कोलकाता। पश्चिम बंगाल में राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच टकराव बढ़ता ही जा रहा है। कुलाधिपति (Chancellor) होने के नाते राज्यपाल डॉ. सीवी आनंद बोस ने 11 विश्वविद्यालयों के वीसी की नियुक्ति की, तो राज्य सरकार ने उनके वेतन रोकने का सर्कुलर जारी कर दिया। राज्य सरकार का विश्वविद्यालयों में आतंक का आलम यह है कि जिन्हें राज्यपाल ने वीसी बनाया, उनमें एक ने तो ज्वाइन ही नहीं किया। बाकी ने ज्वाइन किया तो राज्य सरकार ने उनका वेतन रोकने का फरमान जारी कर दिया है।
पिछले साल तत्कालीन गवर्नर जगदीप धनखड़ से राज्य सरकार का टकराव इतना बढ़ा था कि सीएम ममता बनर्जी ने खुद को कुलाधिपति बनाने के लिए अध्यादेश ही जारी कर दिया। अध्यादेश को राज्यपाल ने मंजूरी नहीं दी। अध्यादेश में यह भी प्रावधान था कि वीसी की नियुक्ति के लिए पांच सदस्यों की सर्च कमेटी बनेगी। पहले भी सर्च कमेटी थी, लेकिन उसमें तीन ही सदस्य होते थे। नई कमेटी में तीन सदस्य राज्य सरकार के ही रखने का अध्यादेश में प्रावधान है।
ममता बनर्जी को यह नागवार लगा है कि राज्यपाल ने अध्यादेश की शर्तों का उल्लंघन किया है। इसीलिए राज्य के उच्च शिक्षा विभाग ने नवनियुक्त वीसी का वेतन रोकने का आदेश पारित किया है। उनकी नियुक्ति नियम विरुद्ध मानी गई है। राज्य के उच्च शिक्षा विभाग ने विश्वविद्यालयों के रजिस्ट्रार को भेजे पत्र में यह बताते हुए वेतन रोकने की बात कही है कि उनकी नियुक्ति नियम विरुद्ध है।
उच्च शिक्षा विभाग ने पत्र में लिखा है वीसी की नियुक्ति उच्च शिक्षा विभाग की सलाह लिए बिना की गई है। इसलिए नियुक्तियां अवैध हैं। यह राज्यपाल का एकतरफा निर्णय है। इसलिए वीसी की नियुक्तियां अवैध हैं। धनखड़ के जाने के बाद से राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने आते ही विश्वविद्यालयों में रुचि लेनी शुरू कर दी थी। वे कुछ विश्विद्यालयों में खुद गए भी। इससे भी राज्य सरकार को चिढ़ थी।
सरकार का कहना था कि जब अध्यादेश में सीएम को कुलाधिपति बनाने का उल्लेख है तो फिर राज्यपाल विश्वविद्यालयों या वहां वीसी की नियुक्ति में रुचि क्यों ले रहे हैं। सरकार की यह भी दलील थी कि वीसी की नियुक्ति के लिए चांसलर के रूप में सीएम के अलावा उच्च शिक्षा विभाग का भी प्रतिनिधि शामिल रहेगा तो राज्यपाल ने उसकी अवहेलना क्यों की है।