पारो शैवलिनी, चित्तरंजन । केन्द्रीय चुनाव आयोग ने उपचुनाव की डुगडुगी बजा दी है। चुनावी डुगडुगी बजते ही आसनसोल की राजनीतिक सरगर्मियों में एकबार फिर से उबाल देखने को मिल रहा है। चुनाव आयोग के अनुसार आगामी 12 अप्रैल को आसनसोल लोकसभा सीट पर भी चुनाव होगा। जबकि 16 अप्रैल को मतगणना होगी। अभी हाल में हुए आसनसोल नगर निगम चुनाव में प्रचंड जीत हासिल कर चुकी तृणमूल कांग्रेस का हौसला पूरी तरह से बुलंदी पर है। हालांकि आसनसोल लोकसभा सीट पर अबतक हुए 17 बार के चुनाव में एकबार भी टीएमसी की तरफ से कोई सांसद नहीं बन पाया है।
ऐसे में इसबार होने वाले उपचुनाव में टीएमसी की तरफ से पुरी तरह से यह जोर रहेगा कि आसनसोल से एक और टीएमसी नेता सांसद बनकर दिल्ली पहुंचे। देखने वाली बात यह होगी कि तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी सांसद के रूप में किस टीएमसी नेता पर अपना भरोसा जताती है। जबकि आसनसोल के पूर्व सांसद बाबुल सुप्रियो अभी टीएमसी में ही हैं। उल्लेखनीय है कि ये वही बाबुल सुप्रियो हैं जो 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की तरफ से आसनसोल के सांसद बने थे। जो बाद में ना सिर्फ भाजपा से बल्कि सांसद पद से भी इस्तीफा दे दिया था। इनके इस्तीफे की वजह से ही आसनसोल लोकसभा सीट पर चुनाव होने जा रहा है।
ऐसे में एक सवाल दिल में आना लाजिमी है कि ममता बनर्जी को बाबुल पर भरोसा करना चाहिए या नहीं। जहां तक भरोसे वाली बात है इसपर वो सहज ही भरोसा नहीं कर सकती। क्योंकि, आसनसोल नगर निगम चुनाव में 106 सीटों में से 91 सीटों पर जीत हासिल करने वाले टीएमसी पार्षदों में एक भी पार्षद उन्हें मेयर के लिए सटीक नहीं लगा और वो बाराबनी के विधायक को मेयर पद पर बिठा दिया। ऐसे में सहज ही यह कहा जा सकता है कि टीएमसी का दामन थामने के बावजूद बाबुल सुप्रियो पर वो विश्वास नहीं करेगी। ऐसे में टीएमसी की तरफ से आसनसोल के सांसद का ऐसा ठोस चेहरा कौन होगा जो पिछले 17 बार के लोकसभा चुनाव में से पहली बार टीएमसी के सिर पर जीत का सेहरा बांध सके?
यह आने वाला समय ही बता सकता है कि वो ठोस चेहरा कोई स्थानीय नेता होगा या फिर बाहरी, यह आगामी 24 मार्च तक तय हो जायेगा। याद रहे 24 मार्च इसके लिए नामांकन भरने की अंतिम तारीख है। यह भी ध्यान देने वाली बात है कि आसनसोल लोकसभा सीट पर अबतक दस बार बामफ्रंट, 4 बार कांग्रेस, 2 बार भाजपा और एक बार एसएसपी (संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी)के नेता सांसद रह चुके हैं।
भाजपा की तरफ से फिलहाल एक नाम जितेन्द्र तिवारी का ही सामने आ रहा है। चर्चा यह भी है कि इस शख्स का कद टीएमसी नेतृत्व ने उस समय काफी बढ़ा दिया था जब वो टीएमसी में थे और आसनसोल के मेयर थे। जितेन्द्र ने टीएमसी छोड़ कर भाजपा से क्यों नाता जोड़ा यह तो वही जाने। लेकिन, यह भी तय है कि अगर जितेन्द्र तिवारी को भाजपा टिकट देती है तो तीसरी बार सांसद का सीट भाजपा नहीं जीत पायेगी। दस बार आसनसोल से सांसद देने वाली वामफ्रंट और दो बार इस सीट पर काबिज होने वाली कांग्रेस निश्चय ही चुनावी मैदान में अलग-अलग नहीं उतर कर एक-दूसरे का सारथी बनकर उतरे तो किसी चमत्कार की उम्मीद की जा सकती है। वैसे कांटे की टक्कर टीएमसी-भाजपा के बीच ही होगी।