कोलकाता। कलकत्ता उच्च न्यायालय ने कहा कि वह राज्य में 40,000 से अधिक दुर्गा पूजा समितियों को 60,000 रुपये का अनुदान देने के पश्चिम बंगाल सरकार के फैसले में हस्तक्षेप करने का इच्छुक नहीं है। अनुदान को चुनौती देने वाली जनहित याचिकाओं में याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि राशि के वितरण का लोक कल्याण से कोई लेना-देना नहीं है और दुर्गा पूजा एक निजी मामला है। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव और न्यायमूर्ति आर. भारद्वाज की एक खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा, ‘‘हम पूजा समितियों को अनुदान देने के राज्य के फैसले में हस्तक्षेप करने के इच्छुक नहीं हैं।’’ पीठ ने कहा कि हालांकि, उसकी राय है कि अनुदान का उपयोग पश्चिम बंगाल सरकार के 6 सितंबर के आदेश में उल्लिखित उद्देश्य के लिए सख्ती से किया जाना चाहिए।
अदालत ने कहा कि 6 सितंबर के आदेश में 2022 के लिए 40,028 क्लब या पूजा समितियों या इसी तरह के अन्य संगठनों को 60,000 रुपये का अनुदान दिया जा रहा है। राज्य ने दावा किया है कि पूजा आयोजकों को अनुदान पर्यटन के विकास और राज्य की सांस्कृतिक विरासत को प्रदर्शित करने के अलावा अन्य उद्देश्यों के लिए दिया जा रहा है। पीठ ने निर्देश दिया कि इस अदालत के पिछले आदेशों में जारी दिशा-निर्देशों का पालन किया जाए।
इसमें कहा गया है कि अनुदान केवल उन्हीं पूजा समितियों को जारी किया जाएगा। जिन्होंने पिछले वर्ष, इसका उपयोग बताए गए उद्देश्य के लिए किया था और समय के भीतर एक प्रमाणपत्र जमा किया था। पीठ ने निर्देश दिया कि पश्चिम बंगाल पुलिस और कोलकाता पुलिस, जिसके माध्यम से अनुदान का वितरण किया जाना है, को यह सुनिश्चित करना होगा कि धन का सही उपयोग किया जाए। पीठ ने यह भी कहा कि पूजा समितियों को 15 नवंबर तक उपयोगिता प्रमाणपत्र जमा करना होगा।
जिसके बाद सरकार एक रिपोर्ट संकलित करेगी और 15 दिसंबर तक अदालत के समक्ष पेश करेगी। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि अम्फान चक्रवात के पीड़ितों को भुगतान करने या स्वास्थ्य साथी योजना को लागू करने की प्राथमिकता देने के बदले धार्मिक उद्देश्यों के लिए धन को गलत तरीके से वितरित किया जा रहा है। अर्जी का विरोध करते हुए, महाधिवक्ता एस. एन. मुखर्जी ने कहा कि अदालत ने पहले भी पूजा समितियों को अनुदान प्रदान करने के राज्य सरकार के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था।