“ओ सुकोमल कविमन”
तुमने बहुत से गीत रचे हैं मेरे लिए
आज फिर से रचो, कोई गीत नया
मेरे लिए, ओ सुकोमल कविमन!
रच डालो फिर से गीत नया
मेरी कोमल पंखुड़ियों पर
रंग डालो फिर से रंग नया
खिली-अधखिली कलियों पर
तुमने बहुत से चित्त रंगे हैं मेरे लिए
आज फिर से रंगों कोई चित्त नया
मेरे लिए, ओ सुकोमल कविमन।
प्रकृति की रचनाओं में फिर से
नवसंचार भरो जीवन से
नवरस की कल्पना का करो
नवसिंगार मेरे चितवन से
तुमने बहुत से रीत सधे हैं मेरे लिए
आज फिर से सधो कोई रीत नया
मेरे लिए, ओ सुकोमल कविमन।