कवि विक्रम क्रांतिकारी की कविता : अब देखकर उसमें इश्क क़ा इज़हार कीजिए!

देखो न नौकरी की चाह में,
घर वर्षो से त्यागा हैं।
माँ कहती है घर जाने पर,
क्या तू रात भर जागा हैं।।

सोचे थे की पढ़ लिख कर
मिल जायेगी नौकरी।
देख तमाशा साथ की दुल्हन
अभी बनी है छोकरी।।

बात बताउं इस दिल की,
तु अभी नहीं है माना।
राम गये थे चौदह बरस को,
अठरह हमने ठाना।

कभी वैकल्पिक कभी व्याख्या,
क्या-क्या करतीं सरकारें।
दाम दुगूना भाव चौगुना,
फिर भी डगर बुहारे।।

कभी जी.एस. कभी जीनियस,
का-का रार उ ठानें।
केतना पढलें केतना बेचलें,
अपने कछऊ ना जाने।।

साँप सीढ़ी की चयन प्रक्रिया,
कैसे माँ को समझाऊ।
हठ कर बैठी चांद की दुल्हन
अब किस पर इठलाऊं।।

तब साहब ने दिया फार्मूला,
पकौड़ा तुने तला नहीं।
हो जो कोई ऐसा पारखी
जिसको हमने छला नहीं।।

कश्मीर फाईल मे दर्द दिखाया,
टैक्स घटाया सिनेमा का।
रोड-रोड पर युवा घुमें,
तोहफा दिया फुलगेना का।।

गईया बोले बछवा बोले,
क्या-क्या सबको समझाउं।
कट गये सारे पेड देश के,
कितना सबको बतलाऊं।।

छोड मासूका बन गयी दूल्हन
चॉकलेट से खफ़ा नहीं।
कौन सा दर्द, कौन सा मर्ज
अब कोई दफा नहीं।

कहै विक्रम सूनअ ए नवल,
अब कइसे बतलायीं।
हम तोहसे प्यार करींला,
केतना हम समझायीं।।

डॉ. विक्रम चौरसिया

कवि विक्रम क्रांतिकारी

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