“लोटन बा” : (कहानी) :– श्रीराम पुकार शर्मा

आज अचानक अपने सर्व आदरणीय ग्रामीण पुजारी स्वर्गीय राम लोटन कैलाश नारायण पाण्डेय जी का स्मरण हो आने का कारण है, 21 जून 2020, सूर्य ग्रहण I और हम सब परिजन की आँखें दूरदर्शन पर प्रसारित ‘सूर्य ग्रहण का सीधा प्रसारण’ कार्यक्रम पर एकटक जमी हुई थीं। सूर्य के सम्मुख चन्द्रमा का क्रमगत बढ़ाना और उससे सम्बन्धित सूर्य के बदलते विविध स्वरूप, बड़े ही रोचक खगोलीय दृश्य लग रहे थेI

पर, दूरदर्शन पर मौजूद बड़े-बड़े खगोल शास्त्रियों तथा ज्योतिष शास्त्रियों द्वारा सूर्य ग्रहण सम्बन्धित तर्क-वितर्क, सूर्य ग्रहण के प्रभावादि से मुक्ति हेतु पल-पल बदलते उनके विविध निर्देशों व क्रिया-कलापों तथा उत्पादनों का जम कर प्रचार आदि मन को उसी के अनुपात में चिढ़ाने लगे थे I ‘अब देखिए, सर्वशक्तिमान सूर्य पर राहु का आक्षेप! सिर्फ और सिर्फ इसी चैनल पर …….।’- पर यह क्या सम्भव है? मन तो नहीं मनता I पर शास्त्रादि तो यही बताते हैं।‘

और स्मरण हो आये हमारे ग्रामीण सर्व आदरणीय सर्वज्ञ ब्रह्मज्ञानी श्री राम लोटन कैलाश नारायण पाण्डेय जी! नाम के शब्द-विस्तार में महान व्यक्तित्व की लालसा निहित रहती है I पर शैशव की ‘रंजमात्र से धरती पर अक्सर लोटते रहने की प्रवृति’ जैसी क्रिया-कलापों को परिभाषित करता यह संक्षिप्त नाम ‘लोटन पाण्डेय’ ही उनकी संज्ञा को चरितार्थ करता है I पर ब्रह्मण देवता को ‘श्री’ विहीन सिर्फ उनके नाम से सम्बोधन भी तो नरक-मार्ग को प्रशस्त करता है I
पुस्तकीय ज्ञान-विज्ञान भला हमारे ब्रह्म ज्ञानी ‘लोटन पांडेय’ जी के स्वनिर्मित ज्ञान-विज्ञान के समक्ष कहाँ तक टिके रह सकते हैं ? उन्होंने तो बचपन में ही धरती पर लोट-लोट कर वैदिक, शास्त्रीय तथा ब्रह्म सम्बन्धित ज्ञानों को आत्मसात् कर उन पर अपना प्रबल प्रभुत्व को स्थापित कर अपने आप को ‘ब्रह्मज्ञानी’ होने की सार्थकता को सिद्ध की है I

उन्हें तो शायद कई वर्ष पूर्व किसी ‘कुम्भ-मेले’ में ही राहु-केतु सहित तमाम ग्रहों ने सामूहिक दर्शन भी दिए थे, तभी तो वे अक्सर धरती पर घण्टों से चबा रहे अपने नीम-दातून के दूसरे छोर से उन ग्रहों के भयानक स्वरूपों के साक्षात् चित्र खींच-खींच कर प्रदर्शित करते और उन दुष्ट ग्रह-राक्षसों के दुष्प्रभाव से गाँव भर के लोगों की रक्षा में जी जान से लगे रहे थे। ऐसे कौन-से ब्रह्मप्रेत या पिशाच न होंगे, जो उनके पैरों पर गिर कर, नाक रगड़-रगड़ कर अपने प्राणों की भिक्षा न माँगे हों? सब उनके आदेश पर दौड़ लगाते हैं।

बचपन में पूजा-पाठ के सम्पादन के अवसर पर उनके आगमन पर हम बालकगण उनके धूलधूसरित कजरारे गज-पद के विविध पंचतत्व मिश्रित रजकणों को भगवान के चरणामृत से अधिक महत्व देते हुए, उसे अपने-अपने शीश पर लेना न भूलते थे I कभी कोई भी बालक हठता का प्रदर्शन करता, तो उसे सबसे बड़ा ‘नास्तिक’ साबित करने में देर न लगती थी I फिर तो उसका दण्ड उसके परिजन को विशेष पूजा-पाठ या फिर हवन आदि और ग्यारह या इकीस ब्रह्मणों को भोग-सत्कार के द्वारा दिया जाता था I अतः होश सम्भालते ही हम जैसों को घर-परिवार के लोग जबरन ‘आस्तिक’ बनाने के सब गुर सिखाया करते थे I
हम बच्चों के सामूहिक स्पर्श मात्र से ही ब्रह्म ज्ञानी श्री लोटन पाण्डेय जी के चरण स्वच्छ हो जाया करते थे I घी-तेल-गुड़ आदि मिश्रित मिठाई से चटचटाते उनके गेरुए-धूसर झोले से हम सभी बच्चें काफी दूर ही रहते थे I पता नहीं, कब कौन-सा ब्रह्मप्रेत या पिशाचिनी उसमें से निकल जावे और हमारी गर्दन मरोड़ देवे I हमारे ब्रह्म ज्ञानी श्री लोटन पाण्डेय जी के अनुसार उनके झोले से निकले अब तक कई डाकिनियों तथा पिशाचों ने पास के गाँवों के ही कई बच्चों की गर्दनें मरोड़ चुकी थीं।

