डॉ. विक्रम चौरसिया की कविता : जागो युवाओं, बुलंद अपनी आवाज करो

।।जागो युवाओं, बुलंद अपनी आवाज करो।।
डॉ. विक्रम चौरसिया

सुनो, राष्ट्र निर्माताओं
यह आखिर कैसी खेल है सत्ता की
जो युवाओं से खेल रहे हो
अरे! तुम उसे अंधेरे में ढकेल रहे हो
निकलती है भर्तियांँ पर होती इम्तिहान नहीं
होती हरदम पेपर लीक परीक्षाओं का कोई सम्मान नहीं
और फिर परिणाम नहीं
भटके दर-दर युवा काफ़िरो के घर
पर फिर भी ज्वॉइनिंग का नाम नहीं
ये सांप सीढ़ी की गिनती ना सहेंगे अब
फांँसी पर कब तक लटकेंगे सब?
आखिर क्यों युवाओं का सम्मान नहीं?
क्या चुनावों में उसका कोई नाम नहीं?
कर दो बंद परीक्षाओं पर चर्चा अब
बांट दो हाथों हाथ में पर्चा अब
होगी ना तुमसे पूरी इसकी योजना
यही है तुम्हारी भारत की नई परियोजना
छीन ली युवाओं की जवानी तुम
छीन ली नदियों की रवानी तुम
पेपर में गलत सवाल डालते हो
यार! मन में कैसे ख्याल पालते हो?
मैं हूँ, बेरोजगार युवा इसी के नाते
कह दूं दो चार तुम्हारी बातें
जुल्म हमारे साथ हजार करते हो
बस इसी का तुम सब व्यापार करते हो
अब मौन नहीं रहना है
अब और नहीं सहना है
जागो युवाओं, बुलंद अपनी आवाज करो
अधिकारों का जोर भरो
अब कुछ ऐसी हुंकार करो
लड़खड़ाती व्यवस्था को पार करो
झुकना नहीं अब रुकना नहीं अब
अपने हक का हिसाब करो
आओ हम सब मिलकर
इस झूठी सत्ता को बेनकाब करो।।

डॉ. विक्रम चौरसिया, चिंतक/दिल्ली विश्वविद्यालय

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