अब बच के रहियो रे बाबा, अब लद गए जेल में भी सुखनंदन के दिन!

आदर्श कारागार अधिनियम 2023 को अंतिम रूप दिया गया
कैदियों को, कानून का पालन करने वाले नागरिकों में बदलना, समाज में उनका पुनर्वास सुनिश्चित करना और जेलों में ऐशो आराम, दबंगई रोकने में नया अधिनियम मील का पत्थर साबित होगा – एडवोकेट किशन भावनानी

किशन सनमुख़दास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। भारत में कई वर्षों से प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में जेल में दबंगई, हत्या, ऐशो आराम, माफियाराज गुटबाजी, झगड़े इत्यादि अनेकों वारदातों के बारे में सुनते पढ़ते रहते हैं। याने अपराधी यहां पर तो कर्मकांड करते ही रहते हैं परंतु जेल में भी कुछ कम दबंगई नहीं करते वहां जेलरों, कर्मचारियों, पुलिस पर भी हमले, हत्याएं होती रहती है। वही मेरा मानना है कि जेल प्रशासन की लिप्तता से भी इनकार नहीं किया जा सकता क्योंकि यह बात हम सभी जानते हैं कि मिलीभगत का मामला हर जगह हर क्षेत्र में चल रहा है, क्योंकि हम जानते हैं कि जेल में अपनी पसंद का स्विमिंगपूल बनाना, खास स्त्री दोस्तों से घंटों मुलाकात करना, मोबाइल हरदम अपने पास रखना, जेल में रहकर भी रंगदारी वसूलना, चुनाव लड़ना, जेल से फोन कर हत्याओं की साजिश में शामिल होने सहित अनेक बातें अभी हमें दोनों मृतक माफियाओं और एक अन्य सजा पाए गए माफिया के बारे में कई बातें सुनी परंतु अब समय आ गया है।

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी : संकलनकर्ता, लेखक, कवि, स्तंभकार, चिंतक, कानून लेखक, कर विशेषज्ञ

क्योंकि बड़े बुजुर्ग कहते हैं अति का अंत होता है, पाप का घड़ा फूटता है, जुल्मों को रोकने बड़े कदम उठाते हैं। इसलिए इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए अब नया आदर्श कारागार अधिनियम 2023 को अंतिम रूप दिया गया है। 12 मई 2023 को पीआईबी द्वारा जानकारी जारी किया गया है। इसलिए आज हम पीआईबी में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल माध्यम से चर्चा करेंगे, आदर्श कारागार अधिनियम 2023 को अंतिम रूप दिया गया है। अब बच के रहियो रे बाबा, अब लद गए जेल में भी सुखनंदन के दिन!

साथियों बात अगर हम जेल की करें तो पिछले कुछ दशकों में, विश्वस्तर पर जेलों और जेल के कैदियों के बारे में एक बिल्कुल नया दृष्टिकोण विकसित हुआ है। जेलों को आज प्रतिशोधात्मक निवारक के स्थान के रूप में नहीं देखा जाता है, बल्कि उन्हें सुधारात्मक और सुधारक संस्थानों के रूप में देखा जाता है जहां कैदियों को कानून का पालन करने वाले नागरिकों के रूप में समाज में परिवर्तित और पुनर्वासित किया जाता है। भारत के संविधान के प्रावधानों के अनुसार, जेल/उसमें निरुद्ध व्यक्ति एक राज्य विषय है। जेल प्रबंधन और कैदियों के प्रशासन की जिम्मेदारी पूरी तरह से राज्य सरकारों की है जो अकेले इस संबंध में उपयुक्त विधायी प्रावधान बनाने के लिए सक्षम हैं।

हालांकि, आपराधिक न्याय प्रणाली में कुशल जेल प्रबंधन द्वारा निभाई जाने वाली महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए, भारत सरकार इस संबंध में राज्यों/संघ शासित प्रदेशों की सहायता करने को अत्यधिक महत्व देती है। वर्तमान ‘जेल अधिनियम, 1894’ स्वतंत्रता-पूर्व युग का अधिनियम है और लगभग 130 वर्ष पुराना है। अधिनियम मुख्य रूप से अपराधियों को हिरासत में रखने और जेलों में अनुशासन और व्यवस्था को लागू करने पर केंद्रित है। मौजूदा अधिनियम में कैदियों के सुधार और पुनर्वास का कोई प्रावधान नहीं है।