सूर्य और चन्द्र ग्रहण के समय या फिर कोई विशेष पर्व-त्यौहार के अवसर पर, क्या मजाल है कि गाँव-जवार भर के लोग उनके द्वार पर विविध प्रकार के ब्रह्म-भोग लगाये बिना या फिर उनकी ब्रह्म-आज्ञा के बिना ही कोई अन्न-जल ग्रहण कर लेवें। भले ही राहु-केतु या अन्य ग्रहादि उन्हें सामूहिक रूप से माफ भी कर देवें, पर हमारे ब्रह्म ज्ञानी लोटन पांडेय जी के कोप से भला कोई फिर कैसे बच सकता है? इनका कोप तो इन्द्रासन को भी हिला देवे I जिद्दी इतने कि ‘कौटिल्य’ के वंशज और कुपित इतने कि ‘दुर्बासा’ के वंशज से सम्बद्ध होने का भ्रम हो जाया करता था I

गाँव-जवार भर में उनकी जबरन प्रसिद्धि रही है I बाहर के कई विद्व ब्रह्मण-पंडित आयें, पर सब के सब बेचारे हमारे ब्रह्म ज्ञानी श्री लोटन पाण्डेय जी के विस्तृत ब्रह्म-ज्ञान युक्त ‘कालिदासीय’ शास्त्रार्थ के सम्मुख ‘विद्योत्मा’ सदृश पराजित हो-हो कर न केवल हमारे गाँव से ही, बल्कि हमारे निकटवर्तीय क्षेत्र से ही उलटे पैर सदा के लिए प्रस्थान किये। उनमें से अधिकांश तो इनकी वेद-शास्त्र सम्मत भाषा को ही पकड़ ही न पाए, तर्क क्या भला ख़ाक करेंगे? कुछ इनके खिसिआई बिल्ली स्वभाव से पीड़ित हो कर ‘त्राहिमाम-त्राहिमाम’ करते स्वयं की रक्षा करते हुए ‘अंतर्ध्यान योग साधना’ से अपनी इज्जत बचाई I फिर तो हमारे ब्रह्म ज्ञानी श्री लोटन पाण्डेय जी गाँव निवासियों के अटल-अचल विश्वास के उच्च शिलाखण्ड पर ब्रह्म स्वरूप विराजमान हो गए, जहाँ से उन्हें विस्थापित कर पाना किसी के लिए सम्भव प्रतीत ही नहीं होता था I

ये ही राहू-केतु सदृश ग्रहादि, भयानक ब्रह्मप्रेत, पिशाच, डाकिनी आदि ने हमारे ब्रह्म ज्ञानी श्री लोटन पाण्डेय जी के भाग्य को संवार दिए I वे सभी सम्मिलित भाव से रात-दिन कठिन परिश्रम कर उनकी पैत्रिक टूटफुटिये झोपड़ी की काया स्वरूप ही बदल दिए हैं। उनके ही बदौलत ब्रह्म ज्ञानी श्री लोटन पाण्डेय जी के द्वार पर बड़े-बड़े सींगों वाली दस सेर दूधवाली एक पटनहिया गाय अपने बछड़े के साथ खूंटे से बंधी हुई रहती है I वे तो अब न रहे, परन्तु उनके ही द्वारा प्रशस्त लिक का अनुसरण कर उनके सुयोग्य पुत्र आज जिस ‘कावासाकी बजाज’ फटफटिया की सवारी करते फिरते हैं, वह भी उन्हीं ग्रहों-ब्रह्म-पिशाचों-डाकिनियों की कृपा के कारण संभव हो पाया है I

