लालसेना ने चंबल मे उड़ाये थे अंग्रेजों के छक्के

इटावा। महात्मा गांधी के अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन से प्रेरणा लेकर आजादी की लड़ाई में कूदने वाले कमांडर अर्जुन सिंह भदौरिया की अगुवाई में लाल सेना ने चंबल की पथरीली और ऊबड़ खाबड़ वादियों में अंग्रेजी सिपाहियों के छक्के छुड़ा दिये थे। लाल सेना के सदस्य जिले के टकपुरा गांव निवासी गुलजारी लाल के पौत्र वरिष्ठ पत्रकार गणेश ज्ञानार्थी ने शनिवार को यूनीवार्ता से बातचीत में कहा कि उनके बाबा रायॅल फोर्स मे सेवारत थे लेकिन 1942 मे महात्मा गांधी के अंग्रेजो भारत छोड़ों आवाहन से प्रेरित होकर वह नौकरी छोड कर आजादी के आंदोलन मे कूद पड़ें।

कंमाडर साहब के साथ मिल कर चंबल नदी के किनारे तोप चलाने से लेकर बंदूक चलाने का प्रशिक्षण भी अपने साथियों को दिया करते थे । लालसेना मे करीब पांच हजार के आसपास सशस्त्र सदस्य आजादी के आंदोलन मे हिस्सेदारी किया करते थे। उन्होने कहा कि लालसेना से लोगो के जुड़ाव इसलिए बढ़ा था क्योंकि ग्वालियर रियासत की सहानूभूति अंग्रेजो के प्रति हुआ करती थी इसलिए जब चंबल मे कंमाडर साहब ने लालसेना खडी की तो लोग एक के बाद एक करके जुडना शुरू हो गये और एक समय वो आया जब लालसेना का प्रभुत्व पूरे चंबल मे नजर आने लगा और अंग्रेज सेना के दांत खट्टे कर दिये गये।

कंमाडर अर्जुन सिंह भदौरिया के बेटे सुधींद्र भदौरिया बताते है कि चंबल मे लालसेना के जन्म की कहानी भी बडी ही दिलचस्प है । उस समय हर कोई आजादी का बिगुल फूंकने मे जुटा हुआ था । इसलिए उनके पिता भी आजादी के आंदोलन मे कूद पडे। उन्होने चंबल घाटी मे लालसेना का गठन करके लोगो को जोड़ते हुये छापामारी मुहिम जोरदारी के साथ शुरू की। इसकी प्रेरणा उनको चीन और रूस मे गठित लालसेना से मिली थी जो उस समय दोनो देशो मे बहुत ही सक्रिय सशस्त्र बल था।

1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में लाल सेना का गठन किया गया, जिसमें सशस्त्र सैनिकों की भर्ती की तथा ब्रिटिश ठिकानों पर सुनियोजित हमला करके आजादी हासिल करने का प्रयास किया गया। लालसेना ने अंग्रेजी सेना की यातायात व्यवस्था, रेलवे डाक तथा प्रशासन को पंगु बना दिया। अंग्रेज इनसे इतने भयभीत थे कि कमाडंर को जेल में भी बेड़िया डालकर रखा जाता था। आजादी की लड़ाई में अपनी जुझारू प्रवृत्ति और हौसले के बूते अंग्रेजी हुकूमत का बखिया उधड़ने वाले अर्जुन सिंह भदौरिया को स्वतंत्रता सेनानियों ने कमांडर की उपाधि से नवाजा।

कमांडर ने इसी जज्बे से आजाद भारत में आपातकाल का जमकर विरोध किया। तमाम यातनाओं के बावजूद उन्होने हार नहीं मानी जिससे प्रभावित क्षेत्र की जनता ने सांसद चुन कर उन्हे सर आंखों पर बैठाया। 10 मई 1910 को बसरेहर के लोहिया गांव में जन्मे अर्जुन सिंह भदौेरिया 1957,1962 और 1977 में इटावा से लोकसभा के लिए चुने गए । कमांडर अर्जुन सिंह भदौरिया संसद में भी उनके बोलने का अंदाज बिल्कुल जुदा रहा। 1959 में रक्षा बजट पर सरकार के खिलाफ बोलने पर उन्हें संसद से बाहर उठाकर फेंक दिया गया।

लोहिया ने उस वक्त उनका समर्थन किया। पूरे जीवनकाल में लोगों की आवाज उठाने के कारण 52 बार जेल भेजे गए । आपातकाल में उनकी पत्नी तत्कालीन राज्यसभा सदस्य श्रीमती सरला भदौरिया और पुत्र सुधींद्र भदौरिया अलग-अलग जेलो में रहे।पुलिस के खिलाफ इटावा के बकेवर कस्बे में 1970 के दशक में आंदोलन चलाया था। लोग उसे आज भी बकेवर कांड के नाम से जानते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

9 + eight =