रामचरितमानस, पंचतंत्र अब पूरी दुनियां की धरोहर बनें!

संयुक्त राष्ट्र के यूनेस्को के मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रीजनल रजिस्टर में रामचरितमानस और पंचतंत्र शामिल हुए
रामचरितमानस की पवित्र पांडुलिपियों व पंचतंत्र की कथाओं का यूनेस्को की धरोहर बनने से हर भारतवासी गौरवविंत हुआ है- एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर भारत की आध्यात्मिकता में महाभारत तो विश्व प्रसिद्ध है ही, परंतु महामानवों द्वारा रचित भारत के अनेक ग्रंथ व रचित पावन पुस्तक और अनमोल धरोहर जैसे रामायण, रामचरितमानस, गीता इत्यादि ऐसे अनेक लिपिक ग्रंथ है जो पूरी दुनियां में पावन माने जाते हैं। हमें यह याद होगा कि हमने पिछले साल देखे थे कि किस तरह बिहार के तत्कालीन शिक्षा मंत्री व यूपी के एक नेता ने रामचरितमानस पर दिए गए एक बयान से राजनीति गरमा कर सियासी तूफान उठ गया था और इस पवित्र ग्रंथ पर बैन लगाने तक की मांग की गई थी, जिसके कारण रामचरितमानस की बिक्री तेजी से बढ़ती हुई दर्ज की गई थी जो गीता प्रेस गोरखपुर की तरफ से खुद बयान आया था। दिनांक 14 मई 2024 को मीडिया में जानकारी आई कि संयुक्त राष्ट्र के यूनेस्को (संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन) जिसके 195 से अधिक सदस्य 8 एसोसिएट सदस्य हैं, रामचरितमानस की सचित्र पांडुलिपियों व पंचतंत्र की कथाओं को एशिया व प्रशांत क्षेत्र के लिए विश्व की स्मृति समिति मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड कमिट फॉर एशिया एंड द पैसिफिक (एमओडब्लूसीएपी) की दसवीं बैठक 7-8 मई 2024 को मंगोलिया की राजधानी उलानबटार में आयोजित की गई थी जिसमें संयुक्त राष्ट्र के 38 प्रतिनिधि और 40 पर्यवेक्षक तथा नामांकित एकत्रित हुए थे, इसमें इस निर्णय को मंजूरी दी गई थी।

बता दें कि इसके साथ ही भी 20 धरोहरो को 2024 के लिए रजिस्टर में दर्ज किया गया है, जो भारत के लिए एक गौरवपूर्ण क्षण है। इसकी जानकारी दिनांक 14 मई 2024 को मीडिया में आई तो, चहुंओर खुशी की लहर दौड़ गई अनेक धार्मिक आध्यात्मिक स्थलों पर खुशियां मनाते हुए दिखाई दिए। इस महान उपलब्धि के लिए मैंने आज इस विषय को आलेख लिखने के लिए चुना और मीडिया में रिसर्च कर बड़ी मेहनत से यह तैयार किया हूं। चूंकि रामचरितमानस पंचतंत्र अब पूरी दुनियां की धरोहर बन गया है क्योंकि संयुक्त राष्ट्र यूनेस्को के मेमोरी आफ वर्ल्ड रीजनल रजिस्टर में रामचरितमानस और पंचतंत्र शामिल किए गए हैं। इसीलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आलेख के माध्यम से चर्चा करेंगे रामचरितमानस की सचित्र पांडुलिपियों व पंचतंत्रों की कथाओं का यूनेस्को धरोहर बनने के से हर भारतवासी गौरवविंत हुआ है।

