।।क्या स्वतंत्र है।।
रामा श्रीनिवास ‘राज’
क्या स्वतंत्र है
खुली हवा में कहीं
गया अभ्यास
अभ्यस्त है भय का
ऐसी आजादी मेरी
जीना जरूरी।
मै अड़िग हूँ
औरों को शिक्षा देने
खुद को सींचा
अध मरा चेतन
भेद जहाँ बिकते
रूकता चल।
लौह साधना
भर दीन विश्वास
सफल कहाँ
उधम अंध पथ
राह की खुशबू भी
सोचती होगी।
विकराल क्या
किसी को पता नहीं
डगमगा है
पोल खुलते नहीं
या साज बजे नहीं
मुश्किल सभी।
फिर कहूँ मैं
खुली हवा में कहीं
मै आजाद नहीं
बाट जोत रहा हूँ
तेरे ही कसमों को
‘राज’ न साया।