रामानंद सागर जयंती विशेष…

सीताराम चरित अति पावन, मधुर सरस अरु अति मनभावन’

श्री राम पुकार शर्मा, हावड़ा । नगर की सभी सड़कें वीरान, बाज़ार शून्य, सिनेमा-थियेटर खाली, रेलवे प्लेटफोर्म पर रेलगाड़ियाँ खड़ी, हवाई जहाज की उड़ान विलम्ब, ट्रक-बसें किसी ढाबे के बाहर खड़ी, अस्पताल से रोगी गायब आदि जैसी कुछ अचम्भित करने वाली खबरें 24 जनवरी 1987 से 31 जुलाई 1988 तक के लगभग प्रति रविवार के सुबह साढ़े नौ बजे से दस बजे तक की आती रहती थी। कारण यह समय टेलेविजन पर ‘सीताराम चरित अति पावन, मधुर सरस अरु अति मनभावन’ के मंगलमय उद्घोष करने वाला ‘रामानंद सागर’ साहब के धारावाहिक “रामायण” का प्रसारण काल हुआ करता था। सभी लोग अपने कामकाज को छोड़कर, नहा-धोकर पूर्णतः सात्विक रूप में भक्ति-भाव से टेलीविजन के सम्मुख आसन लगाए बैठ जाया करते थे।

“जय श्रीराम” के सनातनी उद्घोषक रामानंद सागर का जन्म लाहौर के नजदीक ‘असल गुरु’ नामक स्थान पर 29 दिसंबर 1927 को एक धनाढय परिवार में हुआ था। रामानंद को उनकी नानी ने गोद ले लिया था। पहले उनका नाम ‘चंद्रमौली चोपड़ा’ था, लेकिन नानी ने उनका नाम बदलकर ‘रामानंद’ रख दिया। यह सत्य है कि रामानंद सागर को अपने असल माता-पिता का प्यार नहीं मिला। उस समय उनके परिवार की गिनती लाहौर के धनी परिवारों में हुआ करती थी। वह परिवार बहुत ही रसूख और शानो-शौकत वाला था। लेकिन 1947 में देश-विभाजन का दंश उस परिवार को झेलना पड़ा। उस परिवार को अपना जमा-जमाया व्यापार, सारे धन-दौलत आदि को छोड़कर कश्मीर में आना पड़ा।

उस दुर्भाग्य के व्यक्त रामानन्द सागर के पास संपत्ति के नाम पर महज पाँच आने ही थे। रामानन्द सागर का पीछा उनका दुर्भाग्य ने न छोड़ा, बल्कि वह भी उनके साथ ही आया। उनके परिवार की मुश्किलें और परेशानी भरे दिन शुरू हो गए। अर्थगत आभाव के कारण उनकी पढ़ाई में रूकावटें आने लगीं, तो उन्होंने एक चपरासी की नौकरी कर ली, जो उनके परिवार के लिए भरण-पोषण का सहायक बना।

इस कठिन परिस्थिति में भी अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए उन्होंने समयानुसार ट्रक क्लीनर से लेकर साबुन बेचने और सुनार का भी काम किया। रामानंद सागर दिन में अपने परिवार के लिए ये सब काम करते थे और रात में अपने भविष्य को बनाने लिए अपनी पढ़ाई किया करते थे। मेधावी होने के कारण उन्हें पंजाब विश्वविद्यालय से स्वर्ण पदक भी मिला और फारसी भाषा में निपुणता के लिए उन्हें ‘मुंशी फजल’ के खिताब से नवाजा भी गया।

रामानन्द सागर बाद में एक पत्रकार बन गए और जल्द ही अपनी योग्यता के बल पर एक अखबार में समाचार संपादक के पद तक पहुँच गए। बचपन से ही उन्हें साहित्य में रुचि थी। उन्होंने लगातार संघर्ष करते हुए अपने जीवन के मार्ग को स्वयं ही प्रशस्त किया। इसी बीच उन्होंने समयानुसार 22 छोटी कहानियाँ, तीन वृहत कहानी, दो क्रमिक कहानियाँ और दो नाटक लिखे।

रामानंद सागर के जीवन में नया मोड़ तब आया, जब उन्होंने मुंबई मायानगरी का रुख किया। वहाँ उन्होंने ‘रेडर्स ऑफ द रेल रोड’ नाम की एक मूक फिल्म में एक ‘क्लैपर बॉय’ के तौर पर अपनी फिल्मी करियर की शुरुआत की। इसके बाद उन्होंने पृथ्वीराज कपूर के ‘पृथ्वी थिएटर’ में एक असिस्टेंट मैनेजर के तौर पर काम प्रारंभ किया। भारतीय फिल्म के शोमैन राज कपूर साहब की फिल्म ‘बरसात’ की कहानी और स्क्रीनप्ले को उन्होंने ही लिखा था। फिर तो उन्होंने ‘चोपड़ा’, ‘बेदी‘ और ‘कश्मीरी’ उपनाम से और फिर बाद में हमेशा के लिए ‘रामानन्द सागर’ के नाम से फिल्मी जगत की राह पर लगभग दौड़ ही पड़े। फिर उन्होंने कभी पीछे मुड़कर न देखा।

