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।।जिंदगी यही है।।
डॉ. आर बी दास
सोचता हूं अक्सर क्या जिंदगी यही है,
सब कुछ तो है पास पर कुछ भी नहीं है…
कहने को तो सारी दुनियां ही अपनी है,
पर इस दुनियां में कोई अपना नहीं है…
रिश्ते रह गए बस नाम के दुनियां में,
अपनापन अब कही
बचा ही नही है…
जीवन में सिर्फ उलझन ही उलझन है,
क्या इनका कोई हल ही नहीं है…
जो मुस्कुरा रहा है उसे दर्द ने पाला होगा,
जो चल रहा है उसके पाव में छाला होगा…
बिना संघर्ष के इंसान चमक ही नहीं सकता,
जो जलेगा उसी दीए से तो उजाला होगा…
उदास होने के लिए उम्र पड़ी है,
सामने देखा तो जिंदगी खड़ी है…
अपनी हंसी को होठों से न जाने देना,
क्योंकि मुस्कुराहट के पीछे दुनिया पड़ी है…
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सलाहकार,
विश्व विद्यालय अनुदान आयोग,(UGC)
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