कोलकाता : नवरात्रि के चौथे दिन माता कुष्मांडा की पूजा होती है, आइए जानते हैं इनकी पूजन विधि… कूष्माण्डा देवी ही ब्रह्मांड से पिण्ड को उत्पन्न करने वाली दुर्गा कहलाती हैं। दुर्गा माता का यह चौथा स्वरूप है, इसलिए नवरात्र में चतुर्थी तिथि को इनकी पूजा की जाती है। अपनी हल्की हंसी से ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इनका नाम कूष्माण्डा पड़ा। लौकिक स्वरूप में यह बाघ की सवारी करती हुईं, अष्टभुजाधारी, मस्तक पर रत्नजटित स्वर्ण मुकुट, एक हाथ में कमंडल और दूसरे हाथ में कलश लिए हुए उज्जवल स्वरूप की दुर्गा हैं।
इनके अन्य हाथों में कमल, सुदर्शन चक्र, गदा, धनुष बाण और अक्षमाला विराजमान है। इन सब उपकरणों को धारण करने वाली कूष्माण्डा अपने भक्तों को रोग, शोक और विनाश से मुक्त करके आयु, यश, बल और बुद्धि प्रदान करती हैं। माता कूष्माण्डा की उपासना मनुष्य को आधिव्याधियों से विमुक्त करके उसे सुख समृद्धि और उन्नति की ओर ले जाती हैं। अतः अपनी लौकिक पारलौकिक उन्नति चाहने वालों को कूष्माण्डा की उपासना करनी चाहिए।
नवरात्रि 2021 चतुर्थी: तिथि और शुभ समय
दिनांक 10 अक्टूबर, रविवार
चतुर्थी तिथि प्रारंभ 07:48 सुबह, 9 अक्टूबर से
चतुर्थी तिथि समाप्त 04:55 प्रात:, 10 अक्टूबर को
माता कुष्मांडा का नाम तीन शब्दों से मिलकर बना है- कु का अर्थ है ‘छोटा’, उष्मा का अर्थ है ‘गर्मी या ऊर्जा’ और अंदा का अर्थ है ‘अंडा’. इसका अर्थ है जिन्होंने इस ब्रह्मांड को ‘छोटे ब्रह्मांडीय अंडे’ के रूप में बनाया है. उनकी पूजा करने वाले भक्तों को सुख, समृद्धि और रोग मुक्त जीवन प्रदान किया जाता है.
पूजा विधि : माता को सिंदूर, चूड़ियां, काजल, बिंदी, कंघी, शीशा, लाल चुनरी आदि चढ़ाएं। प्रसाद के रूप में माता को मालपुए, दही या हलवा चढ़ाएं। मंत्रों का जाप करें और आरती कर पूजा संपन्न करें।