वाराणसी। पद्मा (परिवर्तिनी) एकादशी व्रत स्मार्त संप्रदाय (सामान्य गृहस्थी) 25 सितम्बर सोमवार को व्रत रखें और वैष्णव संप्रदाय (सन्यासी) 26 सितंबर मंगलवार को व्रत रखें। भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का आरंभ सोमवार 25 सितंबर 2023 को सुबह 07 बजकर 56 मिनट पर होगा और भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का समाप्ति अगले दिन यानी 26 सितंबर 2023 मंगलवार को सुबह 05 बजकर 01 मिनट पर होगी। एक वर्ष में 24 एकादशी होती हैं। लेकिन जब अधिकमास (मलमास) आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है।
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को पद्मा एकादशी के नाम से जाना जाता हैं। पद्मा एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी भी कहते हैं। धर्मग्रंथों के अनुसार चातुर्मास के शयन के बाद भगवान विष्णु भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान विष्णु जी विश्राम के दौरान करवट बदलते हैं इसलिए इस एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी भी कहते हैं। शास्त्री ने बताया कि पद्मा एकादशी व्रत स्मार्त संप्रदाय (सामान्य गृहस्थी) 25 सितम्बर सोमवार को व्रत रखें और वैष्णव संप्रदाय (सन्यासी) 26 सितंबर मंगलवार को व्रत रखें।
नोट :- जिन लोगों ने स्मार्त संप्रदाय के गुरुओं से दीक्षा ली है वे लोग पद्मा एकादशी का व्रत 25 सितंबर सोमवार को रखें।
जिन लोगों ने वैष्णव संप्रदाय के गुरुओं से दीक्षा ली है वे लोग 26 सितंबर मंगलवार पद्मा एकादशी का व्रत रखें।
वैष्णव : जिन लोगों ने वैष्णव संप्रदाय के गुरुओं से दीक्षा ली हो और गुरु से कंठी या तुलसी माला गले में ग्रहण करता है या मस्तक एवं गले पर चंदन या गोपी चन्दन, श्री खण्ड, त्रिपुण्ड्र, उर्द्धपुण्ड या विष्णुचरण आदि के चिन्ह् धारण किए हो ऐसे भक्तजन ही वैष्णव कहे जाते हैं।
पद्मा एकादशी व्रत के करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति, दीर्घायु, कई गायों के दान के बराबर फल की प्राप्ति होती है। यह अश्वमेघ यज्ञ से मिलने वाले फल से भी अधिक माना गया है और समस्त पापों से मुक्ति मिलती है। यह व्रत पुरुष और महिलाओं दोनों द्वारा किया जा सकता है। एकादशी व्रत पारण के बाद किसी जरुरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन कराकर कुछ दान-दक्षिणा जरूर दें। इस दिन जो व्यक्ति दान करता है वह सभी पापों का नाश करते हुए परमपद प्राप्त करता है। इस दिन ब्राह्माणों एवं जरूरतमंद को मिष्ठानादि, दक्षिणा सहित यथाशक्ति दान करें। घर में भी स्नान एवं घर के आस पास जरूरतमंद को दान कर सकते हैं।
एकादशी के दिन “ॐ नमो वासुदेवाय” मंत्र का जाप करना चाहिए। हिन्दू धर्म में एकादशी व्रत का मात्र धार्मिक महत्त्व ही नहीं है, इसका मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य के नजरिए से भी बहुत महत्त्व है। एकादशी का व्रत भगवान विष्णु की आराधना को समर्पित होता है। यह व्रत मन को संयम सिखाता है और शरीर को नई ऊर्जा देता है।
एकादशी व्रत पूजन विधि : शारीरिक शुद्धता के साथ ही मन की पवित्रता का भी ध्यान रखना चाहिए। एकादशी के व्रत को विवाहित अथवा अविवाहित दोनों कर सकते हैं। एकादशी व्रत के नियमों का पालन दशमी तिथि से ही शुरु हो जाता है। दशमी तिथि को सात्विक भोजन ग्रहण कर अगले दिन एकादशी पर सुबह जल्दी उठें और शुद्ध जल से स्नान के बाद सूर्यदेव को जल का अर्घ्य देकर व्रत का संकल्प लें पति पत्नी संयुक्त रूप से लक्ष्मीनारायण जी की उपासना करें। पूजा के कमरे या घर में किसी शुद्ध स्थान पर एक साफ चौकी पर श्रीगणेश, भगवान लक्ष्मीनारायण की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद पूरे कमरे में एवं चौकी पर गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें। चौकी पर चांदी, तांबे या मिट्टी के कलश (घड़े) में जल भरकर उस पर नारियल रखकर कलश स्थापना करें।
उसमें उपस्थित देवी-देवता, नवग्रहों, तीर्थों, योगिनियों और नगर देवता की पूजा आराधना करनी चाहिए। इसके बाद पूजन का संकल्प लें और वैदिक मंत्रो एवं विष्णुसहस्रनाम के मंत्रों द्वारा भगवान लक्ष्मीनारायण सहित समस्त स्थापित देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें। इसमें आवाह्न, आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधितद्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, तिल, दक्षिणा, आरती, प्रदक्षिणा, मंत्र, पुष्पांजलि आदि करें। व्रत की कथा करें अथवा सुने तत्पश्चात प्रसाद वितरण कर पूजन संपन्न करें।
एकादशी के दिनों में किन बातों का खास ख्याल रखें : एकादशी के दिन किसी भी प्रकार की तामसिक वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए। ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। इन दिनों में शराब आदि नशे से भी दूर रहना चाहिए। व्रत रखने वालों को इस व्रत के दौरान दाढ़ी-मूंछ और बाल नाखून नहीं काटने चाहिए। व्रत करने वालों को पूजा के दौरान बेल्ट, चप्पल-जूते या फिर चमड़े की बनी चीजें नहीं पहननी चाहिए। काले रंग के कपड़े पहनने से बचना चाहिए। किसी का दिल दुखाना सबसे बड़ी हिंसा मानी जाती है। गलत काम करने से आपके शरीर पर ही नहीं, आपके भविष्य पर भी दुष्परिणाम होते है।
ज्योर्तिविद वास्तु दैवज्ञ
पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री
मो. 9993874848