इस बार गाँव पहुँचने पर अपने स्वभावानुसार श्रद्धेय व प्रिय ब्रह्म ज्ञानी श्री राम लोटन कैलाश नारायण पाण्डेय जी के द्वार पर उनके देव तुल्य हस्त-आशीर्वाद प्राप्ति की कामना से पहुँचा। देव-आशीर्वाद के बदले अक्सर उनका प्राप्य (खैनी) भी उन्हें प्राप्त हो जाया करता था।
पर जान कर बड़ा ही दुःख हुआ कि हमारे गाँव के दिव्यात्मा विद्व ब्रह्मज्ञानी श्री राम लोटन कैलाश नारायण पाण्डेय जी अपने नाश्वर काया को त्याग कर सदा-सदा के लिए ब्रह्म में लीन हो गए हैं I लेकिन हमारे गाँव से विशेष आदर-भक्ति पाने के कारण आज तक उनका मेरे गाँव और निवासियों के प्रति मोह भंग नहीं हो पाया है। अतः ब्रह्मलीन होने के ब्रह्मभोज के अगले दिन से ही स्वर्गीय राम नारायण लोटन पांडेय जी की दिव्य आत्मा अपने घर के पूरब के एक ठूंठ पीपल पर अपना आसन जमाये बैठी रहती है I वहीं उसी पर बैठी-बैठी चौबीसों घण्टें गाँव भर की निगरानी भी करती रहती है I

लोग ब्रह्मलीन दिव्यात्मा की श्रद्धा-भक्तिवश स्नानादि कर स्वेच्छा भाव से आज भी लोटा भर जल और भोग वहाँ पहुँचा आते हैं I खेत की कटती फसल का प्रथम बोझा और पर्व-त्यौहार के अग्रासन (प्रथम पकवान) पर दिवंगत ब्रह्म ज्ञानी राम लोटन कैलाश नारायण पाण्डेय जी का ही एकछत्र अधिकार आज भी बना हुआ है I यहाँ तक कि गाँव में प्रवेश के पूर्व दुल्हन की डोलियाँ व गाड़ियाँ भी उस दिव्य ब्रह्म ज्ञानी आत्मा के आदेश की घण्टों प्रतीक्षा पहले वहीँ खड़ी रहती हैं I इसे ही सामान्य शब्दों में आस्था, भक्ति या विश्वास कहें, या फिर मानसिक डर, जो उनके मरने पर भी लोगों के मन आज तक विद्यमान है I

एक बार शहरी वातावरण से कुछ परिचित और कुछ नास्तिकता के स्वरूप को धारण कर लौटे खदेरू महतो ने कुछ विशेष हिम्मत दिखाई और वह कर्मजला स्वर्गीय ब्रह्म ज्ञानी राम लोटन कैलाश नारायण पाण्डेय जी के विधि-विधान का ही विरोध कर बैठा I सुनने में आया कि आषाढ़ की अंधेरिया रात में वह हतभागा खदेरू महतो उन्हें अकेले पूरबवानी खेते में मिल गया, फिर क्या था ? स्वर्गीय लोटन पाण्डेय की क्रुद्ध आत्मा उसके गर्दन पर उचक कर सवार हो गई और धमकाते हुए बोली – ‘चल यहाँ से दुसियानी तक I’

मरता क्या न करता ? बेचारा खदेरू महतो उनको अपने कंधे पर लादे पहुँचा दुसियानी तक I फिर ब्रह्म ज्ञानी स्वर्गीय लोटन पाण्डेय की आत्मा उसके कंधे पर से ही उसके काँख में एक जोरदार लंगड़ी लगाई और चिल्लाई, – ‘ले चल घर तक I’ खदेरू महतो घर तक लाया I पर अभी कहाँ मुक्ति थी ? फिर आदेश हुआ, – ‘चल दुसियानी तक I’ दुसियानी पर पहुँचा I कुछ दम ही ले रहा था कि ‘फिर चल घर तक’, ….. ‘फिर चल दुसियानी तक’ ….. ‘फिर घर तक I’ रात भर यही चलाI

भिन्सहरा में लोटा टाँगे गाँव के कुछ लोग उस अभागे खदेरू महतो को खेत में बेहोश और कुछ बड़बड़ाते हुए पाए I उसके मुँह से सड़ा हुआ महुआ जैसा दुर्गन्ध भी आ रहा था I विशेष साहसी लोगों के साहस पर बंदिश लगाने के लिए लिए खदेरू महतो की अंतर्व्यथा-कथा को बताना ही काफी है I अभी तक मैं अपने ब्रह्मज्ञानी, वेद-शास्त्र के प्रबल मर्मज्ञ और प्रेत-पिशाचिनियों के प्रबल स्वामी स्वर्गीय राम लोटन कैलाश नारायण पाण्डेय जी द्वारा अपने गाँव के प्रति किये गए उपकारों को गिनने में ही डूबा हुआ था I

‘जाओ भाई! तुम भी सुरती (खैनी) की पोटली वहीं पीपल के नीचे रख आओ I थोड़ा चूना भी रख देना, नहीं तो, चूने के लिए रात भर हम सब को परेशान करते रहेंगे I’ – ग्रामीणों की बात सुन कर मैं सचेत हुआ I
मैं तब से अधेड़बुन में ही पड़ा हूँ I क्या करूँ ? – ‘सत्य की रक्षा’ या ‘आस्था-विश्वास की रक्षा!’
——————– x ——————–
श्रीराम पुकार शर्मा,
24, बन बिहारी बोस रोड,
हावड़ा – 711101.
सम्पर्क सूत्र – 9062366788.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

eleven − 2 =