गरीफा मैत्रेय ग्रंथागार द्वारा आयोजित स्वरचित कविता पाठ एवं अंतरंग संगोष्ठी सम्पन्न

उत्तर चौबीस परगना, गरीफा। “लड़की पैदा नहीं होती, लड़की बनायी जाती है।”- यह कहना है साहित्यिक और सांस्कृतिक संस्था ‘पड़ाव’ की अध्यक्षया, समाज सेवी, सचिव (गरीफा मैत्रेय ग्रंथागार) व प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. इंदु सिंह का। डॉ. इंदु सिंह ने उक्त बातें अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर गरीफा मैत्रेय ग्रंथागार, नैहाटी द्वारा आयोजित स्वरचित कविता पाठ व अंतरंग संगोष्ठी में कहीं।

डॉ. इंदु सिंह की अध्यक्षता में 26 फरवरी 2024 दिन सोमवार गरीफा मैत्रेय ग्रंथागार में “स्त्री मुक्ति का सवाल और भक्ति आंदोलन” विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन हुआ। वक्ता स्वरूप उपस्थित थें इंदिरा गांधी जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक हिन्दी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. प्रवीण कुमार एवं पश्चिम बंगाल राज्य विश्वविद्यालय, बारासात हिन्दी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. विनोद कुमार।

संगोष्ठी का शुभारंभ अतिथियों द्वारा पौधे में जल देकर किया गया। संगोष्ठी के प्रथम सत्र में कवियों ने अपनी स्वरचित कविताओं से उपस्थित श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया। जिनमें बाजू सर, बिक्रम कुमार साव, राहुल सिंह, नैंसी पाण्डेय, सुमन सोनी, रामनारायण झा, अवधेश मिश्रा, प्रदीप कुमार धानुक, शेफाली गुप्ता, नेहा, सुचिता आदि ने अपनी स्वरचित कविताओं का पाठ किया। इन कवियों की कविताओं में समाज की ज्वलंत विषयों को स्थान दिया गया था।

व्याख्यान सत्र में डॉ. प्रवीण कुमार ने ‘स्त्री के मुक्ति का सवाल’ विषय वक्तव्य में कहा कि मुक्ति किससे? स्त्रियों को किससे भय है और क्यों? वे किसके पराधीन हैं? और आखिर स्त्री की ही सुरक्षा का ही सवाल क्यों? पुरूष इसमें किस हद तक जिम्मेदार हैं यह एक विचारणीय प्रश्न है। उन्होंने मातृभाषा दिवस के मद्देनजर भी कई महत्वपूर्ण बातें कहीं। उन्होंने ‘थेरीगाथा’ ग्रंथ का जिक्र करते हुए मीराबाई एवं मध्यकाल की अन्य कवियत्रीयों पर दृष्टिपात किया। डॉ. विनोद कुमार ने ‘स्त्री पुरुष की समानता’ कथन के थोथेपन को उजागर करते हुए कहा कि यह समानता सिर्फ किताबों और एजेंडों में ही है। वास्तव में इस कथन का यथार्थ से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं।

उन्होंने कहा कि हमें प्रत्येक स्त्री को जागरूक करना होगा, यह जागरूकता तभी आएगी जब सभी लड़कियाँ शिक्षित होंगी। उनमें स्त्री होने का गर्व बोध होगा। जिस समाज में बेटी का जन्म लेना एक भार समझा जाता हो वहाँ ‘सब समान है’ यह हकीकत नहीं। अपनी बेटी का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि हमें लड़कियों को जागरूक करना चाहिए। अपनी बेटी का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि मैं अपनी बेटी को बेटा कह संबोधित करता था किन्तु मेरी बेटी ने कहा कि मुझे बेटा नहीं ‘बेटी’ कहिए यह आत्मबोध सभी में आनी चाहिए। सभी बेटीयों को बेटी होने पर गर्वबोध होना चाहिए तभी स्त्री मुक्ति संभव है।”

कार्यक्रम के समापन पर बैरकपुर राष्ट्रगुरू सुरेन्द्रनाथ कॉलेज के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. बिक्रम कुमार साव ने धन्यवाद ज्ञापन किया एवं संचालन रिमझिम शर्मा द्वारा किया गया। कार्यक्रम के संयोजक डॉ. मान बहादुर सिंह, लेखिका माला वर्मा सहित विशेष सहयोगी के रूप में योगेश साव, कार्तिक साव, सुभाष साव, धीरज केशरी, अमरजीत पंडित, आदित्य साव, अमन यादव, अमन कुमार साव, अनुप चतुर्वेदी, विदिप्ता दास, कुसुम, रीतिका, अफसाना, काजल, शक्तिमान, अंशु, कशिस, आदि के साथ अन्य श्रोतागण उपस्थित थे।

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