स्मृति शेष : अशोक वक्त का जाना उज्जयिनी के कला जगत के वक्त का ठिठक जाना है

उज्जैन। वरिष्ठ कला समीक्षक, कवि और वक्ता अशोक वक्त का शनिवार सुबह असामयिक निधन हो गया है। उनका जाना कला जगत के वक्त का ठिठक जाना है। ये कहना है- प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा, कुलानुशासक, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन का। वे प्रेरणाधर्मी कवि, कला समीक्षक, स्तंभकार और सम्पादक थे। सांस्कृतिक पत्रकारिता जब अपने शुरुआती दौर में ही थी, अशोक जी ने न केवल उसे समृद्ध किया, वरन नई पीढ़ी के समीक्षकों की राह सुगम बनाई। वे आजीवन लेखनरत रहे। रंगमंच और कला समीक्षा के क्षेत्र में उन्होंने नए प्रतिमान रचे थे। नईदुनिया जैसे प्रतिष्ठित अखबार के लिए उन्होंने अनेक दशकों तक नियमित कला समीक्षाएँ लिखीं।

अशोक वक्त का जन्म भालचंद्र जोशी के संस्कारशील परिवार में 2 नवम्बर 1952 को उज्जैन में हुआ था। नानाजी श्रीकृष्ण दुबे ने उन्हें गोद ले लिया था, जो पुराने दौर के प्रतिष्ठित स्टेशन मास्टर थे। उन्हीं के यहां उच्च शिक्षित और अभिजात्य वातावरण में उनकी परवरिश हुई थी। यही परिवेश उनकी विशिष्ट लेखन और जीवन शैली की पृष्ठभूमि बना।

उन्होंने कई कला और संस्कृतिकर्म पर केंद्रित अनेक पत्र पत्रिकाओं का सम्पादन, प्रकाशन और स्तम्भ लेखन किया। इनमें कश्मकश, पुरुषार्थ प्रताप विक्रांत भैरव दर्शन आदि उल्लेखनीय हैं। इनके अलावा कालिदास समारोह सहित अनेक कला महोत्सवों की स्मारिकाओं का सुघड़ संपादन भी उन्होंने किया था।

अशोक वक्त का अवदान कई क्षेत्रों में था। हिंदी रंगमंच के आंदोलन को उन्होंने एक सक्रिय लेखक, रंगकर्मी और प्रेरक के रूप में ऊर्जा दी। उन्होंने अनेक एकांकी और नाटकों का सृजन किया। इनमें रेत सिर्फ रेत, एक और समझौता, कला का अपमान, गुलमोहर के लिए, स्वतंत्रता की वसन्तिका, ममता की छाँव, आजादी के आशिक और धर्मधीर महावीर प्रमुख हैं। ये नाटक प्रतिष्ठित सांस्कृतिक समारोहों में मंचित और प्रशंसित भी हुए।

वे अकिंचन भाव से साहित्य और कला जगत की सेवा करते रहे। पुरानी और नई पीढ़ी के सर्जकों के सहयोग के लिए वे हमेशा तैयार रहते थे। प्रख्यात कवि पद्मभूषण डॉ. शिवमंगल सिंह सुमन के वे अत्यंत निकट थे। सुमन जी की रचनावली के प्रकाशन का जब अवसर आया, वक्त जी ने उसका श्रमसाध्य संकलन और सम्पादन किया। जब बात उसमें क्रेडिट देने की आई, उन्होंने स्वयं का नाम भी प्रकाशित नहीं होने दिया।

वे अपनी लेखनी से उज्जैन की सांस्कृतिक विरासत का अविराम महत्वांकन करते रहे। इसी प्रकार वे मालवा सहित मध्य भारत की बहुविध रचनाधर्मिता के चलते-फिरते विश्वकोश की तरह थे। उनके संग्रह में मालवा के सृजन संसार से जुड़े असंख्य पत्र, पत्रिकाओं, ब्रोशर, फोटोग्राफ्स के अलावा संस्मरणों का खजाना था, जिसे वे जब तब प्रकाशित-प्रसारित करते रहते थे। साथ ही उस विद्या भंडार से युवा सर्जकों और शोधकर्ताओं को वे लाभान्वित करते रहे। सांस्कृतिक पत्रकारिता के साथ कला एवं रंग समीक्षा को उनका योगदान चिर स्मरणीय रहेगा। उनकी पावन स्मृति को नमन।

ताज़ा समाचार और रोचक जानकारियों के लिए आप हमारे कोलकाता हिन्दी न्यूज चैनल पेज को सब्स्क्राइब कर सकते हैं। एक्स (ट्विटर) पर @hindi_kolkata नाम से सर्च करफॉलो करें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

2 × 5 =