हृषीकेश की कविता : “जिनिगी हामार”

“जिनिगी हामार”

बालू के नेंव बाटे बालू के दीवार ,
फूस के पलानी हs जिनिगी हामार I

छने में माशा छने में तोला ,
दू-चार छन के तमाशा ई होला,
जइसे फुलझरी के अंजोर, फेरु अन्हार,
बालू के नेंव बाटे बालू के दीवार
फूस के पलानी हs जिनिगी हामार I

राम बनि के केहू ऊपर जब होला,
कतने पथल लउके अहिल्या के टोला,
पुलुई पर के खोंता हाजार गो बायार,
बालू के नेंव बाटे बालू के दीवार
फूस के पलानी हs जिनिगी हामार I

अमृत के धार बहे मुंहवा से जिनिका,
विष के दोकान सजे हियरा में उनुका,
सोनवा के कलसा में मदिरा के धार,
बालू के नेंव बाटे बालू के दीवार
फूस के पलानी हs जिनिगी हामार ।

हृषीकेश

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

nineteen − eleven =