केवल मनोरंजन के लिए कविता कर्म नहीं होना चाहिए

  • हिंदी के युगपुरुष राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त का पावन स्मरण किया गया।

निप्र, उज्जैन : भारत के प्राचीन गौरव वर्तमान की दयनीय दशा और स्वर्णिम भविष्य का अद्भुत स्वरूप थे भारत के प्रथम राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त। उनका कहना था कविता केवल मनोरंजन के लिए नहीं होती है उस के माध्यम से जन जागृति का उद्घोष होना चाहिए। महात्मा गांधी ने उन्हें राष्ट्रकवि कहा था वह 12 वर्षों तक स्वतंत्रता के बाद राज्यसभा के सदस्य रहे।

राष्ट्रीयशिक्षक सं चेतना के द्वारा कवि की जयंती पर आयोजित गोष्ठी में जिस का विषय रहा राष्ट्रीय चेतना के परिदृश्य में कवि मैथिलीशरण गुप्त का काव्य। विषय पर बोलते हुए आगरा के डॉ. दिग्विजय शर्मा ने कहां कि चिरगांव में जन्मा भारत भारती का सपूत चिर अमर हो गया उन्हें बड़े आदर के साथ दद्दा कहकर के पुकारा जाता रहा। डॉ. शर्मा ने नारी किसान जन जागृति स्वतंत्रता आदि विषयों को लेकर गुप्त जी की कई कृतियों का उद्धरण दिया।

पुणे से डॉ. शहाबुद्दीन शेख ने कहा कि गुप्त जी राष्ट्रीयता की पावन धारा से ओतप्रोत रहे नारी के प्रति उनकी उदार भावना उनके उत्थान के लिए हमेशा संदेश देती रही। विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. शैलेंद्र शर्मा ने कहा कि वह राष्ट्र के गौरव रहे गुप्त जी को याद करना संपूर्ण भारतीय राष्ट्रीय और सांस्कृतिक चेतना के संवाहक को याद करना है। वह परमेश्वर के दर्शन भारत की पावन भूमि और उसके अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य में कराते हैं। श्री गुप्त जाति धर्म और संप्रदाय से ऊपर उठकर राष्ट्रीय चेतना के कवि थे।

मुख्य अतिथि इंदौर के डॉ. जी.डी. अग्रवाल ने कहा कि आज लोगों को पुस्तकों से लगाव कम होता जा रहा है जो ठीक नहीं है उन्हें गुप्त जी की रचनाएं पढ़ना चाहिए उन्होंने नर हो न निराश करो मन को गुप्त जी की बहुत ही प्रसिद्ध रचना का पाठ भी किया। गाजियाबाद से डॉ. रश्मि चौबे ने साकेत उर्मिला भारत भारती यशोधरा पंचवटी आदि कई कृतियों का संदर्भ देते हुए कहा कि वह गांधी जी से प्रभावित थे।

साथ ही गुप्तजी ने हिंदी को यौवन प्रदान करने वाला बताया। संस्था के महासचिव डॉ. प्रभु चौधरी ने गुप्त जी के साथ संस्था द्वारा आयोजित ऐसे कार्यक्रमों की रूपरेखा प्रस्तुत की। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे इंदौर के हरेराम बाजपेई ने गुप्त जी द्वारा 6 सितंबर 1952 में इंदौर के वीर वाचनालय भवन के शिलान्यास और श्री मध्य भारत हिंदी साहित्य समिति में काव्य पाठ के संदर्भ प्रस्तुत किए।

रायपुर की डॉ. मुक्ता कौशिक ने उन्हें लोक का कवि बताया। नार्वे से सुरेश चंद शुक्ला ने कहा कि उनका काव्य कर्तव्य की ओर उन्मुख करने वाला रहा। संगोष्ठी में मुंबई की डॉ. लता जोशी ने भी अपने विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर बालासाहेब तोरस्कर, मनीषा सिंह, मंजू रस्तोगी आदि ने भी अपनी सहभागिता की।

कार्यक्रम का संचालन मैथिलीशरण गुप्त की सुंदर रचनाओं के साथ रायपुर की पूर्णिमा कौशिक ने किया एवं अंत में आभार मुंबई की सुवर्णा जाधव ने व्यक्त किया। दद्दा की इन पंक्तियों को जो भरा नहीं है भावों से बहती जिसमें रसधार नहीं वह हृदय नहीं है पत्थर है जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं सभी लोगों ने समवेत स्वर में प्रस्तुत की।

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