आदित्य-एल1, चंद्रयान-3 – हमें भारतीय होने पर गर्व है
आदित्य-एल1 से पृथ्वी के करीब अंतरिक्ष में मौसम संबंधी समस्याओं, जलवायु परिवर्तन, खगोल विज्ञान के कई रहस्य समझने में मदद मिलेगी – एडवोकेट किशन भावनानी गोंदिया
किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर भारत का आगाज़। इसरो ने ठाना है अब सूर्य को पाना है। इसरो की कमान आदित्य-एल1 की उड़ान। मिशन आदित्य-एल्1 डेस्टिनेशन सन, जैसी कई लाइन पूरी दुनिययां में गूंज उठी जब हमारी पृथ्वी से करीब 15 करोड़ किलोमीटर दूर सूर्य की ओर आदित्य-एल्1 शनिवार दिनांक 2 सितंबर 2023 को सफ़ल प्रशिक्षण हुआ जिसकी 3 सितंबर 2023 को 11:45 को पहली अर्थबाउंड फायरिंग निश्चित है। हालांकि एल्1 पृथ्वी से सूर्य की केवल एक प्रतिशत याने 15 लाख किलोमीटर ही तय कर रहा है लेकिन इसके बावजूद पृथ्वी के करीब अंतरिक्ष में मौसम संबंधी समस्याओं, जलवायु परिवर्तन खगोल विज्ञान के कई रहस्य समझने में मदद देगा, जो पृथ्वी पर रहकर नहीं मिल सकते हैं। चूंकि आदित्य-एल1 का 2 सितंबर 2023 को सुबह सफ़ल प्रक्षेपण हुआ, इसलिए आज हम पीआईबी मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, चंद्रयान-3 से चंद्रमा पर चमत्कार अब आदित्य-एल्1 से सूर्य को नमस्कार।
साथियों बात अगर हम आदित्य -एल1 मिशन के फायदों की करें तो, इसरो के मुताबिक, सूर्य हमारे सबसे करीब मौजूद तारा है। यह तारों के अध्ययन में हमारी सबसे ज्यादा मदद कर सकता है। इससे मिली जानकारियां दूसरे तारों, हमारी आकाश गंगा और खगोल विज्ञान के कई रहस्य और नियम समझने में मदद करेंगी। हमारी पृथ्वी से सूर्य करीब 15 करोड़ किमी दूर है। आदित्य-एल1 वैसे तो इस दूरी का महज एक प्रतिशत ही तय कर रहा है, लेकिन इतनी सी दूरी तय करके भी यह सूर्य के बारे में हमें ऐसी कई जानकारियां देगा, जो पृथ्वी से पता करना संभव नहीं होता।
जानकारी के अनुसार आदित्य-एल1 अंतरिक्ष यान को सौर कोरोना (सूर्य की सबसे बाहरी परतों) के दूरस्थ अवलोकन और एल-1 (सूर्य-पृथ्वी लैग्रेंजियन बिंदु) पर सौर हवा के यथास्थिति अवलोकन के लिए बनाया गया है। एल-1 पृथ्वी से करीब 15 लाख किलोमीटर दूर है। एक जानकार के अनुसार आदित्य एल-1 मिशन पर इसरो के पूर्व अध्यक्ष ने कहा कि यह मिशन बहुत महत्वपूर्ण है। आदित्य एल-1 को लैग्रेंजियन पॉइंट1 के आसपास रखा जाएगा, जहां पृथ्वी और सूर्य का गुरुत्वाकर्षण बल लगभग शून्य हो जाता है और न्यूनतम ईंधन के साथ, हम वहां अंतरिक्ष यान बनाए रख सकते हैं। इसके अलावा 24/7 अवलोकन संभव है। अंतरिक्ष यान में सात उपकरण लगाए गए हैं। इस मिशन के डेटा से वायुमंडल में होने वाली विभिन्न घटनाओं, जलवायु परिवर्तन अध्ययन आदि को समझाने में मदद मिलेगी।