फिल्म क्षेत्र से जुड़कर रामानंद सागर ने 1950 में खुद की प्रोडक्शन कंपनी ‘सागर आ‌र्ट्स’ बनाई, जिसकी पहली फिल्म ‘मेहमान’ थी। इसके बाद ‘बरसात’, ‘घूँघट’, ‘आरजू’, ‘चरस’, ‘प्रेम बंधन’, ‘बगावत’, ‘ललकार’ जैसे अनगिनत फिल्मों के साथ वर्ष 1985 में वह छोटे परदे की दुनिया में उतर गए और ‘विक्रम बेताल’, ‘दादा-दादी की कहानियाँ’, ‘रामायण’, ‘कृष्णा’, ‘अलिफ लैला’, ‘जय गंगा मैया’ ‘ब्रह्मा विष्णु महेश’, ’जय महालक्ष्मी’, ‘साईं बाबा’ जैसे कई अतिचर्चित और प्रतिष्ठित धारावाहिक बनाकर एक विशेष कीर्तिमान स्थापित किए हैं। धारावाहिक ‘रामायण’ ने लोगों के दिलों में रामानंद सागर की एक आदर्श व्यक्तित्व की अक्षुण्ण छवि सर्वदा के लिए स्थापित कर दी, जो किसी देव से कम नहीं है।

देश और दुनिया के लाखों-करोड़ों दर्शकों पर जादू करने वाले ‘रामायण’ धारावाहिक को रामानंद सागर ने जिस तरह पेश किया था कि उसके चलते वह दर्शकों के बीच एक जीवित किंवदंती ही बन गए। लोग रविवार की सुबह का स्नान कर टेलीविजन को पूजा-पाठ कर बहुत ही आध्यात्म भाव से बड़ी बेसब्री से ‘रामायण’ का इंतजार करते थे और टेलीविजन सेट पर गाँव-मोहल्ले के लोगों का हुजूम ही उमड़ पड़ता था। बस और ट्रकों के ड्राइवर अपने वाहनों को ब्रेक लगाकर ‘रामायण’ देखने के लिए किसी ढाबे में लगे टेलीविजन से चिपक जाते थे। रेलवे प्लेटफॉर्म और हवाई अड्डों पर उस समय ‘रामायण’ का ही प्रदर्शन हुआ करता था।

वास्तव में रामानंद सागर की प्रतिभा ‘सागर’ की भांति ही गहरी और विशाल थी। उन्हें जो करोड़ों दर्शकों, समाज को दिशा देने वाले संतों-महात्माओं का भी अत्यंत स्नेह और आशीर्वाद भी प्राप्त हुआ था, जो किसी बिरले को ही प्राप्त हो सकते हैं। उनके सुपुत्र श्री प्रेमसागर का कहना है कि ‘रामायण’ की पटकथा तो सन् 1976 में अमेरिका में ‘चरस’ फिल्म की सूटिंग के समय ही रामानंद सागर जी के मन मस्तिष्क में बन बस गई थी। जिसकी पूर्व तैयारी हेतु पात्रों का पूर्व परीक्षण, पूर्व प्रयोग और चयन ‘विक्रम बेताल’ धारावाहिक के रूप में ही हो गया था।

रामानंद सागर की ‘रामायण’ को टेलीविजन पर आए आज करीब 35 साल हो चुके हैं, लेकिन आज भी उसका जादू लोगों के सिर पर चढ़कर ही बोलता है। उनकी ‘रामायण’ के राम-सीता अरुण गोविल और दीपिका चिखलिया को लोग सच में राम-सीता समझने और सम्मान देने लगे थे। उनके द्वारा प्रदर्शित ‘रामायण’ ने देश भर में एक तरह से ‘सनातनी संस्कृति’ की जन लहर ही जागृत कर दी। कोरोना काल में टेलीविजन पर एक बार पुनः “रामायण” का प्रसारण किया गया। इस बार भी उसका जादू सबके सर पर चढ़ कर बोलने लगा। करीब 35 वर्ष पुराना इस आध्यात्मिक धारावाहिक ने वर्तमान के अन्य सभी टेलीविजन कार्यक्रमों से ज्यादा ‘TRP’ को प्राप्त कर अपनी श्रेष्ठता को प्रमाणित की।

रामानंद सागर की प्रमुख कृतियाँ- लेखक के रूप में 1968 में ‘आँखें’। रामानंद सागर को उनकी फ़िल्में और धारावाहिक उपलब्धियों के लिए समयानुसार ‘पद्मश्री’, ‘फिल्म फेयर पुरस्कार’, ‘सर्वश्रेष्ठ निर्देशक’, ‘सर्वश्रेष्ठ लेखक’ आदि पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। 87 वर्षीय रामानंद सागर तीन महीने तक लगातार बीमार रहने के बाद 12 दिसम्बर, 2005 को देर रात मुंबई के एक अस्पताल में अपनी आखरी साँस ली और श्रीराम में सर्वदा के लिए लीन हो गए। ऐसी मृत्यु शायद ही किसी को प्राप्त हुई होगी, जब देश-विदेश के करोड़ों कला प्रेमी, करोड़ों चहेतों, हजारों संत-महात्माओं, सम्पूर्ण फ़िल्मी जगत में शोक की लहर छा गयी। इस अवसर पर सारा देश ने ही अश्रू जल बहाकर अपने चहेते को इस लोक से विदा किया।

‘मंगल भवन अमंगल हारी, द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी।
हरि अनंत हरि कथा अनंता, कहहि सुनहि बहुविधि सब संता।
राम सियाराम सियाराम जय जय राम।’

आधुनिक काल के समर्थ ‘तुलसीदास’ और ‘बाल्मीकि’ के नाम से सुविख्यात ‘रामानंद सागर’ को उनकी 95 वीं जयंती पर हम उन्हें सादर हार्दिक नमन करते हैं।
(रामानंद जयंती, 29 दिसम्बर, 2022)

श्रीराम पुकार शर्मा, लेखक

श्रीराम पुकार शर्मा
हावड़ा – 711101 (पश्चिम बंगाल)
ई-मेल सम्पर्क सूत्र – rampukar17@gmail.com

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