विनय सिंह बैस, नई दिल्ली । अपने कालखंड में महर्षि वाल्मीकि ने “रामायण” और गोस्वामी तुलसीदास ने “रामचरितमानस” से जिस प्रकार जनमानस को शिक्षित और जाग्रत किया था, रामानंद सागर ने भी अपने धारावाहिक ‘रामायण” के माध्यम से हमारी पीढ़ी के बच्चों, जवान, वृद्ध, नर-नारी सभी के हृदय को उद्वेलित और मन को सम्मोहित करने में सफल रहें हैं।
रामायण की सफलता का बड़ा श्रेय इसके गीत- संगीत को जाता है। ऐसा लगता है कि श्रद्धेय रवींद्र जैन का जन्म रामायण को गीत -संगीत देने के लिए ही हुआ हो। उनकी रूहानी आवाज और दिलकश संगीत सीधे हृदयतल में उतर जाता है। दोहा, चौपाई, छंदों और लोकगीतों को अवधी, बृज, हिंदी में लयबद्ध कर शायद ही कोई उनसे बेहतर प्रस्तुत कर पाता।
अरुण गोविल, सुनील लहरी, संजय जोग, दारा सिंह, अरविंद त्रिवेदी ने क्रमशः राम, लक्ष्मण, भरत, हनुमान और रावण का किरदार निभाया नहीं बल्कि पूरी तरह उसे जिया है, भोगा है। तभी तो इस धारावाहिक के सारे प्रसंग इतने जीवंत और मार्मिक बन पड़े हैं। इन कलाकारों के साथ दर्शक रोता है, विह्वल होता है, क्रोधित होता है और इस तरह रामकथा के साथ बहता चला जाता है।
रामायण की शूटिंग के पश्चात अरुण गोविल का हमेशा के लिए धूम्रपान छोड़ना और अपने क़िरदार के माध्यम से भगवान राम को कहे हुए अपशब्दों से पश्चात्ताप हेतु अरविंद त्रिवेदी का अपने घर में हर हफ्ते रामायण का पाठ कराना दर्शाता है कि इन कलाकारों ने अपने किरदार को कितनी संजीदगी से निभाया।
रामानंद सागर कृत रामायण भारतीय मनोरंजन जगत में “न भूतो, न भविष्यति” जैसा कुछ चमत्कार हुआ है। जिस धारावाहिक के पात्रों को लोग आज भी सच में भगवान मानते हों, सोचो उसका आम भारतीय जनमानस पर कितना गहरा प्रभाव पड़ा होगा।
जय सियाराम। दशहरे की हार्दिक बधाई।