विक्रम विश्वविद्यालय में हुआ वीर बाल दिवस पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन

विश्वविद्यालय में स्मरण किया गया गुरु गोविंद सिंह के अमर बलिदानी वीर बालकों का
ब्रिगेडियर सौरभ जैन विशिष्ट सेवा सारस्वत सम्मान से अलंकृत

उज्जैन। विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन की हिंदी अध्ययनशाला, गुरु नानक अध्ययन केंद्र एवं ललित कला अध्ययनशाला के संयुक्त तत्वावधान में सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी के बलिदानी बालकों की पावन स्मृति में 26 दिसंबर, मंगलवार को मध्याह्न में राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। विक्रम विश्वविद्यालय के वाग्देवी भवन में वीर बाल दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम के प्रमुख अतिथि ग्रुप कमांडर ब्रिगेडियर सौरभ जैन थे। कुलपति प्रो. अखिलेश कुमार पांडेय की अध्यक्षता में इस विचार संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि कर्नल जी.पी. चौधरी, सरदार सुरेंद्र सिंह नारंग, कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा, ललित कला विभागाध्यक्ष प्रो. जगदीश चंद्र शर्मा, सूबेदार मेजर नेतर सिंह ने विचार व्यक्त किए।

मुख्य अतिथि ब्रिगेडियर सौरभ जैन ने अपने उद्बोधन में कहा कि गुरु गोविंद सिंह जी और उनके बलिदानी वीर पुत्रों का स्मरण हम सबके लिए नव प्रेरणा का संचार करता है। शिक्षा केंद्रों में देश के इतिहास के गौरवशाली पृष्ठों को सामने लाने के प्रयास निरन्तर होने चाहिए। आज सम्पूर्ण विश्व में शक्तिशाली राष्ट्र भारत की विशेषताओं को सामने लाने की जरूरत है। देश के युवा इस दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।

कुलपति प्रो. अखिलेश कुमार पांडेय ने कहा कि भारत का गौरवशाली इतिहास अनेक अमर शहीदों के योगदान से भरा हुआ है। गुरु गोविंद सिंह जी के अमर बलिदानी पुत्रों से आज प्रेरणा लेने की आवश्यकता है। उनका स्मरण राष्ट्र के निर्माण में युवाओं की भूमिका को मजबूती देता है। कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि भारतीय इतिहास और संस्कृति में गुरु गोविंद सिंह जी का योगदान अद्वितीय है। उन्होंने अद्वैतवाद को सामाजिक यथार्थ और समरसता के साथ जोड़कर नया रूप दिया।

उन्होंने जाति, रंग, पूजा पद्धति आदि के आधार पर मनुष्य मनुष्य के बीच की खाई को समाप्त करने का अविस्मरणीय प्रयास किया। उनके अमर वीर पुत्रों ने अपने प्राणों की आहुति देकर इस देश और जाति के सोए हुए स्वाभिमान को जगाया। गुरु गोविंदसिंह जी और उनके वीर पुत्रों का सन्देश है कि सत्य और न्याय के लिए, ज़ुल्म के प्रतिकार और धर्म की रक्षा के लिए शस्त्र और शास्त्र दोनों को महत्व देना जरूरी है। गुरु गोविंद सिंह जी की कुर्बानियों को सदैव याद रखने की जरूरत है।

सरदार सुरेंद्र सिंह नारंग ने अपने व्याख्यान में कहा सिखों के गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह जी के साहिबजादों ने यह साबित कर दिखाया कि जिंदगी में बड़े कीर्तिमान स्थापित करने के लिए लंबी आयु की नहीं, बल्कि जज्बे एवं दृढ़ इरादे की आवश्यकता होती है। गुरु जी के चारों साहिबजादों ने जबर, जुल्म तथा अन्याय के विरुद्ध सत्य धर्म की आवाज बुलंद करते हुए जालिमों के आगे झुकने की बजाय अपनी जान न्योछावर करने वाले मार्ग को चुना। इसीलिए आज समूचा जगत इन शहीदों को नमन करता है।

श्री गुरु गोविंद सिंह जी के प्यारे दुलारे छोटे साहिबजादों बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह जी द्वारा बाल्यावस्था में दी गई शहादत को याद कर आज भी हर हृदय दर्द से भर उठता है। हर आंख में आंसू भर आते हैं। हंसने खेलने वाली बाल्यावस्था में उन्होंने जिस महान संकल्प, अदम्य साहस, दृढ़ निश्चय और निडरता का परिचय दिया, इसका उदाहरण दुनिया के इतिहास में कहीं नहीं मिलता है।

कार्यक्रम के प्रारम्भ में उपस्थित जनों ने गुरु गोविंद सिंह और उनके अमर शहीद वीर बालकों के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की। आयोजन में ब्रिगेडियर सौरभ जैन को विक्रम विश्वविद्यालय की ओर से शॉल, मौक्तिक माल एवं साहित्य भेंट कर विशिष्ट सेवा सारस्वत सम्मान से अलंकृत किया गया। वरिष्ठ चित्रकार एल.एन. सिंह रोडिया ने ब्रिगेडियर सौरभ जैन का लाइव स्केच तैयार कर उन्हें अर्पित किया।

आयोजन में प्रोफेसर धर्मेंद्र मेहता प्रोफेसर दीनदयाल बेदिया, कैप्टन डॉक्टर कनिया मेड़ा, डॉ. राजेश्वर शास्त्री मुसलगांवकर, कैप्टन डॉ. मोहन निमोले, डॉ. सुशील शर्मा, डॉ. हीना तिवारी, एल.एन. सिंह रोडिया, डॉ. महिमा मरमट, हवलदार सतबीर सिंह आदि सहित अनेक प्रबुद्ध जन, विभागाध्यक्ष, संकाय सदस्य, शोधकर्ता और विद्यार्थी सम्मिलित हुए। संचालन ललित कला विभागाध्यक्ष प्रो. जगदीश चंद्र शर्मा ने किया। आभार प्रदर्शन कैप्टन डॉक्टर कनिया मेड़ा ने किया।

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