साथियों बात अगर हम प्राचीन रामचरितमानस व पंचतंत्र के यूनेस्को में शामिल होने की करें तो, प्राचीन रामचरितमानस की पांडुलिपियां, 15वीं सदी की पंचतंत्र दंतकथाओं समेत एशिया-प्रशांत की 20 धरोहरों को 2024 के लिए यूनेस्को के मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रीजनल रजिस्टर में दर्ज किया गया है। अधिकारियों ने सोमवार को कहा कि यह निर्णय एशिया और प्रशांत के लिए विश्व समिति की स्मृति (एमओडब्ल्यूसीएपी) की 10वीं आम बैठक में लिया गया। बैठक 7 व 8 मई के दौरान मंगोलिया की राजधानी उलानबटार में बुलाई गई थी। बैठक की मेजबानी मंगोलिया के संस्कृति मंत्रालय, यूनेस्को के लिए मंगोलियाई राष्ट्रीय आयोग और बैंकॉक में यूनेस्को क्षेत्रीय कार्यालय ने की थी।

अधिकारियों ने कहा, इस वर्ष रिकॉर्ड में वंशावली रिकॉर्ड को विशेष रूप से शामिल किया गया है। इनमें मंगोलिया के खलखा मंगोलों का परिवार एवं उनकी वंशावली, चंगेज खान का घर शामिल है। इसके अलावा चीन में हुइझोउ और मलेशिया में केदाह राज्य के समुदाय, पारिवारिक इतिहास को भी शामिल किया गया है। इस वर्ष के अंकित रिकार्डों में विज्ञान और साहित्य को भी स्थान दिया गया है। इसमें बांग्लादेश की विज्ञान कथाओं की नारीवादी लेखिका रोकेया एस हुसैन को भी मान्यता दी गई। उन्होंने 1905 की अपनी कहानियों सुल्तनाज ड्रीम में आविष्कार किए जाने से पहले ही हेलिकॉप्टर और सौर पैनल दोनों की कल्पना कर ली थी। रामचरितमानस, पंचतंत्र, और सहृदयालोक-लोकन।रामचरितमानस को तुलसीदास ने 16वीं शताब्दी में अवधी बोली में लिखा था। यह रामायण से भिन्न है जिसे ऋषि वाल्मिकी ने संस्कृत भाषा में लिखा था, रामचरितमानस चौपाई रूप में लिखा गया ग्रंथ है। पंचतंत्र दुनिया की दंतकथाओं के सबसे पुराने संग्रहों में से एक है जो संस्कृत में लिखा गया था। विष्णु शर्मा जो महिलारोप्य के राजा अमर शक्ति के दरबारी विद्वान थे, उन्हें पंचतंत्र का श्रेय दिया जाता है। इसकी रचना संभवतः 300 ईसा पूर्व के आसपास हुई थी। इसका अनुवाद 550 ईसा पूर्व में पहलवी (ईरानी भाषा) में किया गया था।

