विक्रम विश्वविद्यालय में हुआ दलित साहित्य और पत्रकारिता स्थिति और संभावनाएं पर केंद्रित राष्ट्रीय परिसंवाद

वरिष्ठ लेखिका डॉ. सुशीला टाकभौरे का सारस्वत सम्मान

उज्जैन। विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन की हिंदी अध्ययनशाला, पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला एवं डॉ. आंबेडकर चेयर के संयुक्त तत्वावधान में दलित साहित्य और पत्रकारिता : स्थिति और संभावनाएं विषय पर केंद्रित राष्ट्रीय परिसंवाद एवं परिचर्चा का आयोजन किया गया। मुख्य अतिथि के रूप में वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सुशीला टाकभौरे, नागपुर ने व्याख्यान दिया। संगोष्ठी की अध्यक्षता विक्रम विश्वविद्यालय के प्रभारी कुलपति प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने की। आयोजन में विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. शिव चौरसिया, डॉ. तारा परमार, प्रोफ़ेसर गीता नायक, प्रोफेसर जगदीश चंद्र शर्मा आदि ने विचार व्यक्त किए।

मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सुशीला टाकभौरे, नागपुर ने अपने उद्बोधन में कहा कि दलित पत्रकारिता का उद्भव 1898 ईस्वी में दीनबंधु पत्रिका से हुआ। सबसे पहले इसका कार्य मराठी में शुरू हुआ और हिंदी में बाद के दौर में यह कार्य शुरू हुआ। इंसान की योग्यता काम से, व्यवहार से होती है, जाति या वर्ण से नहीं। दलित साहित्य का सन्देश है सब ओर सामाजिक समता, भाईचारा हो, किंतु ऐसा नहीं होने के कारण सामाजिक चेतना को जगाने का कार्य दलित पत्रिकाएँ कर रही हैं। इसलिए पत्रकारिता का आज बहुत महत्व है। दलित साहित्य को लोगों तक पहुंचाना मानवतावाद को स्थापित करना है।

दलित साहित्य की विचारधारा जियो और जीने दो की है। समाज के सभी लोगों को एक स्तर पर लाया जाए, विकृत विचारधारा में परिवर्तन हो, सबकी भलाई हो यही उसका मुख्य उद्देश्य है। आज के विद्यार्थी पर यह निर्भर करता है कि वे कैसा भविष्य बनाना चाहते हैं। इसके लिए जरूरी है कि युवा जागृत हों जिससे एक ऐसे समाज की स्थापना हो जिसमें सब समान हो और तब ऐसे साहित्य को लिखने की जरूरत ही न पड़े। डॉ. अंबेडकर का भी यही कहना था कि हमें ऐसा समाज चाहिए जहां व्यक्ति की पूजा नहीं, बल्कि विचारों का सम्मान होना चाहिए।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रभारी कुलपति प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने अपने उद्बोधन में कहा कि दलित पत्र – पत्रिकाओं से जुड़ना एक प्रकार से यह संदेश देना है कि जो शोषित, पीड़ित हैं उनके लिए समुदाय आगे आए। अलग-अलग नजरिए से हाशिए से जुड़े समुदायों के लिए विमर्श विकसित हुए हैं, युवा उनसे जुड़ें और व्यापक परिवर्तन लाएं। इस कार्य की पहल डॉ. अंबेडकर ने की। सदियों पहले संत रविदास, कबीर आदि ने लोगों को जगाया था। आज दलित साहित्य से जुड़ना मतलब महात्मा बुद्ध, वेदव्यास आदि की वाणी से जुड़ना है। यही सामाजिक परिवर्तन का आधार है।

1899 से दलित पत्रकारिता का उद्भव माना जाता है, दीनबंधु पत्रिका से यह कार्य शुरू हुआ था। उसके बाद डॉ. आंबेडकर जी ने मूकनायक, जनता, बहिष्कृत भारत, प्रबुद्ध भारत आदि पत्रिकाओं ने यह कार्य किया। दलित साहित्य के प्रति रोपित किए गए बीजों को अधिक लोगों तक पहुंचाना इस प्रकार की पत्रकारिता का उद्देश्य रहा है। सुशीला टाकभौरे की आत्मकथा शिकंजे का दर्द दलित साहित्य का बहुत अच्छा उदाहरण है। प्राचीन काल से लेकर अब तक सब कुछ बदल गया है लेकिन क्या दलितों के प्रति जो व्यवहार है, उसमें परिवर्तन आया है। दलित साहित्य का उद्देश्य तब सार्थक होगा जब सब साथ मिलकर समरसता के साथ समाज निर्माण का कार्य करें। विक्रम विश्वविद्यालय में दलित साहित्य पर पर्याप्त शोध कार्य हुए है।

डॉ. तारा परमार ने कहा कि दलित साहित्य और सामाजिक अभिव्यक्ति का माध्यम जनसंचार है। विभिन्न पत्र – पत्रिकाओं के माध्यम से दलित साहित्य को लोगों तक पहुंचाया गया है। इनमें मूक- नायक, जनता, अस्मितादर्श और आश्वस्त पत्रिका आदि प्रमुख हैं। आज के नवयुवकों में उस चेतना जाग्रत करने की जरूरत है जो साहित्य को पढ़े, उसे समझे और बदलाव करें। समाज में चेतना जगाने का यह कार्य ये पत्रिकाएं करती हैं।

डॉ. शिव चौरसिया ने कहा कि आज दलित साहित्य पर बहुत काम हो रहा है और लोगों में चेतना भी जागृत हो रही है। इस चेतना को जगाने वाले डॉ. अंबेडकर थे। पहले यह कार्य रैदास, वाल्मीकि आदि ने किया और लोगों तक अपनी बात पहुंचाई। आज यह कार्य ओमप्रकाश वाल्मीकि और सुशीला टाकभौरे जैसे लेखक कर रहे हैं। उन्होंने डॉ. सुशीला टाकभौरे को दलित साहित्य का एक महत्वपूर्ण हस्ताक्षर बताया।

प्रो. गीता नायक ने कहा कि पुराने समय में जहां दलितों के साथ जिस तरह का व्यवहार किया जाता था, इतिहास के उस काले पन्ने को हटा कर, नए पन्ने पर नई इबारत लिखें। दलित वह है जिसका शोषण हुआ है, जिसके अधिकारों का हनन हुआ है फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष। आज सभी स्तर पर समतामूलक समाज बनाने का प्रयास किया जा रहा है। कार्यक्रम में उपस्थित अतिथियों ने डॉ. सुशीला टाकभौरे को पुष्पमाल, शॉल, श्रीफल और साहित्य अर्पित कर उनका सारस्वत सम्मान किया।

प्रारम्भ में डॉ. अंबेडकर पीठ की ओर से डॉ. निवेदिता वर्मा ने अतिथियों का स्वागत और अभिनंदन किया। उन्होंने अंबेडकर पीठ की गतिविधियों का परिचय कराते हुए उसके उद्देश्यों के बारे में बताया। इस अवसर पर डॉ. प्रतिष्ठा शर्मा, डॉ. सुशील शर्मा, डॉ. अजय शर्मा, हीना तिवारी आदि सहित बड़ी संख्या में शोधार्थी और विद्यार्थी उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन प्रोफेसर जगदीशचंद्र शर्मा ने किया। आभार प्रदर्शन प्रो. गीता नायक ने किया।

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