सवैया
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काली अलकैं मुख पर ढलकैं जस नागिन सी बलखाय रहीं
मुखमण्डल पर कुछ यूँ हलकैं, घूँघट में चाँद छिपाय रहीं
पलकन के पीछे से ढुकि कै नैना हिय पर करि वार रहे
उस पर मधुरिम मुस्कान, लगै रस अधरन से छलकाय रहीं
- शब्दार्थ-
अलकें- लटें, सिर के बालों के गुच्छे
ढलकैं- लुढ़क रही हैं
हलकैं- हिलोरें मार रही हैं
ढुकि कै- छिप कर
बहुत सुंदर, मनोहारी सवैया