साथियों बात अगर हम आदित्य एल-1 के सफ़ल प्रक्षेपण की करें तो, प्रक्षेपण सफलतापूर्वक संपन्न हुआ, पहली अर्थबाउंड फायरिंग तीन सितंबर को पीएसएलवी -सी57 द्वारा आदित्य-एल1 का प्रक्षेपण सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। यान ने उपग्रह को ठीक उसकी इच्छित कक्षा में स्थापित कर दिया है। भारत की पहली सौर वेधशाला ने सूर्य-पृथ्वी L1 बिंदु के गंतव्य के लिए अपनी यात्रा शुरू कर दी है। इसरो का कहना है कि आदित्य-एल1 ने बिजली पैदा करना शुरू कर दिया है। सौर पैनल तैनात हैं। पहली अर्थबाउंड फायरिंग तीन सितंबर को लगभग 11:45 बजे निर्धारित है। इस दौरान मिशन अगली कक्षा में प्रवेश करेगा।
इसरो के पूर्व अध्यक्ष ने शनिवार को कहा कि भारत के पहले सौर मिशन आदित्य-एल1 के सफल प्रक्षेपण के साथ, देश कुछ पूर्वानुमान मॉडल विकसित कर सकता है और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए एक लचीलापन योजना तैयार कर सकता है। उन्होंने कहा कि विभिन्न घटनाओं को समझने के लिए सौर सतह का अध्ययन करना बहुत महत्वपूर्ण है जो हमारी स्थानीय मौसम स्थितियों को तुरंत प्रभावित करते हैं। जलवायु परिवर्तन के अध्ययन में सौर विकिरण की दीर्घकालिक परिवर्तनशीलता भी एक बहुत महत्वपूर्ण कारक है। इसलिए, इन सभी क्षेत्रों में, इस अद्वितीय मिशन के माध्यम से मौलिक ज्ञान प्राप्त किया जाएगा।
साथियों बात अगर हम माननीय राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति और पीएम द्वारा सफ़ल प्रक्षेपण के लिए बधाई देने की करें तो भारत के प्रथम सौर मिशन, आदित्य-एल1 के सफल प्रक्षेपण के लिए इसरो के वैज्ञानिकों और इंजीनियरों को बधाई दी है। पीएम ने एक ट्वीट में कहा; चंद्रयान-3 की सफलता के बाद भारत ने अपनी अंतरिक्ष यात्रा जारी रखी है। भारत के प्रथम सौर मिशन, आदित्य-एल1 के सफल प्रक्षेपण के लिए इसरो के हमारे वैज्ञानिकों और इंजीनियरों को बधाई। संपूर्ण मानवता के कल्याण के लिए ब्रह्मांड की बेहतर समझ विकसित करने के क्रम में निरंतर हमारे वैज्ञानिक प्रयास चलते रहेंगे।
साथियों बात अगर हम केंद्रीय अंतरिक्ष मंत्री द्वारा खुशी ज़ाहिर करने की करें तो, उन्होंने कहा, चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग के बाद आदित्य एल-1 का सफल प्रक्षेपण संपूर्ण विज्ञान और पूरे राष्ट्र के दृष्टिकोण का भी प्रमाण है, जिसे हमने अपनी विश्व संस्कृति में अपनाने की कोशिश की है। उन्होंने आगे कहा, ‘इस दृष्टि को अमली जामा पहनाने का श्रेय इसरो को जाता है और देश भर के विज्ञान संस्थान इस दृष्टि को साकार करने में किसी न किसी रूप में- छोटे या बड़े रूप में-अपना योगदान देने के लिए आगे आए हैं। इनमें इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स, बेंगलुरु, नेशनल एयरोस्पेस लैबोरेटरीज, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च, मुंबई, एनजीआरआई नागपुर, आईआईटी खड़गपुर, आईआईटी मद्रास, आईआईटी दिल्ली, आईआईटी मुंबई शामिल हैं।
