सिलीगुड़ी। बिरसा मुंडा जयंती के शुभ अवसर पर 15 और 16 नवंबर को बिरसा मुंडा कॉलेज प्रांगण में दो दिवसीय बहु – भाषिक अंतरराष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया। इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि के रूप में सिलीगुड़ी नगर निगम के चेयर पर्सन श्री गौतम देब एवं श्री विश्वनाथ प्रसाद ने कॉलेज प्रांगण में बिरसा मुंडा की मूर्ति का अनावरण किया। सेमिनार का विषय था “वॉइसेस फ्रॉम द मार्जिन: रीविजिटिंग बिरसा मुंडा एंड अदर सिग्निफिकेंट ट्राइबल”। सेमिनार के प्रथम दिन उदघाट्न समारोह में महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ वीरेंद्र मृधा ने स्वागत वक्तव्य देते हुए इस संगोष्ठी की आवश्यकता और प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला।
बर्दवान विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ निमाईचंद साहा ने बीज वक्तव्य देते हुए कहा कि आदिवासी समाज की लड़ाई हाशिए के सभी समूहों की लड़ाई है । उत्तर बंग विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ सुबिरेस भट्टाचार्य एवं जॉइन्ट डीपीआई डॉ प्रवीर घोष राय ने अपनी तमाम व्यस्तताओं के बावजूद इस संगोष्ठी से ऑनलाइन जुड़कर इसे समृद्ध किया। गवर्निंग बॉडी के अध्यक्ष श्री सुजीत दास, उत्तर बंग विश्वविद्यालय के परीक्षा नियंत्रक डॉ देवासीस दत्ता , उत्तर बंग विश्वविद्यालय के भूतपूर्व रजिस्ट्रार डॉ दिलीप सरकार एवं रविन्द्र भारती विश्वविद्यालय के डॉ सुबोध हांसदा ने भी अपने विचारों से इसे समृद्ध किया ।
प्रथम तकनीकी सत्र की अध्यक्षता बर्दवान विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ निमाई चंद्र साहा ने की। इस सत्र में अपनी बात रखते हुए डॉ दिलीप सरकार ने कहा कि आदिवासियों की समस्याओं पर बात करने के लिए यह जरूरी है कि आदिवासियों के जीवन को करीब से अनुभव किया जाय। नेपाल से पधारीं सुप्रसिद्ध श्रीमती कवयित्री सुभद्रा भट्टराई ने बिरसा मुंडा के जीवन से जुड़े विभिन्न पहलुओं को रेखांकित किया। सुंदरवन से आए सुप्रसिद्ध शिक्षाविद सुनील सरकार ने आदिवासियों के जीवन से जुड़े अपने अनुभवों को साझा करते हुए आज के संदर्भो में उसे रेखांकित किया।
द्वितीय तकनीकी सत्र की अध्यक्षता करते हुए डॉ दिलीप सरकार ने बिरसा मुंडा के आंदोलन के महत्व को रेखांकित किया। डॉ सत्य प्रकाश तिवारी ने बिरसा मुंडा को भारतीय अस्मिता के प्रतीक के रूप में रेखांकित करते हुए कहा कि बिरसा मुंडा के आंदोलन को केवल आदिवासी समाज की लड़ाई नहीं बल्कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन से जोड़कर देखना चाहिए । सिलिगुड़ी स्कूल शिक्षा विभाग के ए .आई जोनस केरकेट्टा ने आदिवासी समाज की समस्याओं पर प्रकाश डाला।
संगोष्ठी के दूसरे दिन के तकनीकी सत्र की अध्यक्षता करते हुए डॉ सत्य प्रकाश तिवारी ने कहा कि यह अत्यंत गर्व की बात है कि बिरसा मुंडा जयंती के अवसर पर इस प्रकार का दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया है। यह सेमिनार शिक्षा जगत के लिए एक उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया जाएगा । बर्दवान विश्वविद्यालय की शोध छात्रा पौलमि सेन ने बिरसा मुंडा के जीवन के कई पहलुओं को रेखांकित करते हुए उसे आज के संदर्भो से जोड़ा।
डॉ सुबोध हांसदा ने आदिवासियों से जुड़े विभिन्न संवैधानिक प्रावधानों की चर्चा की। डॉ हिमांशु कुमार ने बिरसा मुंडा के आंदोलन का जिक्र करते हुए कहा कि आज सरकारों को चाहिए कि आदिवासियों से बातचीत कर उनकी समस्याओं का समाधान करें। श्री विमल चंद्र साहा ने इस तथ्य को रेखांकित किया कि अपनी संस्कृति को बचाए रखते हुए ही विश्व आंगन में हमें अपनी पहचान बनानी चाहिए।
कॉलेज के प्राचार्य डॉ बिरेन्द्र मृधा ने कहा कि हमें यह सोचना होगा कि आखिर क्या बात है कि बिरसा मुंडा को इतिहास में वह स्थान नहीं मिला जिसके वे हकदार थे। कार्यक्रम के अंत में विद्यार्थियों द्वारा आदिवासी लोक संस्कृति से जुड़े विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम भी प्रस्तुत किए गए । कार्यक्रम का संचालन डॉ अरुणिमा चंद ने एवं धन्यवाद ज्ञापन सेमिनार की संयोजक डॉ रत्ना पाल ने किया ।