साथियों, पिछले कुछ वर्षों में, गृह मंत्रालय (एमएचए) ने पाया कि मौजूदा कारागार अधिनियम में कई खामियां हैं, जो कुछ राज्यों को छोड़कर सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में जेल प्रशासन को नियंत्रित करता है, जिन्होंने नए कारागार अधिनियमित किए हैं। कार्यवाही करना। मौजूदा अधिनियम में सुधारात्मक फोकस के विशिष्ट चूक के अलावा, आधुनिक समय की जरूरतों और जेल प्रबंधन की आवश्यकताओं के अनुरूप अधिनियम को संशोधित और उन्नत करने की आवश्यकता महसूस की गई। हमारे माननीय पीएम के दूरदर्शी नेतृत्व और केंद्रीय गृह मंत्री के निर्णायक मार्गदर्शन में, समकालीन आधुनिक समय की जरूरतों और सुधारात्मक विचारधारा के अनुरूप, औपनिवेशिक युग के कारागार अधिनियम की समीक्षा और संशोधन करने का निर्णय लिया गया।

गृह मंत्रालय ने जेल अधिनियम, 1894 के संशोधन का कार्य पुलिस अनुसंधान और विकास ब्यूरो को सौंपा। ब्यूरो ने राज्य कारागार प्राधिकारियों, सुधारक विशेषज्ञों आदि से विस्तृत चर्चा करने के बाद एक प्रारूप तैयार किया। जेल अधिनियम,1894 के साथ-साथ कैदी अधिनियम, 1900 और ‘कैदियों का स्थानांतरण अधिनियम, 1950 की भी गृह मंत्रालय द्वारा समीक्षा की गई है और इन अधिनियमों के प्रासंगिक प्रावधानों को मॉडल में शामिल किया गया है। जेल अधिनियम, 2023। राज्य सरकारें और केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन आदर्श कारागार अधिनियम, 2023 को अपने अधिकार क्षेत्र में अपनाकर ऐसे संशोधनों के साथ जिन्हें वे आवश्यक समझें, लाभ उठा सकते हैं और अपने अधिकार क्षेत्र में मौजूदा तीन अधिनियमों को निरस्त कर सकते हैं।

समग्र रूप से मार्गदर्शन प्रदान करने और जेल प्रबंधन में प्रौद्योगिकी के उपयोग सहित मौजूदा जेल अधिनियम में अंतर को दूर करने के उद्देश्य से, अच्छे आचरण को प्रोत्साहित करने के लिए पैरोल, फरलो, कैदियों को छूट, महिलाओं/ट्रांसजेंडर कैदियों के लिए विशेष प्रावधान गृह मंत्री अमित शाह के कुशल मार्गदर्शन में गृह मंत्रालय ने कैदियों के शारीरिक और मानसिक कल्याण और कैदियों के सुधार और पुनर्वास आदि पर ध्यान केंद्रित करते हुए एक व्यापक आदर्श कारागार अधिनियम, 2023 को अंतिम रूप दिया है। जो राज्यों के लिए और उनके अधिकार क्षेत्र में गोद लेने के लिए एक मार्गदर्शक दस्तावेज के रूप में काम कर सकता है।

साथियों बात अगर हम, नए मॉडल कारागार अधिनियम की कुछ मुख्य विशेषताओंं की करें तो इस प्रकार हैं :-
(1) सुरक्षा मूल्यांकन और कैदियों के अलगाव, व्यक्तिगत वाक्य योजना के लिए प्रावधान।
(2) शिकायत निवारण, कारागार विकास बोर्ड, बंदियों के प्रति व्यवहार में परिवर्तन।
(3) महिला कैदियों, ट्रांसजेंडर आदि के लिए अलग आवास का प्रावधान।
(4) कारागार प्रशासन में पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से कारागार प्रशासन में प्रौद्योगिकी के उपयोग का प्रावधान।
(5) अदालतों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, जेलों में वैज्ञानिक और तकनीकी हस्तक्षेप आदि का प्रावधान।
(6) जेलों में प्रतिबंधित वस्तुओं जैसे मोबाइल फोन आदि का प्रयोग करने वाले बंदियों एवं जेल कर्मचारियों के लिए दण्ड का प्रावधान।
(7) उच्च सुरक्षा जेल, ओपन जेल (ओपन और सेमी ओपन), आदि की स्थापना एवं प्रबंधन के संबंध में प्रावधान।
(8) खूंखार अपराधियों और आदतन अपराधियों आदि की आपराधिक गतिविधियों से समाज को बचाने का प्रावधान।
(9) अच्छे आचरण को प्रोत्साहित करने के लिए कैदियों को कानूनी सहायता, पैरोल, फर्लो और समय से पहले रिहाई आदि का प्रावधान।
(10) कैदियों के व्यावसायिक प्रशिक्षण और कौशल विकास और समाज में उनके पुनर्स्थापन पर ध्यान देना।

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि अब बच के रहियो रे बाबा, अब लद गए जेल में भी सुखनंदन के दिन! आदर्श कारागार अधिनियम 2023 को अंतिम रूप दिया गया। कैदियों को, कानून का पालन करने वाले नागरिकों में बदलना, समाज में उनका पुनर्वास सुनिश्चित करना और जेलों में ऐशो आराम, दबंगई रोकने में नया अधिनियम मील का पत्थर साबित होगा।

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