।।मधुमास।।
राजीव कुमार झा
वसंत ऋतु!
सर्दी – गर्मी
बीत गया।
आकाश का
रूप नया!
धूप में पेड़ से
पत्ते टूट रहे,
जलधार में
सूबह सूरज
झाँक रहा।
बाग बगीचों में
नया मौसम।
गीत गा रहा!
नदी किनारे
सरसो के फूल
हँस पड़े!
यह ऋतु
जीवनदायी!
सबको खूब
बधाई!
अब खेत में फसल
पकेगी
खलिहानों में
रात कटेगी!
होली के दिन
गीत खुशी के
गाएंगे
अरी प्रिया!
शाम में
हंसी के गालों पर
लाल गुलाब
लगाएंगे
गर्मी के दिन आएंगे
कुएं पर
ठंडा पानी
भरने
किसी सुबह
जब जाएंगे
घर आएंगे
उसके पहले
खूब नहाएंगे
खाना खाकर
दफ्तर जाएंगे
घर आने से पहले
चौराहे से तरबूज
खरीदकर लाएंगे
शाम में
बांसुरी बजाकर
उसे रिझाएंगे
जो रूठी है
अब पास खड़ी है
झिलमिल हंसती
क्यों उदास
दिखती कालिंदी
शिथिल धार में
उगते तारों को
निहारती
गोधूलि की वेला में
राधा कान्हा से
मिलने
आंगन में आयी!
कन्हैया को
होली का गीत सुनायी
धूल भरी राहों में
बजती बांसुरी
सबको निंदिया
आधी रात में आयी
मन की बात बताई!