अर्जुन खटीक की कविता : अश्रु

।।अश्रु।।
अर्जुन खटीक

नक्षत्र सा जगमगाए नैनन में देखो
भूल से पृथ्वी पर न गिर जाए
जतन से सम्भाल लेना
वो कोमल अश्रु है।

किसी दृश्य में इतना मर्म न भर देना
कि विरह के आवेग में भर न जाए आंखे
भूल से ही सही किसी की आंखों में ना आ जाए
वो अश्रु है।

तनिक विचार कर शब्द बाण छोड़ना
आहत न कर दे किसी के हृदय को
चक्षुओं में नदी सी जो बन जाए
वो अश्रु है।

जब जब देखता हूं पीड़ पराई कभी
जीवट हो उठता है मन का सागर
गागर से भर जाते है नेत्र देखो
धरती पर प्रलय ना ला दे
वो अश्रु है।

मस्तिष्क में उभरता एक मेरे जीवन का सारांश
कराह उठती है आत्मा मेरी
तब दूसरे का मर्म जान पाता हूं
हां रो देते हैं नयन मेरे तब अश्रु की कीमत लगा पाता हूं।

स्वाद बड़ा नमकीन सा है
नमक समझ देखो सह मत जाना
जीवन भर आंखों को रुलाएगा
वो अश्रु है।

अर्जुन तितौरिया खटीक

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