कहते हैं कि हर इंसान के भीतर कुछ न कुछ अलौकिक प्रतिभा छिपी होती है। आवश्यकता है तो सिर्फ उसे पहचान कर सही दिशा में आगे बढ़ने की। अगर ऐसा संभव हुआ तो सफलता व मुकम्मल मंजिल उसका इंतजार करती है। कुछ इसी तरह की कहानी पीयूष कुमार गोयल (दादरीवाला) की है। उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर जनपद अंतर्गत दादरी निवासी रवि कांता गोयल व डॉ. देवेंद्र कुमार गोयल के घर 10 फरवरी 1967 को दादरी में पैदा हुए पीयूष सचमुच बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। सामान्यतः गणित वह विषय है, जिससे अक्सर लोग दूरी बनाकर चलते हैं, बावजूद इसके पीयूष का यह सर्वाधिक प्रिय विषय रहा है। गणित से लगाव को इसी बात से समझा जा सकता है कि उनके 3 पेपर इंटरनेशनल रिसर्च जर्नल में प्रकाशित हो चुके हैं। पेशे से यांत्रिक इंजीनियर पीयूष कुमार बताते हैं कि करीब 25 साल का विभिन्न कम्पनियों में काम करने का अनुभव है।
बचपन से ही कुछ नया करने की लगन ने कार्टूनिस्ट, लेखक व मोटीवेटर बना दिया। क्रिकेट अंपायरिंग का भी शौक रखता हूँ. दर्पण छवि का लेखक हूं। अपनी चैथी पुस्तक ’सोचना तो पड़ेगा ही’ को लेकर चर्चा में आए पीयूष कुमार गोयल (दादरीवाला) ने तारकेश कुमार ओझा के साथ हुई बातचीत के दौरान हर सवाल का बेबाकी से जवाब दिया। प्रस्तुत है, उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश।
प्र.1. आप संग्रह करने के भी शौकीन है ?
पीयूष: जी, मैं सन 1982 से संग्रह कर रहा हूं। सबसे पहले मैंने डाक टिकटों का संग्रह करना शुरू किया। इसके बाद धीरे-धीरे और अन्य चीजों को भी संकलन करना शुरू कर दिया। डाक टिकटों से आरंभ हुए मेरे संग्रह के खजाने में आज विभिन्न प्रकार की माचिस डिब्बयों, सिगरेट संग्रह, डाक टिकटों का संग्रह, आटोग्राफ संग्रह, विभिन्न प्रकार के कलात्मक पेनों का संग्रह, प्रथम दिवस संग्रह, सिक्के व नोट का संग्रह मौजूद है।
प्र.2. आप दर्पण छवि के लेखक है। इस विधा से आपने कौन-कौन सी पुस्तकें लिखी है ?
पीयूष: जी, मैं अब तक 16 पुस्तकें दर्पण छवि में लिख चुका हूं। हिंदी व अंग्रेजी में श्रीमद्भगवद्गीता, मेहंदी कौण से गीतांजलि, कार्बन पेपर से पंचतंत्र, कील से पीयूषवाणी व सुई से मधुशाला को लिखा हैं। मधुशाला इस संसार की पहली पुस्तक है, जो सुई से लिखी गई है।
प्र.3. आपकी कौन-कौन सी पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं ?
पीयूष: जी, मेरी चार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिसमें ‘‘गणित एक अध्धयन‘‘, ‘‘इजी स्पेलिंग‘‘ व तीसरी पुस्तक ‘‘पीयूषवाणी‘‘ के बाद अभी हाल ही में चैथी पुस्तक ‘‘सोचना तो पड़ेगा ही‘‘ का प्रकाशन पूरा हो गया है।
प्र.5. ‘‘सोचना तो पड़ेगा ही‘‘ पुस्तक की खासियत के बारे में बताइए।
पीयूष: जी, दरअसल 115 पेज वाली ‘‘सोचना तो पड़ेगा ही‘‘ पुस्तक मेरे अपने 110 विचारों का संग्रह है। मेरा मानना यह है कि यदि मेरे अच्छे विचारों से किसी की जिंदगी में थोड़ी सी भी सकारात्मकता आ जाये, तो समझूंगा कि मेरा प्रयास सफल रहा। मैं अपने प्रिय पाठकों से कहना चाहूंगा कि आप समय निकाल कर एक बार इस पुस्तक को अवश्य पढ़ें। यह पुस्तक एमाजाॅन, फ्लिपकाॅर्ट व फायरबाॅक्स साइट पर ऑनलाइन उपलब्ध है। अंत में यह अवश्य कहना चाहूंगा कि ‘‘जिंदगी को जीना है सोचना तो पड़ेगा ही और जीनें तो चढ़ने पड़ेंगे‘‘।
प्र.6. आपकी पुस्तक का नाम ‘‘सोचना तो पड़ेगा ही‘‘ वाकई बड़ा टचिंग हैं।
पीयूष: जी, दरअसल इस पुस्तक का नाम रखने में मुझे 10-15 दिन लगे थे। सबकुछ तैयार था। पुस्तक के नामकरण को लेकर मैंने अपने कई दोस्तों से बात की। उनके द्वारा सुझाए गए नामों को लिखता रहा। अपने आप भी सोचता रहा। एक दिन रात को करीब 2 बजे मेरे दिमाग में एक नाम आया और मैंने उसे नोट कर लिया। अगले दिन सुबह प्रकाशक को वही नाम दे दिया….। अब जो भी कोई मुझसे मिलता है या फोन पर बात करता है, सबसे पहले यही बोलता है – भाई! ‘‘सोचना तो पड़ेगा ही‘‘…. । पुस्तक ‘‘सोचना तो पड़ेगा ही‘‘ के कुछ विचार…. इस तरह हैं – 1. जिंदगी को अगर किसी का सहारा लेकर जिओगे तो एक दिन हारा हुआ महसूस करोगे। 2. किसी काम को करने की नियत होनी चाहिये, टालने से काम नहीं चलने वाला। आपके सपनों में बहुतों के सपने छिपे हैं, अपने सपनें पूरे करो। सोचना मेरी आदत … लगन मेरा समर्पण…. जिद्द मेरी सफलता।