5वीं पुण्यतिथि पर याद किये गए प्रख्यात कलाकार सुरेंद्र पाल जोशी

लखनऊ। रचनाकार अपने रचनाओं के माध्यम से चिरकाल तक जीवित रहते हैं। उनकी एक-एक रचनाएं उनके विचारों का प्रमाण होता है। कलाकार आम लोगों से अलग अपने विचारों के कारण ही होता है। उसकी सोच उसकी कलात्मकता लोगों को आकर्षित करती है। लीक से हट कर कुछ अलग करने की प्रवृत्ति सदैव होती है। यही उनके सफलता और प्रसिद्धि का कारण भी होता है। लखनऊ कला महाविद्यालय से अनेकों कलाकार निकले जो इस महाविद्यालय का मान सम्मान बढ़ाया कुछ ऐसी ही सोच के एक कलाकार सुरेंद्र पाल जोशी रहे हैं। चित्रकार भूपेंद्र कुमार अस्थाना ने बताया कि सोमवार को सुरेंद्र पाल जोशी को उनकी पाँचवी पुण्यतिथि पर सप्रेम संस्थान और अस्थाना आर्ट फोरम द्वारा याद किया।

सुरेंद्र पाल जोशी का जन्म 1958 में मनिहारा वाला, उत्तराखंड में हुआ था। 1988 से सम्प्रति जयपुर में निवास करते रहे और जयपुर को अपना कर्म स्थली बनाया। सुरेंद्र पाल जोशी 1985 बैच के लखनऊ कला एवं शिल्प महाविद्यालय लखनऊ के छात्र रहे। काफी संघर्ष पूर्ण रहा जोशी का जीवन। यही संघर्ष उन्हें स्वावलंबी और एक प्रसिद्ध कलाकार के रूप में स्थापित किया। जोशी अपने सृजन से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी विशिष्ट पहचान स्थापित कर के लखनऊ कला महाविद्यालय का मान सम्मान बढ़ाया था। नित नए प्रयोगों से उन्होंने अपनी एक विशिष्ट शैली भी बनाई थी।

जिसके कारण आज कला जगत में उन्हें बड़े सम्मान के साथ याद करते हैं। 12 जून 2018 को एक लम्बी बीमारी के बाद उनका निधन हो गया था। जोशी जी के आधुनिक एवं समकालीन गतिविधियों में अमूल्य योगदान हैं। एक आधुनिक कलाकार के रूप में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। जोशी का पेंटिंग, प्रिंटमेकिंग के अलावां म्यूरल व मूर्तिकला में भी असाधारण अधिकार रहा। उन्होंने चुनौती पूर्ण मानते हुए अभिनव प्रयोग किया इन विधाओं में। देश विदेशों में दो दर्जन प्रदर्शनी भी लगाई गई है जोशी की कलाकृतियों की।

कला एवं शिल्प महाविद्यालय, लखनऊ की एक ऐतिहासिक उपलब्धि जोशी के कारण तब मिली। जब भूतपूर्व छात्र सुरेन्द्र पाल जोशी की चुनिंदा कलाकृतियों के स्थाई प्रदर्शन और आधुनिक कला के उन्नयन के लिए उत्तराखंड शासन ने एक नवनिर्मित अत्याधुनिक भवन का निर्माण कर भारतीय कला जगत में एक महत्वपूर्ण पहल की है। ‘उत्तरा समकालीन कला संग्रहालय’, देहरादून की परिकल्पना स्वयं सुरेन्द्र पाल जोशी ने की थी और दिनांक 4,अक्तूबर 2017 को विधिवत उद्घाटन के उपरांत सामान्य दर्शको के लिये इसे खोल दिया गया था।

2013 में लखनऊ एक मौके पर जोशी का आना हुआ था जिस दौरान उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा था कि “जो चीज जैसी दिखती है, उसे वैसे ही उतार देना आर्ट नहीं, नकल है। फिर वह चीज चाहे कितनी भी खूबसूरत क्यों ना हो। इसलिए आर्टिस्ट को हमेशा नया खोजना चाहिए। नया देखना चाहिए और नया दिखाना चाहिए।’ उन्होंने कहा था कि यह शायद आर्ट में हमेशा नएपन की तलाश ही रही है, जिसके चलते उन्होंने देश के सबसे बड़े म्यूरल्स में से एक बनाने और किसी भारतीय एअरपोर्ट पर आर्ट फॉर्म को पहुंचाने जैसे कीर्तिमान गढ़े। यह शायद उनकी कला का नया अंदाज ही रहा, जिसके लिए उन्हें केंद्रीय ललित कला एकेडमी के नैशनल अवॉर्ड, यूपी ललित कला एकेडमी के ऑल इंडिया अवॉर्ड, यूनेस्को के रेपली गोल्ड मेडल, ब्रिटिश आर्ट्स काउंसिल एंड चार्ल्स वेलैस ट्रस्ट वेल्स की फेलोशिप सहित तमाम नैशनल और इंटरनैशनल अवॉर्ड और फेलोशिप से नवाजा गया था। उन्हें राजीव गांधी एक्सिलेंस एवार्ड से भी सम्मानित किया गया था।

60 फिट का लंबा वूडेन म्यूरल बनाने का रिकार्ड तो पहले ही उनके नाम था फिर जयपुर एअरपोर्ट पर लगे उनके इंस्टालेशन ‘ताना बाना’ को भी काफी तारीफ मिली। वे कहते थे कि “स्टूडेंट्स को पहले सौंदर्य की परिभाषा समझनी चाहिए। अब तो इंटरनेट पर इतनी चीजें मौजूद हैं कि उससे काफी कुछ सीखा जा सकता है।” उन्होंने लखनऊ कला शिक्षा के दौरान की कई घटनाओं का जिक्र किया करते थे “लखनऊ के दिनों को याद करते हुए सुरेंद्र पाल जोशी बताते हैं कि वह बहुत स्ट्रगल का दौर था। आर्थिक स्थिति इतनी खराब थी कि खाने वाले का बिल चुकाने के पैसे नहीं होते थे। दुकान वाले ने जब खाने का बिल मांगा तो वहीं कोयला उठाकर उसकी दुकान में उसका पोट्रेट बना दिया। वह खुश हो गया और एक महीने का बिल माफ। दूसरी बार मांगा तो उसके दुकान के आसपास का लैंडस्कैप बनाकर उसे गिफ्ट कर दिया। वह फिर खुश हो गया। लेकिन जब ऐसा चार पांच बार हो गया तो वह बोला, उसे दाल, आटा खरीदना है और वह पेंटिंग से मिलेगा नहीं, इसलिए पैसे दे दिया करो।”

सुरेंद्र पाल जोशी एक समकालीन कला जगत में एक स्थापित कलाकार रहे जिन्होंने अपने कला एवं जीवन संघर्षों के साथ साथ जीना सीखा और कभी न हार मानते हुए अपने आपको स्थापित किया। आज उनकी पाँचवी पुण्यतिथि पर देश भर के कलाकारों ने अपने अपने भाव को सोशल मीडिया पर साझा करते हुए याद किया। यह एक अच्छी परंपरा है।

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