उन्होंने कहा, यह दिन, 2 सितंबर 2023, एक हिसाब-किताब का दिन है जब हम अमृतकाल के अगले 25 वर्षों में आगे बढ़ेंगे और भारत माता अपने 140 करोड़ बच्चों की सामूहिक इच्छाशक्ति और सामूहिक प्रयास से विश्व स्तर पर गौरव के स्थान तक पहुंचने और उस पर कब्जा करने का प्रण लेती है। इससे पहले, इसरो ने पुष्टि कर दी थी कि पीएसएलवी-सी57 रॉकेट के जरिए आदित्य-एल1 का प्रक्षेपण सफलतापूर्वक पूरा कर लिया गया है। इसके साथ, भारत की पहली सौर वेधशाला ने सूर्य-पृथ्वी (लैग्रेंज बिंदु) एल1 के गंतव्य के लिए अपनी यात्रा शुरू कर दी है। इसरो ने कहा कि अपने सौर पैनलों को तैनात करने के साथ, आदित्य-एल1 ने बिजली पैदा करना शुरू कर दिया है। आदित्य एल1 सूर्य का अध्ययन करने वाला पहला अंतरिक्ष आधारित भारतीय मिशन है। अगले चार महीनों में विभिन्न कक्षा उत्थान प्रक्रियाओं और क्रूज चरण के माध्यम से, अंतरिक्ष यान को सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के लैग्रेंज बिंदु 1 (एल1) के चारों ओर एक प्रभामंडल कक्षा में स्थापित किया जाएगा, जो पृथ्वी से लगभग 15 लाख किलोमीटर दूर है।एल1 बिंदु के चारों ओर प्रभामंडल कक्षा में एक उपग्रह को स्थापित करने का एक बड़ा फायदा यह है कि वह बिना किसी प्रच्छादन/ग्रहण के लगातार सूर्य को देखता रहता है।
यह वास्तविक समय में सौर गतिविधियों और अंतरिक्ष मौसम पर इसके प्रभाव को देखने का एक बड़ा लाभ प्रदान करेगा। अंतरिक्ष यान में विद्युत चुम्बकीय और कण तथा चुंबकीय क्षेत्र डिटेक्टरों का उपयोग करके फोटोस्फीयर, क्रोमोस्फीयर और सूर्य की सबसे बाहरी परतों (कोरोना) का निरीक्षण करने के लिए सात पेलोड हैं।विशेष सुविधाजनक बिंदु एल1 का उपयोग करते हुए, चार पेलोड सीधे सूर्य को देखते हैं और शेष तीन पेलोड लैग्रेंज बिंदु एल1 पर कणों और क्षेत्रों का सीटू अध्ययन करते हैं और इस प्रकार ये अंतरग्रहीय माध्यम में सौर गतिशीलता के प्रवर्धी प्रभाव का महत्वपूर्ण वैज्ञानिक अध्ययन प्रदान करते हैं। आदित्य एल1 मिशन से कोरोनल हीटिंग, कोरोनल मास इजेक्शन, प्री-फ्लेयर और फ्लेयर गतिविधियों और उनकी विशेषताओं, अंतरिक्ष मौसम की गतिशीलता, कणों और क्षेत्रों के फैलाव आदि की समस्या को समझने के लिए सबसे अहम जानकारी प्रदान करने की आशा है।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि चांद पर चमत्कार, अब सूर्य नमस्कार। आदित्य-एल1, चंद्रयान-3 – हमें भारतीय होने पर गर्व है। आदित्य-एल1 से पृथ्वी के करीब अंतरिक्ष में मौसम संबंधी समस्याओं, जलवायु परिवर्तन, खगोल विज्ञान के कई रहस्य समझने में मदद मिलेगी।