साथियों बात अगर हम एमओडब्लूसीएपी की दसवीं बैठक 7- 8 में 2024 की करें तो, एशिया और प्रशांत क्षेत्र के लिए विश्व की स्मृति समिति (मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड कमिटि फॉर एशिया एंड द पैसिफिक- एमओडब्ल्यूसीएपी) की 10वीं बैठक हुई, जो एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर रही, क्योंकि भारत से तीन नामांकन सफलता पूर्वक यूनेस्को की ‘मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड एशिया-प्रशांत क्षेत्रीय रजिस्टर’ में शामिल हुए हैं। मंगोलिया की राजधानी उलानबटार में ये बैठक आयोजित हुई थी, जिसमें संयुक्त राष्ट्र से 38 प्रतिनिधि और 40 पर्यवेक्षक तथा नामांकित एकत्र हुए थे। इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र (आईजीएनसीए) के डीन (प्रशासन) एवं कला निधि प्रभाग के विभागाध्यक्ष ने भारत की इन तीन प्रविष्ठियों को प्रस्तुत किया-
(1) सहृदयलोक-लोचन की पांडुलिपि (भारतीय काव्यशास्त्र का महत्वपूर्ण पाठ)
(2) पञ्चतन्त्र की पांडुलिपि
(3) तुलसीदास के रामचरितमानस की चित्रित पांडुलिपि
रजिस्टर उप-समिति (आरएससी) द्वारा विस्तृत चर्चा और सिफारिशों के बाद सदस्य देशों के प्रतिनिधियों द्वारा वोटिंग के बाद तीनों नामांकन सफलता पूर्वक शामिल हुए, जो 2008 में रजिस्टर की शुरुआत से पहले किए गए पहले भारतीय प्रवेशों को चिह्नित करते हैं। रामचरितमानस पञ्चतन्त्र और सहृदय लोक लोचन ऐसी कालजयी कृतियां हैं, जिन्होंने भारतीय साहित्य और संस्कृति को गहराई से प्रभावित किया है। राष्ट्र के नैतिक ताने-बाने और कलात्मक अभिव्यक्तियों को आकार दिया है। इन साहित्यिक कृतियों ने समय और स्थान का अतिक्रमण कर भारत और उसके बाहर भी पाठकों और कलाकारों की पीढ़ियों पर एक अमिट छाप छोड़ी है। गौरतलब है कि सहृदयालोक-लोचन की रचना नवीं शताब्दी में आचार्य आनंदवर्धन ने की थी। जबकि ‘पञ्चतन्त्र’ की रचना पं. विष्णु शर्मा ने की थी। बता दें इन पांडुलिपियों का समावेश भारत के लिए गौरव का क्षण है, जो देश की समृद्ध साहित्यिक और सांस्कृतिक विरासत का प्रमाण है। यह वैश्विक सांस्कृतिक संरक्षण प्रयासों में एक कदम आगे बढ़ने का प्रतीक है। इन उत्कृष्ट कृतियों का सम्मान करके, हम न केवल उनके रचनाकारों की रचनात्मक प्रतिभा को श्रद्धांजलि देते हैं, बल्कि यह भी सुनिश्चित करते हैं कि उनकी गहन बुद्धिमता और सार्वकालिक शिक्षाएं भावी पीढ़ियों को प्रेरित और प्रबुद्ध करती रहेंगी।

साथियों बात अगर हम वैश्विक संस्कृतिक दस्तावेजों के संरक्षण की करें तो, वैश्विक सांस्‍कृतिक दस्‍तावेजों का संरक्षण विश्व निकाय ने 8 मई को एक बयान में कहा कि 10वीं आम बैठक की मेजबानी मंगोलिया के संस्कृति मंत्रालय, यूनेस्को के लिए मंगोलियाई राष्ट्रीय आयोग और बैंकॉक स्थित यूनेस्को क्षेत्रीय कार्यालय द्वारा की गई। यह वर्ष एमओडब्ल्यूसीएपी क्षेत्रीय रजिस्टर ‘मानव अनुसंधान, नवाचार और कल्पना थीम पर है। इस बैठक में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) के कला निधि प्रभाग के डीन (प्रशासन) एवं विभाग प्रमुख भी मौजूद रहे आईजीएनसीए के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, रामचरितमानस और पंचतंत्र को इस लिस्‍ट में शामिल करना भारत के लिए एक गौरवपूर्ण क्षण है, जो देश की समृद्ध साहित्यिक विरासत और सांस्कृतिक विरासत की पुष्टि करता है। यह वैश्विक सांस्कृतिक संरक्षण प्रयासों में एक कदम आगे बढ़ने का प्रतीक है जो विविध आख्यानों को पहचानने और उनकी सुरक्षा करने के महत्व पर प्रकाश डालता है।

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी : संकलनकर्ता, लेखक, कवि, स्तंभकार, चिंतक, कानून लेखक, कर विशेषज्ञ

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि रामचरितमानस, पंचतंत्र अब पूरी दुनियां की धरोहर बनें! संयुक्त राष्ट्र के यूनेस्को के मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रीजनल रजिस्टर में रामचरितमानस और पंचतंत्र शामिल हुए।रामचरितमानस की पवित्र पांडुलिपियों व पंचतंत्र की कथाओं का यूनेस्को की धरोहर बनने से हर भारतवासी गौरवान्वित हुआ है।

(स्पष्टीकरण : इस आलेख में दिए गए विचार लेखक के हैं और इसे ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है।)

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