अकेलेपन से डिमेंशिया का खतरा 30 फीसदी से अधिक बढ़ जाता है

यी दिल्ली, 22 अक्टूबर। अकेलापन एक बड़ा जोखिम कारक है जिससे भूलने की बीमारी ‘डिमेंशिया’ से ग्रस्त होने का खतरा 30 फीसदी से अधिक बढ़ जाता है और इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि किसी व्यक्ति की उम्र या लैंगिक पहचान क्या है।

वैश्विक स्तर पर छह लाख प्रतिभागियों को सम्मिलित करने वाले 21 विस्तृत अध्ययनों पर आधारित समीक्षा में यह पाया गया।

अकेलापन डिमेंशिया का पता चलने से पहले के लक्षणों से भी जुड़ा पाया गया जैसे कि संज्ञानात्मक हानि या इसमें कमी होना। अकेलेपन की स्थिति में कोई व्यक्ति खुद को सामाजिक रिश्तों से असंतुष्ट पाता है।

दोनों स्थितियां निर्णय लेने, स्मृति और विचार प्रक्रिया को प्रभावित करती हैं। हालांकि, डिमेंशिया के लक्षण किसी व्यक्ति के दैनिक कामकाज को बाधित करने के लिहाज से काफी गंभीर होते हैं।

समाज से अलग-थलग महसूस करने की मनोवैज्ञानिक स्थिति को अब व्यापक रूप से खराब स्वास्थ्य के लिए एक जोखिम कारक माना जाता है। हालांकि अध्ययनों से पता चला है कि अकेलापन सीधे तौर पर बीमारी का कारण नहीं बन सकता।

Loneliness increases the risk of dementia by more than 30 percent

‘नेचर मेंटल हेल्थ’ पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में फ्लोरिडा स्टेट विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर और प्रमुख लेखक मार्टिना लुचेती ने कहा, ”डिमेंशिया एक पूरी प्रक्रिया (स्पेक्ट्रम) है।

जिसके तहत ‘न्यूरोपैथोलॉजिकल’ परिवर्तन होते हैं जिनकी शुरुआत चिकित्सकों द्वारा इसका पता लगाने से दशकों पहले शुरू हो जाती है। इस संदर्भ में विभिन्न संज्ञानात्मक परिणामों या लक्षणों से अकेलेपन के संबंध का अध्ययन जारी रखना महत्वपूर्ण है।

मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य पहलुओं, जैसे कि जीवन में उद्देश्य की कमी या ऐसा महसूस होना कि व्यक्तिगत विकास के लिए कम अवसर हैं, इसमें थोड़ी संज्ञानात्मक हानि का पता चलने से तीन से छह साल पहले उल्लेखनीय रूप से गिरावट देखी गई।

यह परिणाम अगस्त में ‘न्यूरोलॉजी न्यूरोसर्जरी एंड साइकेट्री’ नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ था।

इस अध्ययन में पाया गया कि अकेलापन डिमेंशिया के समग्र जोखिम को 30 प्रतिशत, अल्जाइमर रोग के जोखिम को 39 प्रतिशत, संवहनी डिमेंशिया को 73 प्रतिशत और संज्ञानात्मक हानि को 15 प्रतिशत तक बढ़ा देता है।

Loneliness increases the risk of dementia by more than 30 percent

अल्जाइमर रोग मस्तिष्क में प्रोटीन के संचय के कारण होता है, जिसके बारे में माना जाता है कि यह कोशिका के मरने का कारण बनता है, जबकि संवहनी (वेस्कुलर)डिमेंशिया मस्तिष्क की रक्त वाहिकाओं को नुकसान होने के कारण होता है।

लुचेती ने कहा कि ये निष्कर्ष बढ़ती उम्र के वयस्कों के आरोग्य और उनके संज्ञानात्मक स्वास्थ्य का समर्थन करने के लिए अकेलेपन के स्रोतों की पहचान करने में मदद कर सकते हैं।

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