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।।सुधीर सिंह की कविता।।
जिसने भी चाहा तुझे सब वो बेकार हो गए।
कुछ बन न सका जो वो कलमकार हो गए।।
आदतें बेशुमार थी उनकी आशिक बनाने की।
नजरो से इंतिहा लिया वो खबरदार हो गए।।
कौन सुनेगा मेरी गुजरी हुई इश्क ए दस्ता।
मुंह मोड़ लेते लोग वो समझदार हो गए।।
न दिन गुजरती हैं न ही मेरी राते खिसकती।
नजरे ही कब मिलाई जो वो हकदार हो गये।।
गुमराह कर दी मुझे वो इश्क जो फरमाया था।
थोड़ी सी मुस्कुराया था वो होशियार हो गये।।
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