कोलकाता में बड़ी ही धूमधाम से ‘हिंदी साहित्य भारती’ की बैठक हुई सम्पन्न

जिनके पास माँ, मातृभूमि एवं मातृभाषा है, वह कभी गरीब नहीं हो सकता’

कोलकाता। रविवार 26 फ़रवरी को देश की चिर परिचित अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर परचम फहराने वाली साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था हिंदी साहित्य भारती की पश्चिम बंगाल इकाई ने, संस्था के संस्थापक एवं अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. रवीन्द्र शुक्ल की अध्यक्षता में, बड़ी ही धूम धाम से वीर सावरकर की पुण्यतिथि पर उन्हें याद करते हुए भारतीय संस्कृति की संरक्षण और संवर्धन पर एक विराट परिचर्चा और भव्य काव्य समारोह का आयोजन सफलतापूर्वक किया। इस कार्यक्रम के संयोजन का भार सम्भाला प्रांतीय अध्यक्ष हिमाद्री मिश्र ने। कुुशल संचालन के दायित्व का निर्वाह किया उपाध्यक्ष श्यामा सिंह, उपाध्यक्ष स्वागता बसु एवं प्रबंध मंत्री नीलम झा ने।

इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में संस्था के अंतर्राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रो. विनोद मिश्र एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में छपते-छपते समाचार पत्र के मुख्य सम्पादक विश्वम्भर नेवर ने उपस्थित होकर कार्यक्रम में चार चाँद लगा दिए। इस मौके पर संस्था के प्रांतीय सलाहकार राम पुकार सिंह, महामंत्री सुनीता मंडल एवं कोलकाता के प्रख्यात फिल्मकार शम्भुनाथ मिश्र भी उपस्थित थे। कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ हिमाद्रि मिश्रा एवं देवारती बनर्जी द्वारा सरस्वती वन्दना एवं ध्येय गीत के साथ। तत्पश्चात आलोक चौधरी ने मातृ वन्दना प्रस्तुत की। यह कार्यक्रम तीन सत्रों में आयोजित हुआ।

प्रथम सत्र में भारतीय संस्कृति के संरक्षण एवं संवर्धन पर परिचर्चा का आयोजन हुआ जिसमें डॉ. रवीन्द्र शुक्ल, डॉ. विनोद मिश्रा, विश्वम्भर नेवर, राम पुकार सिंह एवं हिमाद्रि मिश्रा ने अपने अपने वक्तव्य से श्रोताओं का मन मोह लिया। अपने वक्तव्य में एक तरफ डॉ. रवीन्द्र शुक्ल ने समझाया कि ‘दुनिया में धर्म केवल एक है और वह है हमारा हिन्दू सनातन धर्म, बाकी तो केवल पंथ या सम्प्रदाय हैं एवं हमारी भारतीय संस्कृति इसी सनातन धर्म पर टिकी है जिसका आधार मानवता है’। प्रो. विनोद मिश्रा ने अपने वक्तव में बतलाया कि ‘जिनके पास माँ, मातृभूमि एवं मातृभाषा है, वह कभी गरीब नहीं हो सकता’।

विश्वम्भर नेवर जी ने कहा ‘अगर हमें अपनी संस्कृति को बचाना है तो पहले अपनी भाषा को बचाना होगा’। राम पुकार सिंह जी ने अपने वक्तव्य में कहा ‘सकारात्मक एवं सचेतन साहित्य एवं हिंदी भाषा के विकास के माध्यम से हिंदी साहित्य भारती हमारी भारतीय संस्कृति के संरक्षण एवं संवर्धन के पथ में पूर्ण प्रयास रत है’। इस सत्र का धन्यवाद ज्ञापन किया महामंत्री सुनीता मंडल ने। द्वितीय सत्र में संस्था के कार्यकर्ताओं के साथ परिचय हुआ।

तृतीय सत्र में कवि सम्मलेन का आयोजन हुआ जिसमें कोलकाता के विभिन्न प्रतिष्ठित कलमकारों ने अपनी अपनी बेहतरीन रचनाएँ प्रस्तुत कर कार्यक्रम को यादगार बना दिया। इन रचनाओं में मुख्य रूप से देवेश मिश्र की ‘इस बंगाल की माटी पर जब-जब गीत लिखा मैंने’, दीपक सिंह की ‘तुम मन की आवाज़ सुनो’, सुनीता मंडल की ‘धरती पहनी पीली चुनरी’, राम पुकार सिंह की ‘हिंदी है शान भारत की’, सुषमा राय पटेल की ‘पंछियों का कलरव संकेत देता है’, श्यामा सिंह की ‘भले हो देह माटी की’, स्वागता बसु की ‘नीतियों की छाँव में अनीतियाँ गढ़ी गयी’, आलोक चौधरी की ‘वन्दे मातरम्’, नीलम झा की ‘मैंने अपने देश की मिट्टी पर’, हिमाद्री मिश्र की ‘अब वाणी में अंगार चाहिए’, ज्ञान प्रकाश पांडे की ‘ज़रा खुलके बोलिए’।

रणविजय श्रीवास्तव की ‘ख्वाब प्यारा संवर गया कोई’, रामनाथ बेखबर की ‘आ गया मधुमास सखी’, नंदलाल रौशन की ‘अब न कागज़ की रहे कश्ती बनाने वाले’, डॉ. विनोद मिश्र की ‘चाहे जहां सजा लो दुकान की तरह’ बेहद ही सराही गयी। इनके अलावा विकास ठाकुर, नीलम मिश्रा, वन्दना पाठक, नीता अनामिका, सुजाता साहा, भारती मिश्रा, विष्णुप्रिया त्रिवेदी आदि ने भी अपनी रचनाएँ प्रस्तुत कर सभी का मन मोह लिया। अंत में डॉ. रवीन्द्र शुक्ल ने अपनी उम्दा रचना – ‘है अंधियारी निशा घनेरी’, प्रस्तुत कर सभी के ह्रदय को छू लिया और धन्यवाद ज्ञापन कर इस अभूतपूर्व काव्य गोष्ठी को सुसंपन्न किया।

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