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नयी दिल्ली। विनायक दामोदर सावरकर पर राहुल गांधी की टिप्पणी के बाद शुरू हुआ विवाद थम नहीं रहा है। सांसदी जाने के बाद राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी। इस कॉन्फ्रेंस में राहुल गांधी ने माफ़ी मांगने के सवालों पर अपनी प्रतिक्रिया दी थी। राहुल गांधी ने कहा था, ”मैं माफ़ी नहीं मांगूंगा क्योंकि मैं सावरकर नहीं हूं। गांधी हूं। गांधी माफ़ी नहीं मांगा करते। इस बयान के चलते कांग्रेस और उद्धव ठाकरे के बीच भी मतभेद नज़र आए थे। अब इस मामले में वीडी सावरकर के पोते रंजीत सावरकर का बयान आया है।
रंजीत सावरकर ने कहा, ”राहुल गांधी कहते हैं कि वो माफी नहीं मांगेंगे क्योंकि वो सावरकर नहीं हैं। मैं राहुल गांधी को चुनौती देता हूं कि वो ये दस्तावेज़ दिखाएं कि सावरकर ने माफ़ी मांगी थी। रंजीत सावरकर ने कहा, ”अपनी राजनीति को चमकाने के लिए देशभक्तों के नाम का इस्तेमाल करना गलत है। मामले में एक्शन लेना चाहिए।’
सावरकर को साल 1910 में नासिक के कलेक्टर की हत्या में संलिप्त होने के आरोप में लंदन में गिरफ़्तार किया गया था। सावरकर को सजा काटने के लिए अंडमान भेज दिया गया था। अंडमान के सेल्युलर जेल (काला पानी) में उनके काटे 9 साल 10 महीनों ने अंग्रेज़ों के प्रति सावरकर के विरोध को बढ़ाने के बजाय समाप्त कर दिया।
सावरकर पर ख़ासा शोध करने वाले निरंजन तकले ने बताया “मैं सावरकर की ज़िंदगी को कई भागों में देखता हूँ। उनकी ज़िंदगी का पहला हिस्सा रोमांटिक क्रांतिकारी का था, जिसमें उन्होंने 1857 की लड़ाई पर किताब लिखी थी। इसमें उन्होंने बहुत अच्छे शब्दों में धर्मनिरपेक्षता की वकालत की थी।
तकले ने कहा, “गिरफ़्तार होने के बाद असलियत से उनका सामना हुआ। 11 जुलाई 1911 को सावरकर अंडमान पहुंचे और 29 अगस्त को उन्होंने अपना पहला माफ़ीनामा लिखा, वहाँ पहुंचने के डेढ़ महीने के अंदर. इसके बाद 9 सालों में उन्होंने 6 बार अंग्रेज़ों को माफ़ी पत्र दिए। इन्हीं माफ़ीनामों को लेकर सावरकर अकसर कांग्रेस समर्थक और बीजेपी के आलोचकों के बीच निशाने पर रहते हैं।