कोलकाता । ‘शिष्ट भाव हो नम्र आचरण/प्रेम भाव की ढेरी। त्यागी बनूँ महान बनूँ मैं/यही लालसा है मेरी।’ – यह काव्यांश है, सुकोमल वाणी, सर्वप्रिय व्यवहार, कर्मठता के प्रतीक और समादृत सहृदय व्यक्तित्व ब्रह्मदेव शर्मा द्वारा रचित ‘लालसा’ शीर्षक कविता से संबंधित। यह सिर्फ किसी कविता की तुकबंदी पद्यांश मात्र ही नहीं है, बल्कि यह अपने रचयिता सुकोमल कविहृदय ब्रह्मदेव शर्मा के दीर्घ संघर्षरत्त जीवन और उनकी निरंतर कर्मशीलता को चरितार्थ करता है।
ब्रह्मदेव शर्मा द्वारा अपनी किशोरावस्था से लेकर प्रौढ़ावस्था और फिर प्रौढ़ावस्था से लेकर वर्तमान वार्द्धक्यावस्था तक के अपने जीवन के लम्बे अंतराल में समय-समय पर रचित रचनाओं में से ही कुछ चयनित रचनाओं का एक छोटा-सा संकलन “लालसा, कुछ गद्य कुछ पद्य” का बहुत ही शानदार “लालसा-विमोचन” कोलकाता के ‘ईस्टर्न टावर’ के कम्युनिटी हॉल, (बेहला, कोलकाता) में विगत 6 दिसंबर, 2022 को साहित्य प्रेमियों, कविहृदय शर्मा के परिजन और रिश्तेदारों तथा ‘भारतीय विश्वकर्मा समाज’ के पदाधिकारियों और सदस्यों से सुसज्जित सभागार में साहित्य मर्मज्ञ डॉ. मनोज कुमार मिश्र, अध्यापक श्रीराम पुकार शर्मा, भारतीय विश्वकर्मा समाज के अध्यक्ष प्रभुनाथ शर्मा, उपाध्यक्ष अधिवक्ता दिनेश शर्मा, महासचिव बृजमोहन शर्मा के कर कमलों से संपन्न हुआ।
कवि ब्रह्मदेव शर्मा अपनी किशोरावस्था से ही कुछ प्रतिकूल कूल परिस्थितियों के कारण अपनी पुस्तैनी थका देने वाला कार्य ‘बढ़ईगीरी’ के साथ ही बसूला, रुखानी, हथौड़ी, रंदा, बटाली के ‘खट-खट’ और ‘सर-सर’ की मधुर और कठोर ध्वनि के साथ ही अपने मन में उभरते विभिन्न भाव-विचारों के शब्दों को लकड़ी के पाटा और कोरे कागजों पर लिपिबद्ध करते चले, जो कालांतर में कविता, निबंध और आलेख जैसी साहित्यिक विधाओं के स्वरूप को धारण करती रही। समय-समय पर वे सभी रचनाएँ कोलकाता सहित अन्य शहरों के प्रमुख समाचार पत्रों तथा पत्रिकाओं में सादर स्थान प्राप्त करती रही हैं। कवि ब्रह्मदेव शर्मा के बाल मन की कोमल भावनाओं से लेकर प्रौढ़ और फिर वर्तमान की परिपक्वता अर्थात लगभग 1958 से लेकर 2019 तक की विविध मानवीय भावनाओं संबंधित चयनित 55 पद्य और 14 गद्य रचनाओं का ही सुन्दर पुस्तकीय संकलन “लालसा – कुछ गद्य कुछ पद्य” है।
“लालसा, कुछ गद्य कुछ पद्य” का साकार स्वरूप प्रदान करने में, इस पुस्तक का विमोचन और प्रचार प्रसार करने के क्षेत्र में कवि हृदयमना ब्रह्मदेव शर्मा के सुयोग्य, संस्कारिक और मातृ-पितृभक्त द्वय पुत्रों अजय शर्मा और अनंत शर्मा तथा विदुषी पुत्री मधुलिका का संयुक्त प्रयास वंदनीय है। त्रि-संतानों ने बहुत ही प्रेम, लगन, संयम और मेहनत से अपने पिताश्री द्वारा लिपिबद्ध जहाँ-तहाँ बिखरे, कुछ को दीमक खाए, कुछ की धुंधली स्याही, कुछ की बिखरी स्याही, कुछ टुकड़ों में फट्टे पन्नों को धैर्य-धारण कर संकलित कर उसे प्रकाशन योग्य बनाकर “लालसा, कुछ गद्य कुछ पद्य” एक पुस्तक के रूप में साकार स्वरूप प्रदान किया है।
पुस्तक विमोचनकर्ता डॉ. मनोज कुमार मिश्र जी ने “लालसा, कुछ गद्य कुछ पद्य” की विविध रसात्मक रचनाओं की महत्ता को बहुत ही सुंदर विवेचन करते हुए अपनी स्वरचित कविता की काव्य-शैली अभिव्यक्त किया। अध्यापक श्रीराम पुकार शर्मा ने पुस्तक में चयनित कविताओं के महत्व को बताते हुए इस पुस्तक में अपनी मिट्टी की सोंधी सुगंध की प्राप्ति के एहसास को बताया और उसे सबके लिए ग्रहणीय और पठनीय बताया। भारतीय विश्वकर्मा समाज के उपाध्यक्ष दिनेश शर्मा ने पुस्तक में उल्लेखित जीवनोपयोगी तथ्यों को अपने जीवन में नित प्रयोग का परामर्श देते हुए इसे सबके लिए संग्रहणीय बताया।
जीवन के ढलान में जब अधिकांश लोग अपनी कर्महीनता के लिए तरह-तरह के बहाने बनाते फिरते हैं, ऐसे में छिहतर शिशिर को आत्मसात करते हुए ब्रह्मदेव शर्मा निरंतर अपनी पारिवारिकता, सामाजिकता और बौद्धिक कर्मशीलता को प्रदर्शित करते हुए नित नए साहित्यिक कर्म में प्रवृत हैं। जिन्हें देख और समझ कर ही युवा अनुचरों में निरंतर कर्मशील बने रहने की प्रेरणा जागृत होती है।
“लालसा, कुछ गद्य कुछ पद्य” के शुभ विमोचन के अवसर पर ‘भारतीय विश्वकर्मा समाज’ ने अपने विश्वकर्मा कुल गौरव संतति समादृत कवि हृदयमना ब्रह्मदेव शर्मा को “विश्वकर्मा साहित्य पुरस्कार” प्रदान कर सम्मानित किया। सबसे बड़ी बात है कि “लालसा, कुछ गद्य कुछ पद्य” के विमोचन कार्यक्रम में ब्रह्मदेव शर्मा के पूर्णतः संस्कारिक संतान सहित पूरे परिजन व रिश्तेदार जन अपने विविध अतिथि-सेवा कार्यों के द्वारा कार्यक्रम को अलंकृत करते रहे, जो केवल धन्यवाद के ही पात्र नहीं, बल्कि सबके लिए सादर ग्रहणीय भी हैं। सम्पूर्ण कार्यक्रम को कवि ब्रह्मदेव शर्मा की सुपुत्री विदुषी मधुलिका शर्मा जी ने अपने विद्वत और सुन्दर साहित्यिक संचालन के द्वारा पुस्तक विमोचन समारोह को विशेष साहित्यिक वातावरण स्वरूप प्रदान किया।