभरी पूर्णिमा का बहुत बड़ा महत्व है क्योंकि यह शाकम्भरी देवी की जयंती भी है। भारत में विभिन्न स्थानों पर इस दिन को पौष पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है जिसे हिंदू कैलेंडर के अनुसार एक अत्यधिक महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। इस्कॉन के अनुयायी या वैष्णव सम्प्रदाय इस दिन की शुरुआत पुष्य अभिषेक यात्रा से करते हैं क्योंकि यह माघ की शुरुआत भी है जो हिंदू कैलेंडर के अनुसार धार्मिक मितव्ययिता का महीना है। यदि लोग इस विशेष दिन पर पवित्र स्नान करते हैं तो उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है और साथ ही वे शाकम्भरी पूर्णिमा के दिन दान करके भी अत्यधिक गुण प्राप्त कर सकते हैं।
शाकम्भरी पूर्णिमा पर क्या करें? देवी शाकम्भरी को देवी दुर्गा का सौम्य रूप माना जाता है जो अत्यंत दयालु, कृपालु और स्नेही हैं। इस दिन, लोगों को शाकम्भरी देवी की पूजा और प्रार्थना करनी चाहिए, दान करना चाहिए, उपहार देने चाहिए, व्रत करना चाहिए, तीर्थ यात्रा करनी चाहिए, पवित्र स्नान करना चाहिए और देवी का दिव्य आशीर्वाद पाने के लिए अच्छे कर्म करने चाहिए।
जोतिर्विद वास्तु दैवज्ञ
पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री
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