27kol3

कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में 26 वर्षों(जनवरी 1933 से मई 1959) तक हिन्दी के पठन-पाठन से जुड़कर आचार्य ललिता प्रसाद सुकुल ने पश्चिम बंगाल में हिन्दी के व्यापक प्रचार प्रसार एवं सम्मान हेतु निरंतर जो संघर्ष किया उसकी चर्चा आज बहुत कम होती है । हमारे वे विद्यार्थी एवं साहित्य प्रेमी मित्र जो सुकुल जी के अवदान को समझना चाहते हैं,उन्हें ध्यान में रखते हुए ही यह आलेख लिखा गया है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

four × 2 =